Wednesday, September 19, 2012

मुस्लिम की असलियत


प्राचीनतम इतिहास … श्री राम के द्वारा मुस्लिम की असलियत 


                            मै काफी दिन से इस्लाम को समझने की कोशिस कर रहा था … की आखिर ये क्या है …ये कोई धर्म है या मत या कोई …. कुछ और ? लेकिन एक बात मुझे ज्यादा परेशन करती थी इनका हर काम हिन्दू धर्म के विपरीत करने का …. मुझे हमेशा से जिज्ञासा बनी रहती थी … इसको जानने की … और इसको जानने के लिए कभी किसी का लेख तो कभी इस्लाम की धार्मिक पुस्तकों को पढता था ..लेकिन कभी सही उत्तर नहीं मिला …. कोई कुछ कहता तो कोई कुछ हर एक के अपने अलग विचार ..हा कुछ बाते जरुर सामान होती थी ..यदि मै किसी मुस्लिम दोस्त से पूछता तो .. इस्लाम को पुराण धर्म बताता था … एक दिन किसी ने कुछ सबाल रामचरित्र मानस से पूछा जिसका उत्तर के लिए मुझे रामचरित्र मानस पढनी पढ़ी … और साथ में वाल्मीकि रामायण भी ………… कहते है राम उल्टा का नाम लेने से वाल्मीकि जी डाकू से ऋषि बन गए .. क्युकि राम से बड़ा राम का नाम ये ही बात सिद्ध होती है यदि आप इतिहास उठा कर देखे तो .. मुगलों से लेकर अंग्रेजो को भागने में राम का नाम ही काम आया है … राम नाम ही चमत्कार था की पत्थर भी पानी में तैर सकते है … भगवान शिव और हनुमान जी जो पलभर में भक्तो के दुःख दूर करते है ..बो भी राम नाम का जप करते है … राम से बड़ा राम का नाम … राम ही सत्य है ..इसका ज्ञान मुझे रामायण से हुआ जो सबालो के उत्तर कही ना मिले वह मुझे रामायण जी में मिले ….
क्यों ये लोग राम , कृष्ण को कल्पनिक बोलकर रामायण और महाभारत को झूठा साबित करने की कोशिस करते है
आपने देखा होगा मुसलमान भाई और उनके धर्म गुरु… राम , कृष्ण को कल्पनिक बोलकर रामायण और महाभारत को झूठा साबित करने की कोशिस करते रहते है ..इनमे ईसाई और सकुलर लोग भी पीछे नहीं है …
क्यों आखिर इनलोगों को क्या परेशनी है कभी आपने सोचा है है क्यों ये एक सोची समझी रणनीति के तहत कभी राम और कभी कृष्ण जी को बदनाम करते रहते है … कभी उनके चरित्र और कभी जन्म को लेकर ..
कारण येही है की राम , कृष्ण को कल्पनिक बोलकर रामायण और महाभारत को झूठा साबित कर सत्य को छिपाना ….
मक्का शहर से कुछ मील दूर एक साइनबोर्ड पर स्पष्ट उल्लेख है कि “इस इलाके में गैर-मुस्लिमों का आना प्रतिबन्धित है…”। यह काबा के उन दिनों की याद ताज़ा करता है, जब नये-नये आये इस्लाम ने इस इलाके पर अपना कब्जा कर लिया था। इस इलाके में गैर-मुस्लिमों का प्रवेश इसीलिये प्रतिबन्धित किया गया है, ताकि इस कब्जे के निशानों को छिपाया जा सके।”
ये हुक्म कुरआन में दिया गया कि गैर-मुस्लिमों को काबे से दुर कर दो….उन्हे मस्जिदे-हराम के पास भी नही आने देना
ये सारे प्रमाण ये बताने के लिए हैं कि क्यों मुस्लिम इतना डरे रहते हैं इस मंदिर को लेकर..इस मस्जिद के रहस्य को जानने के लिए कुछ हिंदुओं ने प्रयास किया तो वे क्रूर मुसलमानों के हाथों मार डाले गए और जो कुछ बच कर लौट आए वे भी पर्दे के कारण ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं कर पाए.अंदर के अगर शिलालेख पढ़ने में सफलता मिल जाती तो ज्यादा स्पष्ट हो जाता.इसकी दीवारें हमेशा ढकी रहने के कारण पता नहीं चल पाता है कि ये किस पत्थर का बना हुआ है पर प्रांगण में जो कुछ इस्लाम-पूर्व अवशेष रहे हैं वो बादामी या केसरिया रंग के हैं..संभव है काबा भी केसरिया रंग के पत्थर से बना हो..एक बात और ध्यान देने वाली है कि पत्थर से मंदिर बनते हैं मस्जिद नहीं..भारत में पत्थर के बने हुए प्राचीन-कालीन हजारों मंदिर मिल जाएँगे…
१- मुसलमान कहते हैं कि कुरान ईश्वरीय वाणी है तथा यह धर्म अनादि काल से चली आ रही है,परंतु ये बात आधारहीन तथा तर्कहीन हैं . . .
# किसी भी सीधांत को रद्द करने के लिए उसको पहले सही तरीक़े से समझ लें. इसलाम धर्म का दावा है की दुनिया में शुरू में एक ही धर्म था और वो इस्लाम था. उस वक़्त उसकी भाषा और ,नाम अलग होगा. फिर लोगों ने धर्म परिवर्तन किए और असली धर्म की छबि बदल गयी. फिर अल्लाह ने धर्म को पुनः स्थापित किया. फिर ये होता रहा और अल्लाह अपने पैगंबरों से वापस धर्म को उसकी असली शक्ल में स्थापित करता रहा. इस सिलसिले में मोहम्मद पैगंबर अल्लाह के आखरी पैगंबर हैं, और ये इस्लाम की आखरी शक्ल है, इसके बाद बदलाओ या बिगाड़ होने पर प्रलय होगा.
ये उसी तरह है जैसे हम अपने संवीधन बदलते हैं. मौजूदा इस्लाम , इस्लाम धर्म का आखरी revision है. आप खुद समझ लें के आप हज़ारों साल पुराना संविधान follow कर रहे हैं.
2. – आदि धर्म-ग्रंथ संस्कृत में होनी चाहिए अरबी या फारसी में नहीं|
भाई, क़ुरान को मुसलमान कब आदि ग्रंथ कहते हैं. अगर आप ने क़ुरान पढ़ा तो आप देखोगे के उस में क़ुरान से पहले के ग्रंथों पर भी बात की गयी है. एक जगह किसी ग्रंथ को आदि ग्रंथ कहा गया है जिस के बारे में हम लोग खुद कहते हैं के शायद ये वेदों के बारे में है
#बहुत सी भाषाओं में बहुत से शब्द मिलते जुलते हैं, किसी भाषा में
अल्लाह शब्द भी संस्कृत शब्द अल्ला से बना है जिसका अर्थ देवी होता है|
जिस प्रकार हमलोग मंत्रों में “या” शब्द का प्रयोग करते हैं देवियों को पुकारने में जैसे “या देवी सर्वभूतेषु….”, “या वीणा वर ….” वैसे ही मुसलमान भी पुकारते हैं “या अल्लाह”..इससे सिद्ध होता है कि ये अल्लाह शब्द भी ज्यों का त्यों वही रह गया बस अर्थ बदल दिया गया|
एक मुस्लिम भाई ने कहा जनाब आपसे किसने कहा कि इसलाम सातवी-आठवीं सदी में हुआ…जब से दुनिया बनी है तब से इस्लाम है…
अल्लाह ने दुनिया में 1,24,000 नबी और रसुल भेजे और सब पर किताबे नाज़िल की…
कुरआन में नाम से 25 नबी और 4 किताबों का ज़िक्र है…. कुरआन में बताये गये २५ नबी व रसुलों के नाम बता रहा हूं…उनके नामों के इंग्लिश में वो नाम दिये है जिन नामों से इन नबीयों का ज़िक्र “बाईबिल” में है….
1. आदम अलैहि सलाम (Adam)
2. इदरीस अलैहि सलाम (Enoch)
3. नुह अलैहि सलाम (Noah)
4. हुद अलैहि सलाम (Eber)
5. सालेह अलैहि सलाम (Saleh)
6. ईब्राहिम अलैहि सलाम (Abraham)
7. लुत अलैहि सलाम (Lot)
8. इस्माईल अलैहि सलाम (Ishmael)
9. इशाक अलैहि सलाम (Isaac)
10. याकुब अलैहि सलाम (Jacob)
11. युसुफ़ अलैहि सलाम (Joseph)
12. अय्युब अलैहि सलाम (Job)
13. शुऎब अलैहि सलाम (Jethro)
14. मुसा अलैहि सलाम (Moses)
15. हारुन अलैहि सलाम (Aaron)
16. दाऊद अलैहि सलाम (David)
17. सुलेमान अलैहि सलाम (Solomon)
18. इलियास अलैहि सलाम (Elijah)
19. अल-यासा अलैहि सलाम (Elisha)
20. युनुस अलैहि सलाम (Jonah)
21. धुल-किफ़्ल अलैहि सलाम (Ezekiel)
22. ज़करिया अलैहि सलाम (Zechariah)
23. याहया अलैहि सलाम (John the Baptist)
24. ईसा अलैहि सलाम (Jesus)
25. आखिरी रसुल सल्लाहो अलैहि वस्सलम (Ahmed)
इन नबीयों में से छ्ठें नबी “ईब्राहिम अलैहि सलाम” जिन्होने “काबा” को तामिल किया था उनका जन्म 1900 ईसा पूर्व हुआ था….
# तो भाई केबल २५ नवी की जानकारी के दम पर ये इस्लाम को पुराना धर्म बोल रहे है भाई बाकि 1,24,000 नबी और रसुल का क्या होगा ?????????
ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मद उर-रसूलुल्लाह इस कलमे का अर्थ मुहम्मद ने बताया है की ईश्वर एक है और मुहम्मद उसके पैगम्बर है … जब की सब जानते है की इला एक देवी थी जिनकी पूजा होती थी और अल्लाह कोन था आज हम इस को भी समझेगे की सत्य क्या था ….?
और बहुत कुछ ये भी पढ़ा ….
अरब की प्राचीन समृद्ध वैदिक संस्कृति और भारत।।।।।
अरब देश का भारत, भृगु के पुत्र शुक्राचार्य तथा उनके पोत्र और्व से ऐतिहासिक संबंध प्रमाणित है, यहाँ तक कि “हिस्ट्री ऑफ पर्शिया” के लेखक साइक्स का मत है कि अरब का नाम और्व के ही नाम पर पड़ा, जो विकृत होकर “अरब” हो गया। भारत के उत्तर-पश्चिम में इलावर्त था, जहाँ दैत्य और दानव बसते थे, इस इलावर्त में एशियाई रूस का दक्षिणी-पश्चिमी भाग, ईरान का पूर्वी भाग तथा गिलगित का निकटवर्ती क्षेत्र सम्मिलित था। आदित्यों का आवास स्थान-देवलोक भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित हिमालयी क्षेत्रों में रहा था। बेबीलोन की प्राचीन गुफाओं में पुरातात्त्विक खोज में जो भित्ति चित्र मिले है, उनमें विष्णु को हिरण्यकशिपु के भाई हिरण्याक्ष से युद्ध करते हुए उत्कीर्ण किया गया है।
उस युग में अरब एक बड़ा व्यापारिक केन्द्र रहा था, इसी कारण देवों, दानवों और दैत्यों में इलावर्त के विभाजन को लेकर 12 बार युद्ध ‘देवासुर संग्राम’ हुए। देवताओं के राजा इन्द्र ने अपनी पुत्री ज्यन्ती का विवाह शुक्र के साथ इसी विचार से किया था कि शुक्र उनके (देवों के) पक्षधर बन जायें, किन्तु शुक्र दैत्यों के ही गुरू बने रहे। यहाँ तक कि जब दैत्यराज बलि ने शुक्राचार्य का कहना न माना, तो वे उसे त्याग कर अपने पौत्र और्व के पास अरब में आ गये और वहाँ 10 वर्ष रहे। साइक्स ने अपने इतिहास ग्रन्थ “हिस्ट्री ऑफ पर्शिया” में लिखा है कि ‘शुक्राचार्य लिव्ड टेन इयर्स इन अरब’। अरब में शुक्राचार्य का इतना मान-सम्मान हुआ कि आज जिसे ‘काबा’ कहते है, वह वस्तुतः ‘काव्य शुक्र’ (शुक्राचार्य) के सम्मान में निर्मित उनके आराध्य भगवान शिव का ही मन्दिर है। कालांतर में ‘काव्य’ नाम विकृत होकर ‘काबा’ प्रचलित हुआ। अरबी भाषा में ‘शुक्र’ का अर्थ ‘बड़ा’ अर्थात ‘जुम्मा’ इसी कारण किया गया और इसी से ‘जुम्मा’ (शुक्रवार) को मुसलमान पवित्र दिन मानते है।
“बृहस्पति देवानां पुरोहित आसीत्, उशना काव्योऽसुराणाम्”-जैमिनिय ब्रा.(01-125)
अर्थात बृहस्पति देवों के पुरोहित थे और उशना काव्य (शुक्राचार्य) असुरों के।
प्राचीन अरबी काव्य संग्रह गंथ ‘सेअरूल-ओकुल’ के 257वें पृष्ठ पर हजरत मोहम्मद से 2300 वर्ष पूर्व एवं ईसा मसीह से 1800 वर्ष पूर्व पैदा हुए लबी-बिन-ए-अरव्तब-बिन-ए-तुरफा ने अपनी सुप्रसिद्ध कविता में भारत भूमि एवं वेदों को जो सम्मान दिया है, वह इस प्रकार है-
“अया मुबारेकल अरज मुशैये नोंहा मिनार हिंदे।
व अरादकल्लाह मज्जोनज्जे जिकरतुन।1।
वह लवज्जलीयतुन ऐनाने सहबी अरवे अतुन जिकरा।
वहाजेही योनज्जेलुर्ररसूल मिनल हिंदतुन।2।
यकूलूनल्लाहः या अहलल अरज आलमीन फुल्लहुम।
फत्तेबेऊ जिकरतुल वेद हुक्कुन मालन योनज्वेलतुन।3।
वहोबा आलमुस्साम वल यजुरमिनल्लाहे तनजीलन।
फऐ नोमा या अरवीयो मुत्तवअन योवसीरीयोनजातुन।4।
जइसनैन हुमारिक अतर नासेहीन का-अ-खुबातुन।
व असनात अलाऊढ़न व होवा मश-ए-रतुन।5।”
अर्थात- (1) हे भारत की पुण्यभूमि (मिनार हिंदे) तू धन्य है, क्योंकि ईश्वर ने अपने ज्ञान के लिए तुझको चुना। (2) वह ईश्वर का ज्ञान प्रकाश, जो चार प्रकाश स्तम्भों के सदृश्य सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करता है, यह भारतवर्ष (हिंद तुन) में ऋषियों द्वारा चार रूप में प्रकट हुआ। (3) और परमात्मा समस्त संसार के मनुष्यों को आज्ञा देता है कि वेद, जो मेरे ज्ञान है, इनके अनुसार आचरण करो। (4) वह ज्ञान के भण्डार साम और यजुर है, जो ईश्वर ने प्रदान किये। इसलिए, हे मेरे भाइयों! इनको मानो, क्योंकि ये हमें मोक्ष का मार्ग बताते है। (5) और दो उनमें से रिक्, अतर (ऋग्वेद, अथर्ववेद) जो हमें भ्रातृत्व की शिक्षा देते है, और जो इनकी शरण में आ गया, वह कभी अन्धकार को प्राप्त नहीं होता।
इस्लाम मजहब के प्रवर्तक मोहम्मद स्वयं भी वैदिक परिवार में हिन्दू के रूप में जन्में थे, और जब उन्होंने अपने हिन्दू परिवार की परम्परा और वंश से संबंध तोड़ने और स्वयं को पैगम्बर घोषित करना निश्चित किया, तब संयुक्त हिन्दू परिवार छिन्न-भिन्न हो गया और काबा में स्थित महाकाय शिवलिंग (संगे अस्वद) के रक्षार्थ हुए युद्ध में पैगम्बर मोहम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम को भी अपने प्राण गंवाने पड़े। उमर-बिन-ए-हश्शाम का अरब में एवं केन्द्र काबा (मक्का) में इतना अधिक सम्मान होता था कि सम्पूर्ण अरबी समाज, जो कि भगवान शिव के भक्त थे एवं वेदों के उत्सुक गायक तथा हिन्दू देवी-देवताओं के अनन्य उपासक थे, उन्हें अबुल हाकम अर्थात ‘ज्ञान का पिता’ कहते थे। बाद में मोहम्मद के नये सम्प्रदाय ने उन्हें ईष्यावश अबुल जिहाल ‘अज्ञान का पिता’ कहकर उनकी निन्दा की।
जब मोहम्मद ने मक्का पर आक्रमण किया, उस समय वहाँ बृहस्पति, मंगल, अश्विनी कुमार, गरूड़, नृसिंह की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित थी। साथ ही एक मूर्ति वहाँ विश्वविजेता महाराजा बलि की भी थी, और दानी होने की प्रसिद्धि से उसका एक हाथ सोने का बना था। ‘Holul’ के नाम से अभिहित यह मूर्ति वहाँ इब्राहम और इस्माइल की मूर्त्तियो के बराबर रखी थी। मोहम्मद ने उन सब मूर्त्तियों को तोड़कर वहाँ बने कुएँ में फेंक दिया, किन्तु तोड़े गये शिवलिंग का एक टुकडा आज भी काबा में सम्मानपूर्वक न केवल प्रतिष्ठित है,वरन् हज करने जाने वाले मुसलमान उस काले (अश्वेत) प्रस्तर खण्ड अर्थात ‘संगे अस्वद’ को आदर मान देते हुए चूमते है।
प्राचीन अरबों ने सिन्ध को सिन्ध ही कहा तथा भारतवर्ष के अन्य प्रदेशों को हिन्द निश्चित किया। सिन्ध से हिन्द होने की बात बहुत ही अवैज्ञानिक है। इस्लाम मत के प्रवर्तक मोहम्मद के पैदा होने से 2300 वर्ष पूर्व यानि लगभग 1800 ईश्वी पूर्व भी अरब में हिंद एवं हिंदू शब्द का व्यवहार ज्यों का त्यों आज ही के अर्थ में प्रयुक्त होता था।
अरब की प्राचीन समृद्ध संस्कृति वैदिक थी तथा उस समय ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल, धर्म-संस्कृति आदि में भारत (हिंद) के साथ उसके प्रगाढ़ संबंध थे। हिंद नाम अरबों को इतना प्यारा लगा कि उन्होंने उस देश के नाम पर अपनी स्त्रियों एवं बच्चों के नाम भी हिंद पर रखे ।
अरबी काव्य संग्रह ग्रंथ ‘ सेअरूल-ओकुल’ के 253वें पृष्ठ पर हजरत मोहम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम की कविता है जिसमें उन्होंने हिन्दे यौमन एवं गबुल हिन्दू का प्रयोग बड़े आदर से किया है । ‘उमर-बिन-ए-हश्शाम’ की कविता नयी दिल्ली स्थित मन्दिर मार्ग पर श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर (बिड़ला मन्दिर) की वाटिका में यज्ञशाला के लाल पत्थर के स्तम्भ (खम्बे) पर काली स्याही से लिखी हुई है, जो इस प्रकार है -
” कफविनक जिकरा मिन उलुमिन तब असेक ।
कलुवन अमातातुल हवा व तजक्करू ।1।
न तज खेरोहा उड़न एललवदए लिलवरा ।
वलुकएने जातल्लाहे औम असेरू ।2।
व अहालोलहा अजहू अरानीमन महादेव ओ ।
मनोजेल इलमुद्दीन मीनहुम व सयत्तरू ।3।
व सहबी वे याम फीम कामिल हिन्दे यौमन ।
व यकुलून न लातहजन फइन्नक तवज्जरू ।4।
मअस्सयरे अरव्लाकन हसनन कुल्लहूम ।
नजुमुन अजा अत सुम्मा गबुल हिन्दू ।5।
अर्थात् – (1) वह मनुष्य, जिसने सारा जीवन पाप व अधर्म में बिताया हो, काम, क्रोध में अपने यौवन को नष्ट किया हो। (2) अदि अन्त में उसको पश्चाताप हो और भलाई की ओर लौटना चाहे, तो क्या उसका कल्याण हो सकता है ? (3) एक बार भी सच्चे हृदय से वह महादेव जी की पूजा करे, तो धर्म-मार्ग में उच्च से उच्च पद को पा सकता है। (4) हे प्रभु ! मेरा समस्त जीवन लेकर केवल एक दिन भारत (हिंद) के निवास का दे दो, क्योंकि वहाँ पहुँचकर मनुष्य जीवन-मुक्त हो जाता है। (5) वहाँ की यात्रा से सारे शुभ कर्मो की प्राप्ति होती है, और आदर्श गुरूजनों (गबुल हिन्दू) का सत्संग मिलता है
मुसलमानों के पूर्वज कोन?(जाकिर नाइक के चेलों को समर्पित लेख)

 स्व0 मौलाना मुफ्ती अब्दुल कयूम जालंधरी संस्कृत ,हिंदी,उर्दू,फारसी व अंग्रेजी के जाने-माने विद्वान् थे। अपनी पुस्तक “गीता और कुरआन “में उन्होंने निशंकोच स्वीकार किया है कि,”कुरआन” की सैकड़ों आयतें गीता व उपनिषदों पर आधारित हैं।
मोलाना ने मुसलमानों के पूर्वजों पर भी काफी कुछ लिखा है । उनका कहना है कि इरानी “कुरुष ” ,”कौरुष “व अरबी कुरैश मूलत : महाभारत के युद्ध के बाद भारत से लापता उन २४१६५ कौरव सैनिकों के वंसज हैं, जो मरने से बच गए थे।
अरब में कुरैशों के अतिरिक्त “केदार” व “कुरुछेत्र” कबीलों का इतिहास भी इसी तथ्य को प्रमाणित करता है। कुरैश वंशीय खलीफा मामुनुर्र्शीद(८१३-८३५) के शाशनकाल में निर्मित खलीफा का हरे रंग का चंद्रांकित झंडा भी इसी बात को सिद्ध करता है।
कौरव चंद्रवंशी थे और कौरव अपने आदि पुरुष के रूप में चंद्रमा को मानते थे। यहाँ यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि इस्लामी झंडे में चंद्रमां के ऊपर “अल्लुज़ा” अर्ताथ शुक्र तारे का चिन्ह,अरबों के कुलगुरू “शुक्राचार्य “का प्रतीक ही है। भारत के कौरवों का सम्बन्ध शुक्राचार्य से छुपा नहीं है।
इसी प्रकार कुरआन में “आद “जाती का वर्णन है,वास्तव में द्वारिका के जलमग्न होने पर जो यादव वंशी अरब में बस गए थे,वे ही कालान्तर में “आद” कोम हुई।
अरब इतिहास के विश्वविख्यात विद्वान् प्रो० फिलिप के अनुसार २४वी सदी ईसा पूर्व में “हिजाज़” (मक्का-मदीना) पर जग्गिसा(जगदीश) का शासन था।२३५० ईसा पूर्व में शर्स्किन ने जग्गीसी को हराकर अंगेद नाम से राजधानी बनाई। शर्स्किन वास्तव में नारामसिन अर्थार्त नरसिंह का ही बिगड़ा रूप है। १००० ईसा पूर्व अन्गेद पर गणेश नामक राजा का राज्य था। ६ वी शताब्दी ईसा पूर्व हिजाज पर हारिस अथवा हरीस का शासन था। १४वी सदी के विख्यात अरब इतिहासकार “अब्दुर्रहमान इब्ने खलदून ” की ४० से अधिक भाषा में अनुवादित पुस्तक “खलदून का मुकदमा” में लिखा है कि ६६० इ० से १२५८ इ० तक “दमिश्क” व “बग़दाद” की हजारों मस्जिदों के निर्माण में मिश्री,यूनानी व भारतीय वातुविदों ने सहयोग किया था। परम्परागत सपाट छत वाली मस्जिदों के स्थान पर शिव पिंडी कि आकृति के गुम्बदों व उस पर अष्ट दल कमल कि उलट उत्कीर्ण शैली इस्लाम को भारतीय वास्तुविदों की देन है।इन्ही भारतीय वास्तुविदों ने “बैतूल हिक्मा” जैसे ग्रन्थाकार का निर्माण भी किया था।
अत: यदि इस्लाम वास्तव में यदि अपनी पहचान कि खोंज करना चाहता है तो उसे इसी धरा ,संस्कृति व प्रागैतिहासिक ग्रंथों में स्वं को खोजना पड़ेगा……………………………..
भाइयो एक सत्य में आपको बताना चाहुगा की मुहम्मद को लेकर मुसलमानों में जो गलतफैमी है की मुहम्मद ने अरब से अत्याचारों को दूर किया … केबल अत्याचारियो को मारा , समाज की बुरयियो को दूर किया अरब में भाई भाई का दुश्मन था , स्त्रियो की दशा सुधारी … मुहमद एक अनपढ़ (उम्मी ) था …. आदि ..सत्य क्या है आप उस समय की जानकारियों से पता लगा सकते है … जब की उस समय अरब में सनातन धर्म ही था ..इसके कई प्रमाण है
१- जब मुहम्मद का जन्म हुआ तो पिता की म्रत्यु हो चुकी थी .. मा भी कुछ सालो बाद चल बसी .. मुहम्मद की देखभाल उनके चाचा ने की … यदि समाज में लालच , लोभ होता तो क्या उनके चाचा उनको पलते ?
२- खालिदा नामक पढ़ी लिखी स्त्री का खुद का व्यापर होना सनातन धर्म में स्त्रियो की आजादी का सबुत है… मुहमम्द वहा पर नोकरी करते थे ?
३- ३ बार शादी के बाद भी विधवा स्त्री का खुद मुहम्मद से शादी का प्रस्ताब ? स्त्रियो को खुद अपने लिए जीवन साथी चुने और विधवा स्त्री होने पर भी शादी और व्यापर की आजादी … सनातन धर्म के अंदर ..
४- खालिदा का खुद शिक्षित होना सनातन धर्म में स्त्रियो को शिक्षा का सबुत है
५- मुहम्मद का २५ साल का होकर ४० साल की स्त्री से विवाह ..किन्तु किसी ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया ..सनातन धर्म में हर एक को आजादी ..कोई बंधन नहीं
६- मुहम्मद का धार्मिक प्रबचन देना किसी का कोई विरोध ना होना जब तक सनातन धर्म के अंदर नये धर्म का प्रचार
७- मुहम्मद यदि अनपढ़ होते तो क्या व्यापर कर सकते थे ? नहीं ..मुहम्मद पहले अनपढ़ थे लेकिन बाद में उनकी पत्नी और साले ने उनको पढ़ना लिखना सीखा दिया था … सबूत मरते समय मुहम्मद का कोई वसीयत ना बनाने पर कलम और कागज का ना मिलना ..और कुछ लोगो का उनपर वसीयत ना बनाने पर रोष करना …
मुहम्मद को उनकी पत्नी ने सारे धार्मिक पुस्तकों जैसे रामायण , गीता , महाभारत , वेद, वाईविल, और यहूदी धार्मिक पुस्तकों को पढ़ कर सुनाया था और पढ़ना लिखना सीखा दिया था , आप किसी को लिखना पढ़ना सीखा सकते हो लेकिन बुद्धि का क्या ?…जो आज तक उसके मानने बालो की बुद्धि पर असर है .. जो कुरान और हदीश में मुहम्मद में लिखा या उनके कहानुसार लिखा गया बाद में , लेकिन किसी को कितना ही कुछ भी सुना दो लेकिन व्यक्ति की सोच को कोन बदल सकता है मुझे तुलसीदास जी की चोपाई याद आ रही है जो मुहम्मद पर सटीक बैठती है
ढोल , गवाँर ,शूद्र, पसु , नारी , सकल ताडना के अधिकारी …..
आप किसी कितना ज्ञान देदो बो बेकार हो जाता है जब कोई किसी चीज का गलत अर्थ लगा कर समझता है गवाँर बुद्धि में क्या आया और उसने क्या समझा ये आप कुरान में जान सकते है …. कुरान में वेदों , रामायण , गीता , पुराणों का ज्ञान मिलेगा लेकिन उसका अर्थ गलत मिलेगा ………
चलिए आपको कुछ रामायण जी से इस्लाम की जानकारी लेते है ………
ये उस समय की बात है जन राम और लक्ष्मण जी और भरत आपस में सत्य कथाओ को उन रहे थे .. तब प्रभु श्री राम ने राजा इल की कथा सुनायी जो वाल्मीकि रामायण में उत्तरकांड में आती है .. मै श्लोको के अनुसार ना ले कर सारांश में बता रहा हू ……
उत्तरकांड का ८७ बा सर्ग :=
प्रजापति कर्दम के पुत्र राजा इल बहिकदेश (अरब ईरान क्षेत्र के जो इलावर्त क्षेत्र कहलाता था ) के राजा थे , बो धर्म और न्याय से राज्य करते थे .. सपूर्ण संसार के जीव , राक्षस , यक्ष , जानबर आदि उनसे भय खाते थे .एक बार राजा अपने सैनिको के साथ शिकार पर गए उन्होंने कई हजार हिसक पशुओ का वध किया था शिकार में ,राजा उस निर्जन प्रदेश में गए जहा महासेन (स्वामी कार्तीय) का जन्म हुआ था बहा भगवन शिव अपने को स्त्री रूप में प्रकट करके देवी पार्वती का प्रिय पात्र बनने करने की इच्छा से वह पर्वतीय झरने के पास उनसे विहार कर रहे थे .. वह जो कुछ भी चराचर प्राणी थे वे सब स्त्री रूप में हो गए थे , राजा इल भी सेवको के साथ स्त्रीलिंग में परिणत हो गए …. शिव की शरण में गए लेकिन शिवजी ने पुरुषत्व को छोड़ कर कुछ और मानने को कहा , राजा दुखी हुए फिर बो माँ पार्वती जी के पास गए और माँ की वंदना की .. फिर माँ पार्वती ने राजा से बोली में आधा भाग आपको दे सकती हू आधा भगवन शिव ही जाने … राजा इल को हर्ष हुआ .. माँ पार्वती ने राजा की इच्छानुसार वर दी की १ माह पुरुष राजा इल , और एक माह नारी इला रहोगे जीवन भर .. लेकिन दोनों ही रूपों में तुम अपने एक रूप का स्मरण नहीं रहेगा ..इस प्रकार राजा इल और इला बन कर रहने लगे
८८ बा सर्ग := चंद्रमा के पुत्र पुत्र बुध ( चंद्रमा और गुरु ब्रस्पति की पत्नी के पुत्र ) जो की सरोवर में ताप कर रहे थे इला ने उनको और उन्होंने इला को देखा …मन में आसक्त हो गया उन्होंने इला की सेविका से जानकारी पूछी ..बाद में बुध ने पुण्यमयी आवर्तनी विधा का आवर्तन (स्मरण ) किया और राजा के विषय में सम्पुण जानकारी प्राप्त करली , बुध ने सेविकाओ को किंपुरुषी (किन्नरी) हो कर पर्वत के किनारे रहने और निवास करने को बोला .. आगे चल कर तुम सभी स्त्रियों को किंपुरुष प्राप्त होगे .. बुध की बात सुन किंपुरुषी नाम से प्रसिद्ध हुयी सेविकाए जो संख्या में बहुत थी पर्वत पर रहने लगी ( इस प्रकार किंपुरुष जाति का जन्म हुआ )
८९ सर्ग := बुध का इला को अपना परिचय देना और इला का उनके साथ मे में रमण करना… एक माह राजा इल के रूप में एक माह रूपमती इला के रूप में रहना … इला और बुध का पुत्र पुरुरवा हुए
९० सर्ग;= राजा इल को अश्वमेध के अनुष्ठन से पुरुत्व की प्राप्ति बुध के द्वारा रूद्र( शिव ) की आराधना करना और यज्ञ करना मुनियों के द्वारा ..महादेव को दरशन देकर राजा इल को पूर्ण पुरुषत्व देना … राजा इल का बाहिक देश छोड़ कर मध्य प्रदेश (गंगा यमुना संगम के निकट ) प्रतिष्ठानपुर बसाया बाद में राजा इल के ब्रहम लोक जाने के बाद पुरुरवा का राज्य के राजा हुए
- इति समाप्त
आज के लेख से आपके प्रश्न और उसके जबाब …..
1. इस्लाम में बोलते है की इस्लाम सनातन धर्म है और बहुत पुराना है ? और अल्लाह कोन था ? कलमा में क्या है ?
# भाई आसान सबाल का आसान उत्तर है की सनातन धर्म सम्पूर्ण संसार में था और लोगो का विश्वास धर्म पर बहुत गहरा था , मुहम्मद ने जब सनातन धर्म के अंदर ही अपने धर्म का प्रचार किया था तो लोगो ने विरोध नहीं किया था ..लेकिन जब उसने सनातन धर्म का विरोध किया तो उसको मक्का छोडना पड़ा था … मुहम्मद कैसा भी था लेकिन देश भक्त था बो चाहता था जैसे पूरब का देश (भारत) का धर्म सम्पूर्ण संसार में है और सब उसको सम्मान देते है वैसे ही बो अरब के लिए चाहता था …. लेकिन जब उसको अपने ही शहर से निकला गया तो बो समझ गया की सनातन धर्म को कोई खतम नहीं कर सकता है लेकिन बो इसका रूप बदल सकता है …जिससे लोगो में विद्रोह का डर भी नहीं रहेगा … जब उसने काबा को जीता और उसकी सारी ३६० मुर्तिया और शिवलिंग तोडा … उसको कुछ याद आया और उसने कुछ नीचे के भाग(शक्ति) को चांदी में करके काबा की दीवार से लगा दिया और अपनी गलती के लिए पत्थर को चूमा (क्युकि उसका परिबार कई पीडीयो से इसकी रक्षा और पूजा करता आ रहा था ) और बोला तो केबल पत्थर है और कुछ और नहीं …….
इस्लाम के बारे में 1372 साल पहले अस्तित्व में आया था. यह सर्वविदित है कि 7500 साल पहले से अधिक, महाभारत युद्ध के समय में, कुरूस दुनिया शासन. कि परिवार के घरानों के वारिस के विभिन्न क्षेत्रों दिलाई. पैगंबर मोहम्मद खुद को और अपने परिवार के वैदिक संस्कृति के अनुयायियों थे. विश्वकोश इस्लामिया के रूप में बहुत मानते हैं, जब यह कहते हैं: “के मोहम्मद दादा और चाचा जो 360 मूर्तियों स्थित काबा मंदिर के वंशानुगत याजक थे!”
(ये मेरे एक मुस्लिम मित्र ने बताया था ….. की …
“काबा” में जो ३६० बुत रखे थे वो किसी तुफ़ान में नही टुटे थे बल्कि उनको “मक्का फ़तह” के वक्त हुज़ुर सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने अपनी छ्डी से तोडा था…हर बुत को तोड्ते जा रहे थे और कुरआन की आयत पढते जा रहे थे सुरह बनी इसराईल सु.१७ : आ. ८१ “और तु कह कि अल्लाह की तरफ़ से हक आ चुका है और झुठ नाबूद हो चुका है क्यौंकि झुठ बर्बाद होने वाला है….. )
तो उसने ये बोलना शुरू किया की अल्लाह का कोई आकार नहीं है बो निराकार है …जो की सनातन धर्म का ही एक भाग है (वेद से) …
• अल्लाह कोन था ?
मोहम्मद का जन्म हुआ Qurayshi जनजाति विशेष रूप से अल्लाह (पार्वती ) और चंद्रमा भगवान (शिव)की तीन बच्चों (त्रिदेवी – काली(७) , गोरी (दुर्गा ८) , सरस्वती (ज्ञान की देवी) या कात्यानी (सिद्धि की देवी) को समर्पित किया गया था. इसलिए जब मुहम्मद अपने ही देवी धर्म बनाने का फैसला किया, और ७८६ (जिससे ओम भी बनता है)
चुकी मुहम्मद एक लुटेरा था इस कारण बो अल्लाह को मानता था केबल (जैसे डाकू माँ काली की पूजा करते है ) कारण था की उसने ये रामायण की कथा सुन ली थी जिस कारण बो भगवान शिव की पूजा से बच कर शक्ति की पूजा करता था …. क्युकि माँ पार्वती ने ही राजा इल को वरदान दिया था और शिव के कारण ही समस्या हुयी टी ऐसा शयद बो सोचता था … इस लिए बो अल्लाह (पार्वती) के निर्गुण मानता था … मुहम्मद से भारत का नाम धर्म से हटाने के लिए हिन्दू देवी देवताओ को इस्लाम के नवी और पैगम्बर बोलना शुरु कर दिया और सनातन धर्म से उल्टा काम करना … जैसे काबा के ७ चक्कर (उलटे ), आदि जिससे उसको जनता से कोई परेशनी नहीं हुयी जिससे हुयी उसको उसने खत्म कर दिया …
• दिन की जगह रात में पूजा .?..
क्युकि भगवान शिव और शक्ति की पूजा रात्रि में ही होती है और सनातन धर्म का नाम इस्लाम रख दिया कुछ समय बाद जब बहुत कुछ उसके हाथो में आ गया ….
• कलमा में क्या है ?
ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मद उर-रसूलुल्लाह इस कलमे का अर्थ मुहम्मद ने बताया है की ईश्वर एक है और मुहम्मद उसके पैगम्बर है … अब जब की सब जानते है की इला और इल एक थे , जिनकी पूजा होती थी और अल्लाह (पार्वती शक्ति ) थी ..और मुहम्मद शक्ति मत को मानने और फ़ैलाने वाले ,
2. इस्लाम के आदम और ईव कोन कोन थे ?
# इस कथा के अनुसार राजा इल की आदम था और बो ही ईव … क्युकि आदम से ही ईव पैदा हुयी ऐसा इस्लाम और ईसाई मत है …और बाद में आदम और ईव (राजा इल ) को अपना देश छोडना देना ..इस मत को सिद्ध करता है
3. इस्लाम में हरा रंग क्यों ? चाँद और तारा क्यों ?
# इस्लाम में अपने पूर्वजो को पूजता है ये जग जाहिर है … हिन्दुओ में सब जानते है की नव ग्रह ने बुध एक ग्रह है और बो स्याम वर्ण और हरा रंग पहनते है ज्ञान के देवता कहलाते है .. लकिन उनके जन्म पर कुछ अजीब किस्सा है जिससे कुछ मुस्लिम हिन्दू धर्म को बदनाम करते है जब की ये इसके ही पूर्वजो की कहानी है … चंदमा के द्वारा देवताओ के गुरु ब्रस्पति की पत्नी तारा के संयोग से उत्पन्न हुए थे जिसके कारण आज भी मुसलमान चाँद तारा को देख कर अपना रोजा खोते है और ईद मानते है .. साथ ही अपने झंडो और धार्मिक स्थान में प्रयोग करते है
4. क्यों शेख लोग ओरत और मर्द दोनों को पसंद करते है ? क्यों शेख स्त्री जैसे बोलते और रहते है ?
# जैसा की इस कथा से जाहिर है की भगवान शिव ने उस क्षेत्र को स्त्री लिंग में बदल दिया था … ये बाद मे शुक्राचार्य(दत्यो के गुरु) जी के आने के बाद सब सही हुआ था अन्यथा तो सब स्त्री में था जिस कारण सभी में स्त्री अंश रह गया है
5. क्यों किन्नर अधिकतर मुस्लमान होते है ?
# कथा के अनुसार किन्नर की उत्पत्ति राजा इल के सेवको का स्त्री में हो जाने के कारण हुयी ..जिनको बुध ने उसी क्षेत्र (पर्वत के पास ) रहने को बोला था
भाइयो ये सत्य मैंने किसी धर्म का मजाक उड़ने के लिए नहीं बताया है .. मैंने केबल सत्य को सामने लाना चाहता हू ..आज हमारे हिन्दू समाज में ही बहुत से लोग राम और कृष्ण के साथ साथ सम्पूर्ण सनातन धर्म को बदनाम करने की सोचते है … इस कारण इस ग्रंथो को और राम , कृष्ण को कल्पनिक बता कर या कभी .. सत्य का मजाक उड़ा कर सत्य को छिपाने की कोशिस करते है लेकिन जो सत्य है तो सूरज की तरह है जो बदलो से कुछ समय के लिए कुछ लोगो से छिप सकता है सब से नहीं और नहीं ज्यादा देर तक … संतान धर्म तो उस गंगा , यमुना की तरह है जो निरंतर बहता रहत है ..और लोगो को सही राह दिखता है ..जो निर्मल और पवित्र है … जिसमे सादा ही परिवर्तन ..समय के अनुसार होते रहे है … जो वैज्ञानिक और अधात्मिक दोनों रूपों ने सिद्ध है … यहाँ मैंने एक कथा बुध के जन्म की सुनायी है जो पुराणों से है लेकिन इसका अर्थ भी कुछ और है,

                                                      धन्यवाद '''
                                                     एक हिन्दू 

188 comments:

  1. द और कुरआन के समान सूत्रों के आधार पर भारत के हिन्दुओं और मुसलमानों के दरम्यान दिव्य एकत्व का बोध कराना जनाब के जीवन का एकमात्र लक्ष्य है।
    See this article-
    http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/BUNIYAD/entry/haj

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  2. Aap ki jankari adhbhut h sat main praman bhi adhbhut h aapka gyan adhbhut h itna khoj karke aapne ye Jo jankariyan do h iske liye dhanya waad

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  3. Jankariya itihaas m nahi mili balkI sate ka gyaan prat kar tap dwarf

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  4. Jankariya itihaas m nahi mili balkI sate ka gyaan prat kar tap dwarf

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  5. दोस्त हमारे पूर्वज हिब्रू भाषा बोलते थे।हिब्रू मे लाह् का मतलब होता है नमी यानि ह्यूमिडिटी यानि गैस यानि की परमाणुओं का मिश्रण।आज जो धरती हा ये पहले तरल थी।उससे भी पहले गैस थी।सूर्य आज भी गैस का गोल है।सूर्य भी एक गेलैक्सि का हैड्स है जो की एक गैस अवश्था है।इस तरह आप ध्यान दे तो पूरा ब्रह्माण्ड एक गैस के संयोजन से बना।यानी की साइंस कहती हा की दुनिया की शुरुआत गैस से हुई।अब किसी भी घटना या क्रिया या गुण के होने से भी पहले हिब्रू भाषा ''जो की हमारे की भाषा थी'' में अल लगाया जाता था ।इसप्रकार धरती के पुराने लोगो ने इश्वेर को पुकारा हे नमी से भी पहले यानि अल+लाह=अल्लाह् तो इसमें गलत क्या है।हम नहीं जानते अल्लाह का मतलब ओर अपने इश्वर यानि अल्लाह को कुछ भी अनाप सनाप बोलते है।भाई कोई शक्ति नमी से पहले थी तभी तो उसने नमी को पैदा किया ईश्वर ने ही तो अपनी संकल्प शक्ति से नमी को पेड़ किया यानि नमी से पहले कोउ शक्तिमान था बस उसी को हम संस्कृत ,हिंदी भाषा मे ईश्वर कहते है और हिब्रू मई अल्लाह ।उम्मीद करता हु की अब कोई मेरे ईश्वर यानि मेरे अल्लाह को गली नहीं देगा नहीं उन्हें कोई गलत बोलेगा और न ही उन्हें कोई देवी या देवता कहेगा।क्योंकि गीता में लिखा हा की जो इश्वर को भजते है उन्हें ही मोक्ष मिलता है देवताओं की पूजा करने वाले जनम मृत्य के जाल में फंसे रहते है और कभी मोक्ष नहीं पाते।

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    1. namah plus ja means namaj, arthat namaj shabd ki utpatti namah yani namaskar se hui hai,,,,,ek baat aur mere dost aaj ki arabi lipi to hindu anka paddhati ka hi roop hai ,,yeh to siddh ho chuka hai,,,,,,,,

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    2. Rb kashyap sub jante hai ki hamare desh mai kuchh dalit janbhoojh kr hindu dhrm ka mjak udate hai.agr tujhe allah itna hi pyarahai to islam kbool kr le.adhiktrdalit bodhdhrm apna letehai lekin islam nahi.
      Kyo?
      Dusari baat yesahi hai ki iswar ak hai jo ki bisnu hai lekin baaki dewata unke ansh hai.unmaihi nihit hai
      Isliye visnu ji ne sri krisn ka, rAM ji ka,
      For exmple
      Tu ye to manta hoga ki tera kull ak hai
      Lekin tu apne baap ke alwa apne baap ke bhai ko chacha ya tao kyo bolta hai?
      Agrteri sistar ki sadi kisi se hoti hai to usse jeeja kyo bolta hai
      Ans is
      Kyo tere baap ka bhaitere kull ka ak ansh hai theekwesehijese kisi ped se sakhaye nikalti hai lekin ped to ak hi hota hai
      Theek wese hi jinhai hum bhagwan mante hai wo suprim lord visnu ji ka ansh hai
      Dusrari baat kuran aur mohhamad kehta hai ki iswar ka aakar nahi hota matlab unvisibal hai
      To ak baat btao ki agr light dikhati hai to electric instrumant mai zig zag ya dashdadh ke simbla mai ko dikhti hai
      Jabki light ko wire mai behte huye kisi ne dekha nahi hai lekin light ko hum feel jrsakte hai agr wire ko chuuye jismai currant fallow ho rha ho.thhek usi prkar iswar ak hai suprim lord visnu baaki unke part hai.

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  6. aapki problem pata hai kya hai ! aap (islam) ye sochte ho jisko main manta hun wahin ishvar hai baki sab ishvar ko nhi kisi or ko maan rahe hain isliye sabko islam dharm apna lena chahiye magar ye such nahi hai subke tarike alag -alag ho sakte hain magar manjil ek hi hai ishvar , khuda , rab , ! Sabhi dharmo me ishvar ek hi hai chahe wo sanatan ( hindu) dharm ho ya islam dharm ho isai ya sikh jain bodh yahudi koi bhi dharm ho ! sab ne alag alag tarika ya alag alag rasta pakad rakha hai per jana use ishver k ghar ! Per islam iska mukhar virodhi hai wo kahta islam k apnaye bina khuda nhi milega ! Jo ki galat chij hai ! Islam ko sabhi dharmo ka sammaan karna chahiye ! Islam me ye likha hai islam me wo likha tum isko mante kyun nahi ho tumhe dojak nasib hogi ! Iski kya garunty hai islam manne se jannat nasib hogi ! Aree jis dharm ka ithihas 1500 saal purana hai bus... yani isse pehle to sab dojak me hi ja rahe the nahi isse pehle bhi dharm tha jiska naam tha sanatan dharm ! Shree kirshan k potte subahu ne shree krishan se jhagda karke alag dharm ki rachna ki jo aage chalkar islam kahlaya ! Islam ek trah se sanatan dharm ka virodhi dharm hai bcoz subahu shree kirshan se jagda ke makka madina gaya ! Waha pr usne sanatan se ulte dharm k niyam banaye jaise: - ulte haath dhona , jivhatya , sirf dadhi rakhna muchh nhi rakhna ityaadi - ityaadi !

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    1. to phir bhaisahab aapki bhi yehi dikkat hai ki aap puri duniya ki sabhyataon ko sanatan dharm ke chashme se hi dekhna chahte hai. haalaki jeev hatya ka bahut pukhta itihas aur praman sanatan dharm me maujood hain aur ye dharm ka hissa bhi the.
      the complete works of swami vivekananda me padhiye swami vivekanda bhi ye mante hain ki vedic kaal me maans bhakshan karna higher class society ki pehchaan thi haalanki ab modern hindu samaj ise bura maanta hai. puratan sanatan dharm grantho ya vedic grantho me atapi vatapi ki kahani bhi padhiye jisme rishiyo ke maans bhakshan ke bare me ullekh hai,kaise agast rishi ne vatapi ke maans ko pachaya ye bhi padhiyega... aur aise kai udaharan hai jise khud vedic scholars ne apni kitabo me likha hai.. rahi subahu ki baat to is jhagde me bhi shri krishna hi sahi baat par the ye maanana kya is baat ka sabut nahi ki aap bhi ek prakar ke purvagrah se grasit hain.

      dharm apne ghar ki chahardiwari me practice kijiye bahar ek insan ki tarah sabko barabar rakhiye.

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  7. dear ajit pratap singh
    अगर आप वास्तव में सुख चैन की तलाश कर रहे हैं तो आप यकीनन पा सकते हैं
    जहाँ तक आपके लेख की बात है तो में कहूँगा की इन्सान को हमेशा लिखते रहना चाहिए
    लेकिन आप ने अपने लेख के शुरू की पंक्तियों में लिखा है की मुस्लिम हिन्दुओं के ठीक विपरित बात करते हैं में आप की बात से सहमत नहीं हूँ क्योंकि इस्लाम का मेसेजहै सदा सत्य बोलो क्या हिन्दू हमेशा झूट बोलता है क्योंकि मुस;लिम तो हमेशा सत्य की बात करता है दूसरी बात मुस्लिम कहता है इश्वर एक है हिन्दू भी कहता है इश्वर एक है परंतुरूप अनेक हैं तो बात तो एक इश्वर की है न रूप की तो बात ही नहीं है जिसको जिस रूप में मानना हो माने किसिस को क्या इश्वर तो एक ही है क्या हिन्दू ये नहीं मानता मेरा मानना ये है की आप भ्रांतियों का शिकार हैं जीवन में एक सत्य को हमेशा अपने से जोड कर देखिये की संसार का कोई धर्म मेला नहीं है केवल मन मेला होता है इसीलिए कबीर ने कहा है बुरा जो देखन में चला बुरा न मिल्या कोई जो दिल खोजा आपना तो मुझसे बुरा न कोई
    और तीसरी बात के वास्तव में मनुष्य वाही है जो अपने ज्ञान के स्तर तक बात करे और जिस बारे में न जनता हो उसके बारे में तब तक न बोले जबतक की उसे पूरा ज्ञान न हो जाए यदि आपको इस्लाम के बारे में जानकारी चाहिए तो आप कभी भी इस्लाम का पूर्ण ज्ञान रखने वाले से संपर्क करें कोई हिन्दू भाई या क्रिश्चन या जैन या बुद्ध या इस्लाम के अधूरे ज्ञान वाला व्यक्ति से नहीं क्योंकि हर व्यक्ति के अपने ज्ञान का स्तर होता है वो वन्ही तक बात कर सकता है उम्मीद है जब कभी आप या अन्य कोई ये बात पढ़ेगा समझ ही जाएगा
    में इश्वर से आप सब के उज्वल भविष्य की कामना करता हूँ की इश्वर हम सब को सत्य का मार्ग बताए

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    1. आपकी बात सही होती अगर ये न होता क़ि क़ुरआन के न मानने वालो को जीने का हक़ नहीं है ।।
      सोचिये क्यों हर मुस्लिम कंट्री कत्लोगारद के दौर से गुज़र रही है , क्यों कुछ लोग 72 हूरो के ख़याल में अपने को ही क़त्ल कर रहे हैं, क्यों दूसरी औरतो को मुता के तहत लूटा जा रहा है ।

      क्या ये काफी नहीं क़ि ये धर्म और शरियात के नाम पे केवल लूटना ,क़त्ल करना और बलात्कार /रेप को जायज ठहराने का काम कर रहा है ।
      खुदा क्या मज़लूमो को बम मार कर मिलता है ?
      सोच कर देखिए ..पिछले 700 सालो में खुदा के नाम पर कितने घर तबाह हो गए और आज भी हो रहे हैं ।
      वक़्त रहते आदमियत के बारे में सोचना शुरू कर दीजिये वर्ना वो दिन दूर नहीं जब पूरी दुनिया सीरिया बन जायेगी । रेफ्यूजेयो के लिए कोई जगह नहीं बचेगी , न यूरोप न हिन्दुस्तान । एक आदमी सबको गुलाम बना लेगा,वो भी खुदा के नाम पर ।
      अल्लाह ये कभी नहीं चाहता कि अशरफुल मखलूक किसी का गुलाम बने ।

      और शायद आप भी .....

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    2. आपकी बात सही होती अगर ये न होता क़ि क़ुरआन के न मानने वालो को जीने का हक़ नहीं है ।।
      सोचिये क्यों हर मुस्लिम कंट्री कत्लोगारद के दौर से गुज़र रही है , क्यों कुछ लोग 72 हूरो के ख़याल में अपने को ही क़त्ल कर रहे हैं, क्यों दूसरी औरतो को मुता के तहत लूटा जा रहा है ।

      क्या ये काफी नहीं क़ि ये धर्म और शरियात के नाम पे केवल लूटना ,क़त्ल करना और बलात्कार /रेप को जायज ठहराने का काम कर रहा है ।
      खुदा क्या मज़लूमो को बम मार कर मिलता है ?
      सोच कर देखिए ..पिछले 700 सालो में खुदा के नाम पर कितने घर तबाह हो गए और आज भी हो रहे हैं ।
      वक़्त रहते आदमियत के बारे में सोचना शुरू कर दीजिये वर्ना वो दिन दूर नहीं जब पूरी दुनिया सीरिया बन जायेगी । रेफ्यूजेयो के लिए कोई जगह नहीं बचेगी , न यूरोप न हिन्दुस्तान । एक आदमी सबको गुलाम बना लेगा,वो भी खुदा के नाम पर ।
      अल्लाह ये कभी नहीं चाहता कि अशरफुल मखलूक किसी का गुलाम बने ।

      और शायद आप भी .....

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    3. अत-तौबा (At-Tawbah):5 - फिर, जब हराम (प्रतिष्ठित) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है

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    4. वैसे भी इतने दिनों से चैट हो रही मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि

      कुरान, हदीस की असलियत को मुसलमान कैसे छुपाता है

      झूठ के बोझ को संभालने के लिए मुसलमान कैसे
      रात दिन एक कर देते है ,एक आनलाइन डिबेट मे
      इसका नमूना देखिए :-

      . 1) इस्लाम की पोल खुलने पर सबसे पहले मुस्लिम
      बोलते है कि ये सब तथ्यहीन आधारहीन
      है ,अज्ञानता है ,इस्लाम मे कोई
      जबरदस्ती नही है! अगर आप रैफरेंस देंगे वो सिरे
      से
      नकार देंगे और आपको पूरी तरह कुरान
      स्टड़ी करने
      को बोला जायेगा तभी रोशनी मिलेगी ! .

      2)अगर आप कुरान और हदीसो के हवाले देंगे
      तो आपको बोलेगे कि तुमने आयते
      अधूरी समझी है ,आयतो को गलत संदर्भ मे
      लिया है और उन आयतो मे लडाई का मतलब उस
      समय के युद्ध से था । (यानि इससे मुस्लिम यह
      दिखाना चाहते है कि अब हम दुनियाभर मे
      जेहाद नही कर रहे है) .

      3)अगर आप संपूर्ण आयतो और
      हदीसो का हवाला देंगे तो वो कहेंगे
      आपका अनुवाद गलत है और आपको अरबी सीखने
      के साथ आरिजनल वर्जन पढ़ने
      को बोला जायेगा ! .

      4)अगर आप कहेंगे कि आप अरबी भी जानते है
      साथ ही आपके पास प्रमाणित अनुवाद और
      सारी जानकारी उन्ही प्रमाणित रिसोर्स
      से है जिससे सर्वश्रेष्ठ मुस्लिम स्कालर्स
      हवाला देते है ,तो मुसलमान कहेंगे कि हदीसे
      पढ़ना भी जरूरी है … अगर आप
      हदीस से सच
      साबित करेंगे तो वे कहेंगे कुरान ही एकमात्र सच
      है ! .

      5)इन सबके बाद अगर आप जारी रखते है तो वे इस
      मुद्दे से बात घुमाने के लिये दूसरे टापिक उठायेंगे
      जैसे
      गरीबी ,इंसानियत ,शांति ,फिलिस्तीन ,इजराइल ,अमेरिका .

      6)अगर आप कहेंगे कि कुरान इंसान ने लिखी है
      तो वे Dr Bucalie की किताब
      का हवाला देकर सुनिश्चित करेंगे कि कुरान मे
      विज्ञान भी है ! .

      7)जबकि असल मे Dr bucalie सऊदी अरब से पैसे
      लिया करता था और Dr bucalie को कई
      विशेषज्ञो ने गलत और झूठा साबित कर
      दिया है ! .

      8)अब फिर मुस्लिम बोलेंगे कि ये सब वैस्टर्न
      मीड़िया का प्रौपगेंड़ा है इस्लाम
      को बदनाम करने का ! .

      9)अगर आप फिर भी सच सामने लायेंगे
      तो मुस्लिम कुतर्को पर उतर आएंगे और दूसरे
      मजहबो मे की किताबो मे कमियां निकालेंगे
      जैसे बाइबल ,तोराह ,वेद गीता आदि ! .

      10)लेकिन हद तो यहा है कि जिन
      किताबो को ये नही मानते
      उन्ही किताबो मे ये अपने मोहम्मद
      जी को अवतार भी दिखायेंगे (जैसे वेदो मे
      मुहम्मद को दिखाना).. और इस्लाम
      को जबरदस्ती विज्ञान से जोड़गे! (मतलब
      किसी भी तरह से हर हाल मे इस्लाम और
      मौहम्मद जी की मार्केटिंग करते रहते है ! इस
      तरह ये हमेशा काफिरो को थकाकर और
      उलझा कर रखते है !) .

      11)अगर आप न रूकेतो मुसलमान
      द्वारा आपको जाहिल झुठा ,कुत्ता ,जालिम
      वगैरह के साथ मां बहन की गाली और
      निजी हमले किये जायेंगे .. .

      12)अब मुस्लिम रट्टा लगायेंगे कि “इस्लाम
      तेजी से फैल रहा है “लेकिन जैसे ही सच्चाई
      सामने लायी जाये तो ये चिल्ला भी पड़ेंगे
      “इस्लाम खतरे मे है !” .

      13)अगर फिर भी आप असली मुद्दे पर अड़े रहेंगे
      तो मुसलमान बोलेंगे तुम जहुन्नम मे
      जाओगे …आखिरी दिन तुम्हारा हिसाब
      होगा …तुम पर अल्लाह का आजाब
      होगा ..अल्लाह तुम्हारे साथ ये कर देगा..
      वो कर देगा ,वगैरह वगैरह! .

      14)और आखिर मे जब सब फेल
      हो जायेगा तो अब मुसलमान धमकाने पर आ
      जायेंगे जैसे तुम्हे देख लूंगा,बचके रहना ,अपना नंबर
      और एड्रेस बताओ ! .

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    5. You right I'm so happy ,apne sahi bola me Bhi bahut din se ye sab ki chaan bin kar raha hu, apne jo bola bilkul sahi bola

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    6. You right I'm so happy ,apne sahi bola me Bhi bahut din se ye sab ki chaan bin kar raha hu, apne jo bola bilkul sahi bola

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    7. Ajitji ne shayad science nhi padhhi hui he tabhi wo ultey kam ki bat kertey he wo bharat me rehtey he rajsthan me pani nhi north east me excess pani he ..lota me tooti ku he unko pta hi nhi he , tex aad me ultey tawe per roti ku banayi jati he ye dikhata he ki science ki unki knowledge na k beraber he , nhi to wo ye panktia nhi likhey

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  8. dear ajit pratap singh
    अगर आप वास्तव में सुख चैन की तलाश कर रहे हैं तो आप यकीनन पा सकते हैं
    जहाँ तक आपके लेख की बात है तो में कहूँगा की इन्सान को हमेशा लिखते रहना चाहिए
    लेकिन आप ने अपने लेख के शुरू की पंक्तियों में लिखा है की मुस्लिम हिन्दुओं के ठीक विपरित बात करते हैं में आप की बात से सहमत नहीं हूँ क्योंकि इस्लाम का मेसेजहै सदा सत्य बोलो क्या हिन्दू हमेशा झूट बोलता है क्योंकि मुस;लिम तो हमेशा सत्य की बात करता है दूसरी बात मुस्लिम कहता है इश्वर एक है हिन्दू भी कहता है इश्वर एक है परंतुरूप अनेक हैं तो बात तो एक इश्वर की है न रूप की तो बात ही नहीं है जिसको जिस रूप में मानना हो माने किसिस को क्या इश्वर तो एक ही है क्या हिन्दू ये नहीं मानता मेरा मानना ये है की आप भ्रांतियों का शिकार हैं जीवन में एक सत्य को हमेशा अपने से जोड कर देखिये की संसार का कोई धर्म मेला नहीं है केवल मन मेला होता है इसीलिए कबीर ने कहा है बुरा जो देखन में चला बुरा न मिल्या कोई जो दिल खोजा आपना तो मुझसे बुरा न कोई
    और तीसरी बात के वास्तव में मनुष्य वाही है जो अपने ज्ञान के स्तर तक बात करे और जिस बारे में न जनता हो उसके बारे में तब तक न बोले जबतक की उसे पूरा ज्ञान न हो जाए यदि आपको इस्लाम के बारे में जानकारी चाहिए तो आप कभी भी इस्लाम का पूर्ण ज्ञान रखने वाले से संपर्क करें कोई हिन्दू भाई या क्रिश्चन या जैन या बुद्ध या इस्लाम के अधूरे ज्ञान वाला व्यक्ति से नहीं क्योंकि हर व्यक्ति के अपने ज्ञान का स्तर होता है वो वन्ही तक बात कर सकता है उम्मीद है जब कभी आप या अन्य कोई ये बात पढ़ेगा समझ ही जाएगा
    में इश्वर से आप सब के उज्वल भविष्य की कामना करता हूँ की इश्वर हम सब को सत्य का मार्ग बताए

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    1. मुझे तो कुछ पता नहीं पर
      मै एक वैज्ञानिक सोचने वाला हु
      मै सभी धर्मोका अभ्यास किया तब मुझे पता चला की धर्म की निर्मिति मानव निर्मित है परन्तु एक अपवाद है वो है "हिन्दू"
      इस के प्रमाण बताता हु
      1)बाली, इंडिनेशिया
      यहाँ 5000 साल पुराणी विष्णु जी की समुन्दर में बनायीं गयी मूर्ति है ।
      हैरान करनेवाली ये बात है 5000 वर्ष पूर्व पाणी में रहकर काम करने की तकनीक नहीं थी तो मूर्ति कैसे बनायीं

      2) ज्वालादेवी, हिमांचल प्रदेश
      ये भी मंदिर 5000 वर्ष पूर्व बनाया गया है
      विशेषता:- यहाँ नव ज्योति है वो बिना ईंधन से अविरत जल रही है
      वैज्ञानिक दृष्टी से देखे जाये तो कोई चीज जलती है तो ज्वलनशील पदार्थ चाहिए चाहे लकड़ी, गॅस, जो भी जलानेवाले परन्तु ये अपनेआप जलती है

      3)अमरनाथ,
      यहाँ तो अपने आप शिवलिंग बनते है ये सोचनेवाली बात है

      4) पूरी मंदिर
      यहाँ का पताका हवे की विपरीत दिशा में लहराता है और मंदिर के ऊपर से ना पंछी जाते है ना हवाई जहाज

      भाई साहब हिन्दू धर्म तो सनातन है क्यो की
      मुहम्मद, गौतम बुद्ध, येशु, ऋषभदेव,एक पहले
      गीत, रामायण ,वेद लिखे है और आज तक उत्खनन में वो हिन्दू मंदिर -5000
      बाकि जो भी मिले 2500 के पहले के

      इसका प्रमाण है ही हिन्दू सनातन है वैज्ञानिक तरीके से

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    2. अत-तौबा (At-Tawbah):5 - फिर, जब हराम (प्रतिष्ठित) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है

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    3. अत-तौबा (At-Tawbah):5 - फिर, जब हराम (प्रतिष्ठित) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है

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    4. Kabir ne kaha h bura jo dekhan mai chala wala dialog muhammad pe v lagu hota h jisne murtiya tod kr alag hi dharm ka raag alap krna suru kr diya.
      Jaha tak baat h Islam ki wo kisi majhab k upar thopi gai ek dusri vichardhara h jise god ki echha bata k logo ko satisfy krne ka asafal prayas kiya gya h.
      Aaj result samne h sabhi muslim desh aur Islam ko manne wale atankwadi bante ja rhe h.
      Kahne ko Islam achhi sikchha deta h but muslim aatankwadi kyu bante ja rhe h.
      Charo traf hi nsa kyu faili ja rhi h.
      God ne to nabiyo ko paigambaro ko tab tab bheja h jab jab kuch galat huaa h dharti pe.
      Abhi kya galat ni ho rha kya??
      Sach to ye h ki dhram k naam pe ensaan ko hamesa hi vewkuf banaya gya.
      Alag alag time pe alag alag logo ne naye naye dharm bana k rotiya seki h.
      Gulamo ki fauj kadhi ki h.
      Aaj sabhi gulam h jo kisi v trah kisi v god ko mante h.
      Agr God hota to wo khud chal k ata apne bete betiyo se milne k liye khud apni baat unke samne rakhata.
      Kisi tisre anpadh logo ko ni bhej deta.
      Aur agt aisa krta to uski gulami discard kr drni chahiye aise VVIP God ki aisi ki taisi jise etni v fursat ni ki apne banaye bete betiyo se mil sake.
      Agr wo nirgun h wo waise hi hame uski gulami ni krni chahiye coz wo na to bol sakta h na kuch kr sakta h
      Jab uska khud hi akar ni h to to wo dusro ko kya akar de sakta h.
      Human sabhi jivo me budhijivi h jisne v es kalpanik god ko discard kiya usne ensano ko sukh aur suvidha di jaise ki scientist. Aaj jo v sukh suvidhaye ham use kr rhe h wo science ki den h jabki dharm ne scientisto ko hamesa hi discrad kiya h.
      Agt ham dharm ki baat kre to rsne aaj tak hame kya diya kuran jise manne wale sabhi aatanwad ko pariposit kr rhe h. Ved aur puran jise mannr wale brahman aur sudra aut achhut mr ensaan ko baat dete h.
      Krischian to sata ki bhuk k liye dusre deso ko vinas krte rahte h.
      Ab samay aa gya h human ko human ki tah sochne ka na ki gulam kibtrah.
      Ek dharm ko manne wala gulam hibh jo hajaro saal purami outdated bato ki gulami god k naam pe krta rhata h.
      Ensaan bane dharm ko hataye gloabal bane. Kattarta se bache.
      Yahi humanity h God sayad ye baat kahne se bach gya tha coz wo h hi ni to kahta kaise.
      Uske naam pe bahuto ne bahut malai khai h.
      By cut aal farzi dharms. Be human .

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  9. Javen sahab, sahi baat.. Ajit Pratap only described the traditions of Muslims not things. Please don't be confused and feel bad and think about the same.

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  10. Bhai saab mere liye to sab barabar h. Hindu bhi apna. Muslim bhi apna. Sikh bhi apna.cristen bhi apna....or aap log pagal h jo apni ray dete h..

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    1. aap shayad jamin par nahi hava mein rahte hain,,,,,,,,,One must know the real truth,

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    2. Devendra ji u r right.
      But islam k accorng apko kafir kaha gya h.
      Hindu dharm apko brahaman chhatiya veshaya sudra kah sakta h.
      Krischiyan apko higher ya lower ya fir middle class me divide kr dega.
      Ab aap hi socho dharm hame kya de rha h.

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  11. Me to itihas par depend rhta hu itihas ko koi bhula nhi skta

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  12. Me to itihas par depend rhta hu itihas ko koi bhula nhi skta

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  13. सिफ़ाते जलाले ख़ुदा

    ख़ुदा हमेंशा से है और हमेंशा रहेगा वह समस्त नुक़्स व ऐब से पाक व पवित्र है। प्रत्येक कम व बेशि से दूर है, वह उपस्थित जैसी उपस्थित नहीं है कि शरीर का मोह्ताज हो या विभिन्न प्रकार किसी आज ज़ा से पैदा नहीं है कि किसी स्थान को पुर करे या क़ाबिले लम्स या दिख़ाई देता हो वह न पृथ्वी में दिख़ाई देगा और न आख़ेरत में।
    वह कोई उपस्थित चीज़ नहीं है की क़ाबिले परिवर्तन या परिवर्धन हो, और उस में कोई मद्दि शैई प्रवेश कर नहीं सकती, और यही वजह है की वह व्याधि में नहीं पढ़ता, उस को भूक नहीं लग्ती, निन्द नहीं अती, अल्लाह पर बूढ़ापे व जवानी का कोई प्रभाब नहीं होता।
    वह ला-शरीक है यानी उस का कोई शरीक नहीं है, बल्कि वह एक है, जो उस के सिफ़ात है वही उस की ज़ात है, वह हमारे जैसा मख़लूक़ नहीं है अल्लाह प्रत्येक चीज़ से पाक व पवित्र है। और उस को किसी चीज़ की जरुरत नहीं पड़ती और न परामर्श की ज़रुरत और न सहायता, उज़िर, न लश्कर, माल, सर्वत की ज़रुरत पड़ती है।
    पेर्मेश्वर को मे- खुदा उर्दु मे अल्लाह अरबी मे जनता हूँ

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    1. सही कहा ।

      हमे ही उसे मानना और जानना है ।

      और इंसानियत को ये बताना है , बिना कत्लोगारद और औरतो की इज़्ज़त को नुक्सान पहुचाये ।

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    2. जनाब अली वाले

      हे होगई हवा में बातें इस बात को कोई सबूत या तर्क की जरुरत नहीं है...!!!
      ये सेम बाते हिंदू भगवान के बारे में करेंगे उसको भी कोई सबूत या तर्क नहीं होगा
      लेकिन
      यंहा पर पुरातन धर्म और संस्कृति की बात चल रही है
      लेखक ने लेखक यंहा सबूतो के साथ बात कर रहा है की इस्लाम का अस्तित्व 1400 सालो से पुराना नहीं है

      आपको उनको ये बताना चाइये की 1400 साल पहले इस्लाम के बारे में कहा और कोनसी किताब या ग्रन्थ में उल्लेख आया है

      तर्कहिन् बातो को कोई सबूत की जरुरत नहीं होती है
      लेखक जैसे हिन्दू धर्म के बारे में बताते है की कोनसी गुफा में कोनसा चित्र या कोनसा शिलालेख है जो साइन्टिफिकलि 5000 साल पुराना है तो वो हो गया सबूत

      आपके बारे अगर पैगंबर साहब का जन्म ही 1400 साल पुराना है और आप अगर कहना चाहोगे की इस्लाम दुनिया की शुरू से है तो आपको भी कोई ग्रन्थ या कोई शिलालेख या ऐसा ही कुछ सबूत के तौर पर सामने लाना होगा

      मुझे इस बात से ज़रा भी संदेह नहीं है की इंसान ने भगवान और धर्म को जन्म दिया है

      लेकिन बात सिर्फ इतनी है की पुरातन धर्म और संस्कृति कोनसी है....!!!

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    3. Janab ali wale kisi god ya alla ko aap define na kre jab uska koi akar hi ni h na naak h na kaan h na aakh h to wo chhamashil kaise h aur kaise islam ko manne wale kattar muslimo ki gunaho ko maaf karega.
      Kaise maulabi use define krte h jab use kisi ne dekha hi ni.
      Jab muhamad ne khud use ni dekha tha to define kaise kr sakye ho us kalnik god ki???
      Kewal hawa me batr kr dharm kibrotiya sekni band kro.

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  14. शुरु ईश्वर के नाम से जो बड़ा क्रपालु ओर सबसे ज्यादा दयावान हें
    अजीत प्रताप सिंह राजावत जी
    जो ईश्वर को जनता हें ओर उसकी वाणी समझता हें
    अभी आप उस उंचाई पर नहीं पोह्चे हें
    कुरान ईश्वर की किताब हें या नही
    पढ़िये समझ जाएँगे क्यू की कुरान मे एक ईश्वर को ना मानने वालो को काफिर (नास्तिक) कहाँ गया हें
    सनातन धर्म मे भी यही कहाँ हें
    मूर्ती पूज व्यर्थ हें
    सनातन धर्म मे भी यही कहाँ हें
    अब अगर ईश्वर के संदेश वाहक (पेघम्बर)हजरत मोहम्मद स.अ.स. मूर्तियों को तोड़ दे ओर ईश्वर के नाम पे झूट बोलने वाले पूजारी को बिना किसी खून ख़राबे के एक ईश्वर का अनुयायी बना दे !तो ये कर्म ईश्वर का आदेश ही हें
    और लॉगों ने उनकी बात शुरू मे नहीं मानी
    तो सूखा क्यू पड़ा और मदीने मे उनका स्वागत क्यू हुआ क्या पेहले से कोई मदीने मे मुसलमान था
    नही जहाँ पाप अधिक होता हें वहाँ ईश्वर अपना दूत भेजता हें
    आप समझदार हें खुद से पूछिए क्या कुरान से बेहतर किताब आपके पास हें
    आपके पास अधूरा ज्ञान हें
    पेहले चालीस दिन अपना शरीर साफ रखे
    और उन्हीं 40 दिनो तक अपने खून पसीने की कमाई यूही रोटी ही खाए आपको तब खुद ही सही सोच प्राप्त होगी
    धन्यवाद

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    1. एक बात है मूर्ति पूजा शायद व्यर्थ हो मगर कोई जीसस कोई वली कोई ख्वाज़ा कोई नानक कोई पैगम्बर कोई कुछ और ,, को मानता है । ये सब क्या है । क्यों कोई किसी ख़ास को मानता है अगर उपर वाला एक ही है ।

      इंसानियत का क़त्ल क्यूँ होता है हर रोज़ , मानने और न मानने के नाम पर ।।

      क्या यही धर्म है ?

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    2. एक बात है मूर्ति पूजा शायद व्यर्थ हो मगर कोई जीसस कोई वली कोई ख्वाज़ा कोई नानक कोई पैगम्बर कोई कुछ और ,, को मानता है । ये सब क्या है । क्यों कोई किसी ख़ास को मानता है अगर उपर वाला एक ही है ।

      इंसानियत का क़त्ल क्यूँ होता है हर रोज़ , मानने और न मानने के नाम पर ।।

      क्या यही धर्म है ?

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    3. Ali wale tujhe kaise pata h god k bare me jab use kisi ne dekha hi ni.
      Jab khud use mil lena tab uske vichar share krna. Abhi bina jankari k hawa hawai bato se parhez rkho ni to allah bhramak jankari dene k katan tumhe dogaj me bhej dega jaha aaj ki lapto me jal jaogr.

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    4. aa gaye na asal baat par ki shayad murtipuja vyarth ho apne dharmgrantho ko padhoge to kitne hi shayad lag jayenge....
      rahi baat katlo gaarat ki to islam ye nahi sikhata.

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    5. Dear unknown tmne kha Allah ko nhi dekha to kaise mane k Allah h so is hisab se hmne hawa ko v nhi dekha fr v hawa to hnare charo Or h use kaise mante ho? Chalo ab aate h tmhri murtiyo pr kya tmne khud dekha apne shiv ram krisha Vishnu brahma etc ko? Fr murtiya sahi h tm kaise kah skte ho thoda logically sochna suru kro

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    6. Kuch baate kyran me dusre dharmo ki fix ki h .n khud khud Mohammad ne apni taki mera naam rahe...n kafir b book me un muslim jo unki kuran ki baate nai mante thae....phir ye log hindu n other religion ko kafir bol k mar dete h

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    7. ajitji ne kafi mehnet ki but pahuchey wo kahin bhi nhi he

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  15. aap ne achhi likhi hai bhai par aap such me bahut bade bebkuf hai.....!
    aaj apne ye sabit kar diya..!

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  16. जानकारी दीजिये हम जानकारी चाहते़ हैं.सत्य तो एक ही होगा

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  17. आप के बातों का समर्थन कर्ता हु। जिसे ऐतराज हिन्दुस्तान छोड दें

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    1. This comment has been removed by the author.

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    2. Kise aitraz hai aplogon ko aitarz hai aur bharat chudwana aapke bus ki baat nhi jo kuch islam dharm ke liye likhkha gya hai sab bebuniyad hai fuzul hai agar aplogon ko islam dharm ko janna hai to kisi मुस्लिम ko pakadhye puchye apne se manghadhat kahani bnana hame bhi ata hai allah aik hain uske manne wale alag alag name se pukarte hain
      Agar jankari jis bhai ko lena hai plese vo kisi aalim padhe likhe muslim se puchye apne se manghadhat kahani mat bnaye apna insab baton se kuch nhi bigdhe ga itna kamzor nhi hai hmara imaan bhagwaan sochne smajhne ki budhdhi de aplogon ko aur sach bolo jhut mut ka propgandha mat karo kisi kitab ko padhne ke liye aik tichar ka hona bahut zaruri hai apne se hum padh nhi sakte

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  18. Hindu hi asli dharm sanatan hai, Muslim Isai ,sikh,baudh,jain sab usi ki aulad hai

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    1. hindu to koi dharam hi nahi hai. ek shabd hai jiska matlab hai kala chor.

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  19. Inshan se badha dharam koi sa nhe hai..sabhi dharam humare paidha hone se pahle banae gae..or sabhi dharam ek dusre ki help karne ko kahta....bas ese dharam ko mano....or ye likhne wala es duniya ka sab se khabab insan hai kyu ki ye insaniyat ko alag karna chahta hai..
    Thank you dosto.......

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  20. Eak BAAT bolna changing aap sabhi yog purushon se aap ne kya dharm dharm laga rakha h me puchna chahuga kya aap ka dharm aap itna kamjor h ki aap logo ko us ki hifajat karni pade yaro agar AAJ khud bhagwan bi aakar ye bole ki me hi khuda iswar Hun tab bhi aap ko Santusti nahi hone Bali

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  21. खुदा अल्लाह या भगवन नाम की कोई चीज़ नहीं होती । जितने भी मजहब या धर्म है सब इंसानी दिमाग का फितूर भर है ।और इन मजहबो धर्मो ने इंसानियत का सबसे ज्यादा नुक्सान किया है । अगर आप सब लोग अगली पीढ़ी का भला चाहते हो तो god ता जो भी आप उसे बुलाते है । मानना छोड़ दो

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  22. बहुत बहुत धन्यवाद सर आपका धन्यवाद हो ॥

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  23. बहुत बहुत धन्यवाद सर आपका धन्यवाद हो ॥

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  24. तुम्हे कम ज्ञान है इसमें तुम्हारी कमी है, अपने मन से कहानियां छापकर कोई सच को झूठ साबित नही कर सकता ।

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  25. तुम्हे कम ज्ञान है इसमें तुम्हारी कमी है, अपने मन से कहानियां छापकर कोई सच को झूठ साबित नही कर सकता ।

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  26. Mere bhai mujhe sirf itna bata do ki,
    Agar 0 ki khoj Arya bhatt ne ki or arya bhatt kalyug me paida huve to mahabharat me 100 kaurav or ramayan me ravan ke 10 sir ki ginati kisne ki?
    Or yadi itni hi khunnas he islam se to Arab mulko se aane wala petrol or dielsel ka tyag karo or apne sach che dharm nisht hone ka saboot do...

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    1. मेरे भाई पहले संस्कृत बोलीं जाति थी ,संस्कृत में सौ को सहस्त्र कहतें थें और गिनती संस्कृत में याद करते थें ।

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  27. इमा मेऽअग्नऽइष्टका धेनव: सन्त्वेका च दश च शतं च शतं च सहस्रं च सहस्रं चायुतं चायुतं च नियुतं च नियुतं व नियुतं च प्रयुतं चार्बु दं च न्यर्बु दं च समुद्रश्च मध्यं चान्तश्च परार्धश्चैता मेऽअग्नऽइष्टका धेनव: सन्त्वमुत्रामुष
    मिंल्लोके ।। (शुक्ल यजुर्ववेद १७/२)
    अर्थात् – हे अग्ने । ये इष्टकाऐं (पांच चित्तियो में स्थापित ) हमारे लिए अभीष्ट फलदायक कामधेनु गौ के समान हों । ये इष्टका परार्द्ध -सङ्ख्यक (१०००००००००००००००००) एक से दश ,दश से सौ, सौ से हजार ,हजार से दश हजार ,दश हजार से लाख ,लाख से दश लाख ,दशलाख से करोड़ ,करोड़ से दश करोड़ ,दश करोड़ से अरब ,अरब से दश अरब ,दश अरब से खरब ,खरब से दश खरब ,दश खरब से नील, नील से दश नील, दश नील से शङ्ख ,शङ्ख से दश शङ्ख ,दश शङ्ख से परार्द्ध ( लक्ष कोटि) है ।
    यहाँ स्पष्ट एक एक। शून्य जोड़ते हुए काल गणना की गयी है ।
    अब फिर आर्यभट्ट ने कैसे शून्य की खोज की ?
    इसका जवाब है विज्ञान की दो क्रियाएँ हैं एक खोज (डिस्कवर ) दूसरी आविष्कार (एक्सपेरिमेंट) । खोज उसे कहते हैं जो पहले से विद्यमान हो बाद में खो गयी हो और फिर उसे ढूढा जाए उसे खोज कहते हैं ।
    आविष्कार उसे कहते हैं जो विद्यमान नहीं है और उसे अलग अलग पदार्थों से बनाया जाए वो आविष्कार है ।
    अब शून्य और अंको की खोज आर्यभट्ट ने की न कि आविष्कार किया

    इसका प्रमाण सिंधु -सरस्वती सभ्यता (हड़प्पा की सभ्यता) जो की 1750 ई पू तक विलुप्त हो चुकी थी में अंको की गणना स्पष्ट रूप से अंकित है।


    मेरे भाई हमे कुछ इस्लाम से खुन्नस नहीं है
    ये तो सिर्फ इस्लाम की निर्मिति कैसे हुई ये बताने की कोशिश है

    अब ये भी देखिये
    बौद्ध धर्म की स्थापना हुई और उसके पहले भी यंहा पर जो लोग थे तो वो हिन्दू थे इसको नकारा नहीं जा सकता है

    ईसाई धर्म की स्थापना हुई उसके पहले भी वहां पे लोग थे और वह यहूदी थे इसको भी कोई नकारता नहीं है

    तो इस्लाम की स्थापना हुई उसके पहले भी अरब में लोग थे और वो हिंदू थे इसको नकारने से क्या मतलब है

    अफगानिस्तान में जब इस्लाम आया तब वहां बौद्ध धर्म था और बौद्ध धर्म के पहले भी वंहा हिन्दू धर्म था इसको हम नकार नहीं सकते


    जैसे हिन्दू धर्म में से ही
    जैन धर्म
    बौद्ध धर्म
    शिख धर्म

    इनकी स्थापना होई है
    नए नए विचारवंतो को नया नया ज्ञान प्राप्त होता रहता है वैसे ही पैगंबर साहाब को कुछ अलग ज्ञान प्राप्त हुवा और उन्होंने इस्लाम की स्थापना की इतनी आसान सी बात है

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    1. bhaai bahot khub khaas kar aapki woh khoj waali baat, khoj wahi hoti hai jo pahle se hi maujud ho.

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    2. bhaai bahot khub khaas kar aapki woh khoj waali baat, khoj wahi hoti hai jo pahle se hi maujud ho.

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    3. भारतीय संविधान और कानूनों की रोशनी में 'हिंदू' शब्द के आशय और परिभाषा के बारे में केंद्र सरकार सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी उपलब्ध नहीं करा सकी है।

      मध्य प्रदेश के नीमच के रहने वाले सोशल वर्कर चंद्रशेखर गौर ने बताया कि उन्होंने आरटीआई के तहत अर्जी दायर कर पूछा था कि भारतीय संविधान और कानूनों के अनुसार 'हिंदू' शब्द का मतलब और परिभाषा क्या है।

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    4. हिन्दू धर्म (संस्कृत: सनातन धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति) है जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत और नेपाल में हैं। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म कहा जाता है। इसे 'वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म' भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है।[1] विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है।

      यह वेदों पर आधारित धर्म है, जो अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए है। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में हैं। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है।[2][3] [4]

      इसे सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं। इण्डोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम "हिन्दु आगम" है। हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नही है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है।[5]

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    5. Athar Khan yah mudda hindu word ni h.
      Tumara islam to hindu ko kafir kahta h ab kahi RTI mat daal dena God k paas use to ye v ni pta hoga ki kafir kaun h.
      Kal ko koi islam manne walo ko hi kafir kahna suru kr de to tum kafir hi kahlane lagoge.
      Esliye mudde se dhayan mat bhatkao.
      Mudda ye hi ki Doctrate krne k baad v idealism pe belive krte ho ekadh baar pragmtism k research pe v dhayan diya hota.
      Fir sara concept clear ho jata.

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  28. aapki jaankari ka hum INTZAR karege

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  29. aapki jaankari ka hum INTZAR karege

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  30. aap ko islam ka acchi tarh gyan nahi h mohommed ki shan me gustaki kar rahe ho

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  31. aap ko islam ka acchi tarh gyan nahi h mohommed ki shan me gustaki kar rahe ho

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  32. Me b yahi sochta hu ....ki sanatan Dharm se pahle koi Dharm nhi h ....sabhi Dharm Santana Dharm se nikle h

    Islam b or bodth b
    Bs unhone apne rule thode badal diye

    Sanatan Dharm me
    Budth ko ..Vishnu ka avatar mana jata h

    Or jb bodth hanare hi dhrm ko pujte h to


    Kya bs nam alg h

    Wese b

    Samaj me samay samay par

    Dharm or niyam badlte rahte h


    Par sbse badi bat ye h ki

    Jo sbse pahle se h

    Wo

    Kam ho skta h MIT nhi skta

    Apki jankari bahot achhi lgi

    Me apka aabhari hu
    Om

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  33. Who will dare to comment to be abused.Thanks to him who labored so much over sanatan.God is one & is called by various name.Inially idol worship is not bad for loving God & concentrating on Him.Masjid Church etc are too idols in a sence to symbolize Him.
    Sadhan tells what is what.

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  34. Bhaand media
    Ek mussalmaan hone k nate m kisi mazhab know bura bahi kah sakta.Beshak insaniyat badi cheez h magar insaaan ki sahuliyat k liye insaan ko insaan k liye kisne bataya.
    sirf aur sirf islam ne.

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  35. mai bhi islam dhrm ka itihas janna chahta hu to maine sbke cament read kiye hai ye to sch hai ki ye dhrm 1400 purana hai fir bhi ek bat or plz clear kre bohot cnfuzn hai mujhe.........maine camnt mai pdha hai ki kisi ne bola hai ki krishan g k poute ne ye dhrm bnaya coz vo krishan g se jhgda krk aye the.......isliye hr kam ulta tha unka........ but ek bat mere dimag m ghar kr gyi hai vo hai ye ki ravan ki behn ka nam suprn kha tha or #kha muslim hote hai aap sb jante hai or ayodhya mai bhi islamic dhrm k kuch astitv paye gye hai jo islam k log bolte hai ki islam dhrm stya yug se phle ka tha mtlv or jo ravan ki behn suprn kha muslim lgti hai nam se pr ravan k pita ne apne kisi bete ka nam mai #kha ni rkha bs beti k nam pr hi ku ????? or ravan k khandan k sare log mare gye the bs suprn kha bchi rahi or vo arab mai jake chip gye (ram g se bcchne k liye ) vhi se islam dhrm ka janm hua i think so not confrm okk........inke safed kpde pehnne pr b ek raaj hai inke sir pr topi lgane pr b raaj hai or bohpt se raaj hai plzzz tell m i right ???? muslim and hindu both r give me right answer plzzZ

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  36. भाई पहले हिन्दू धर्म की जानकारी प्राप्त करो उसके बाद औरों के बारे में सोचना
    तुम्हें इस्लाम के बारे में कोई जानकारी नहीं हे इसलिए इस तरह की गलत जानकरी पोस्ट मत करो
    तुम्हे ये तो पता तक नहीं की हिन्दू कहते किसे हैं
    पहले हिन्दू की परिभाषा जानो उसके बाद बात करना ओके । तुम जिस धर्म को मानते हो उसका कोई भी प्रमाण सरकार के पास भी नहीं हे और तुम फूले नहीं समाते की हम हिन्दू हैं ।
    हिन्दू एक अरबी शब्द हे जिसका अर्थ हे काला यानि जब अरबी यहाँ आये तो वो यहाँ वालों को काला कहते थे यानी हिन्दू और तुम अपने आप को काला कहने पर खुश होते हो पहले अपने धर्म के बारे में ज्ञान बांटो समझे और जो तूने ये पोस्ट किया हे सब का सब गलत हे प्लीज इसे हटा देना ।

    उन्होंने कहा, 'मेरी आरटीआई अर्जी पर भारत सरकार के गृह मंत्रालय की ओर से 31 जुलाई को भेजे गए जवाब में कहा गया कि केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) के पास अपेक्षित सूचना उपलब्ध नहीं है।'

    गौर ने अपने आरटीआई आवेदन में सरकार से यह भी जानना चाहा था कि देश में किन आधारों पर किसी समुदाय को हिंदू माना जाता है और हिंदुओं को बहुसंख्यकों की तरह देखा जाता है। लेकिन इन सवालों पर यही जवाब दोहरा दिया गया कि अपेक्षित सूचना सीपीआईओ के पास उपलब्ध नहीं है।

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    1. हिन्दू धर्म (संस्कृत: सनातन धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति) है जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत और नेपाल में हैं। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म कहा जाता है। इसे 'वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म' भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है।[1] विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है।

      यह वेदों पर आधारित धर्म है, जो अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए है। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में हैं। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है।[2][3] [4]

      इसे सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं। इण्डोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम "हिन्दु आगम" है। हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नही है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है।[5]

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    2. इतिहास[संपादित करें]
      हिन्दू धर्म पृथ्वी के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है; हालाँकि इसके इतिहास के बारे में अनेक विद्वानों के अनेक मत हैं। हिंदू ज्योतिष शास्त्र में विद्यमान काल गणना के अनुसार सृष्टि के आरंभ की तिथि कई करोड़ वर्ष पहले की वर्णित है; संदर्भ हेतु - बहुप्रचलित ग्रेगरी कैलेण्डर के सन् २०१५ मे मार्च माह में प्रारंभ हुआ हिंदू नव वर्ष सृष्टि प्रारंभ से १,९५,५८,८ ५,११६ वाँ वर्ष था। वेदांग ज्योतिषानुसार[कृपया उद्धरण जोड़ें] इस आधार पर हिंदू धर्मावलंबी इस धर्म को उतना ही पुराना मानते हैं। वहीं आधुनिक इतिहासकार हड़प्पा, मेहरगढ़ आदि पुरातात्विक अन्वेषणों के आधार पर इस धर्म का इतिहास मात्र कुछ हज़ार वर्ष पुराना मानते हैं। इन्हें खारिज करने हेतु कई चमत्कारी, सटीक साक्ष्य भी उपलब्ध हैं जो इस धर्म को प्राचीनतम धर्म साबित करते हैं उदाहरणार्थ जर्मनी में १९३९ में मिली नृसिंह की मूर्ति। कार्बन डेटिंग प्रक्रिया से उसकी आयु ४०००० वर्ष ज्ञात हुई।[6]

      जहाँ भारत (और आधुनिक पाकिस्तानी क्षेत्र) की सिन्धु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते हैं। इनमें एक अज्ञात मातृदेवी की मूर्तियाँ, शिव पशुपति जैसे देवता की मुद्राएँ, लिंग, पीपल की पूजा, इत्यादि प्रमुख हैं। इतिहासकारों के एक दृष्टिकोण के अनुसार इस सभ्यता के अन्त के दौरान मध्य एशिया से एक अन्य जाति का आगमन हुआ, जो स्वयं को आर्य कहते थे और संस्कृत नाम की एक हिन्द यूरोपीय भाषा बोलते थे। एक अन्य दृष्टिकोण के अनुसार सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग स्वयं ही आर्य थे और उनका मूलस्थान भारत ही था।

      आर्यों की सभ्यता को वैदिक सभ्यता कहते हैं। पहले दृष्टिकोण के अनुसार लगभग १७०० ईसा पूर्व में आर्य अफ़्ग़ानिस्तान, कश्मीर, पंजाब और हरियाणा में बस गए। तभी से वो लोग (उनके विद्वान ऋषि) अपने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए वैदिक संस्कृत में मन्त्र रचने लगे। पहले चार वेद रचे गए, जिनमें ऋग्वेद प्रथम था। उसके बाद उपनिषद जैसे ग्रन्थ आए। हिन्दू मान्यता के अनुसार वेद, उपनिषद आदि ग्रन्थ अनादि, नित्य हैं, ईश्वर की कृपा से अलग-अलग मन्त्रद्रष्टा ऋषियों को अलग-अलग ग्रन्थों का ज्ञान प्राप्त हुआ जिन्होंने फिर उन्हें लिपिबद्ध किया। बौद्ध और धर्मों के अलग हो जाने के बाद वैदिक धर्म मे काफ़ी परिवर्तन आया। नये देवता और नये दर्शन उभरे। इस तरह आधुनिक हिन्दू धर्म का जन्म हुआ।

      दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार हिन्दू धर्म का मूल कदाचित सिन्धु सरस्वती परम्परा (जिसका स्रोत मेहरगढ़ की ६५०० ईपू संस्कृति में मिलता है) से भी पहले की भारतीय परम्परा में है।

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    3. भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने "हिन्दुस्थान" नाम दिया था, जिसका अपभ्रंश "हिन्दुस्तान" है। "बृहस्पति आगम" के अनुसार:

      हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्।
      तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥
      अर्थात् हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।
      "हिन्दू" शब्द "सिन्धु" से बना माना जाता है। संस्कृत में सिन्धु शब्द के दो मुख्य अर्थ हैं - पहला, सिन्धु नदी जो मानसरोवर के पास से निकल कर लद्दाख़ और पाकिस्तान से बहती हुई समुद्र मे मिलती है, दूसरा - कोई समुद्र या जलराशि। ऋग्वेद की नदीस्तुति के अनुसार वे सात नदियाँ थीं : सिन्धु, सरस्वती, वितस्ता (झेलम), शुतुद्रि (सतलुज), विपाशा (व्यास), परुषिणी (रावी) और अस्किनी (चेनाब)। एक अन्य विचार के अनुसार हिमालय के प्रथम अक्षर "हि" एवं इन्दु का अन्तिम अक्षर "न्दु", इन दोनों अक्षरों को मिलाकर शब्द बना "हिन्दु" और यह भू-भाग हिन्दुस्थान कहलाया। हिन्दू शब्द उस समय धर्म के बजाय राष्ट्रीयता के रूप में प्रयुक्त होता था। चूँकि उस समय भारत में केवल वैदिक धर्म को ही मानने वाले लोग थे, बल्कि तब तक अन्य किसी धर्म का उदय नहीं हुआ था इसलिए "हिन्दू" शब्द सभी भारतीयों के लिए प्रयुक्त होता था। भारत में केवल वैदिक धर्मावलम्बियों (हिन्दुओं) के बसने के कारण कालान्तर में विदेशियों ने इस शब्द को धर्म के सन्दर्भ में प्रयोग करना शुरु कर दिया।

      आम तौर पर हिन्दू शब्द को अनेक विश्लेषकों ने विदेशियों द्वारा दिया गया शब्द माना है। इस धारणा के अनुसार हिन्दू एक फ़ारसी शब्द है। हिन्दू धर्म को सनातनधर्म या वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म भी कहा जाता है। ऋग्वेद में सप्त सिन्धु का उल्लेख मिलता है - वो भूमि जहाँ आर्य सबसे पहले बसे थे। भाषाविदों के अनुसार हिन्द आर्य भाषाओं की "स्" ध्वनि (संस्कृत का व्यंजन "स्") ईरानी भाषाओं की "ह्" ध्वनि में बदल जाती है। इसलिए सप्त सिन्धु अवेस्तन भाषा (पारसियों की धर्मभाषा) मे जाकर हफ्त हिन्दु मे परिवर्तित हो गया (अवेस्ता: वेन्दीदाद, फ़र्गर्द 1.18)। इसके बाद ईरानियों ने सिन्धु नदी के पूर्व में रहने वालों को हिन्दु नाम दिया। जब अरब से मुस्लिम हमलावर भारत में आए, तो उन्होंने भारत के मूल धर्मावलम्बियों को हिन्दू कहना शुरू कर दिया। चारौं वेदौंमे,पुराणौंमे, महाभारतमे, स्मृतियौंमे इस धर्मको हिन्दुधर्म नहिं कहा है, वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म कहा है |

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    4. मुख्य सिद्धान्त[संपादित करें]

      हिंदू मंदिर, श्री लंका
      हिन्दू धर्म में कोई एक अकेले सिद्धान्तों का समूह नहीं है जिसे सभी हिन्दुओं को मानना ज़रूरी है। ये तो धर्म से ज़्यादा एक जीवन का मार्ग है। हिन्दुओं का कोई केन्द्रीय चर्च या धर्मसंगठन नहीं है और न ही कोई "पोप"। इसके अन्तर्गत कई मत और सम्प्रदाय आते हैं और सभी को बराबर श्रद्धा दी जाती है। धर्मग्रन्थ भी कई हैं। फ़िर भी, वो मुख्य सिद्धान्त, जो ज़्यादातर हिन्दू मानते हैं, इन सब में विश्वास: धर्म (वैश्विक क़ानून), कर्म (और उसके फल), पुनर्जन्म का सांसारिक चक्र, मोक्ष (सांसारिक बन्धनों से मुक्ति--जिसके कई रास्ते हो सकते हैं) और बेशक, ईश्वर। हिन्दू धर्म स्वर्ग और नरक को अस्थायी मानता है। हिन्दू धर्म के अनुसार संसार के सभी प्राणियों में आत्मा होती है। मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो इस लोक में पाप और पुण्य, दोनो कर्म भोग सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है। हिन्दू धर्म में चार मुख्य सम्प्रदाय हैं : वैष्णव (जो विष्णु को परमेश्वर मानते हैं), शैव (जो शिव को परमेश्वर मानते हैं), शाक्त (जो देवी को परमशक्ति मानते हैं) और स्मार्त (जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं)। लेकिन ज्यादातर हिन्दू स्वयं को किसी भी सम्प्रदाय में वर्गीकृत नहीं करते हैं। प्राचीनकाल और मध्यकाल में शैव, शाक्त और वैष्णव आपस में लड़ते रहते थे। जिन्हें मध्यकाल के संतों ने समन्वित करने की सफल कोशिश की और सभी संप्रदायों को परस्पर आश्रित बताया।

      संक्षेप में, हिन्‍दुत्‍व के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं-हिन्दू-धर्म हिन्दू-कौन?-- गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ़ा मतिः। पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात-- गोमाता में जिसकी भक्ति हो, प्रणव जिसका पूज्य मन्त्र हो, पुनर्जन्म में जिसका विश्वास हो--वही हिन्दू है। मेरुतन्त्र ३३ प्रकरण के अनुसार ' हीनं दूषयति स हिन्दु ' अर्थात जो हीन (हीनता या नीचता) को दूषित समझता है (उसका त्याग करता है) वह हिन्दु है। लोकमान्य तिलक के अनुसार- असिन्धोः सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका। पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात्- सिन्धु नदी के उद्गम-स्थान से लेकर सिन्धु (हिन्द महासागर) तक सम्पूर्ण भारत भूमि जिसकी पितृभू (अथवा मातृ भूमि) तथा पुण्यभू (पवित्र भूमि) है, (और उसका धर्म हिन्दुत्व है) वह हिन्दु कहलाता है। हिन्दु शब्द मूलतः फा़रसी है इसका अर्थ उन भारतीयों से है जो भारतवर्ष के प्राचीन ग्रन्थों, वेदों, पुराणों में वर्णित भारतवर्ष की सीमा के मूल एवं पैदायसी प्राचीन निवासी हैं। कालिका पुराण, मेदनी कोष आदि के आधार पर वर्तमान हिन्दू ला के मूलभूत आधारों के अनुसार वेदप्रतिपादित वर्णाश्रम रीति से वैदिक धर्म में विश्वास रखने वाला हिन्दू है। यद्यपि कुछ लोग कई संस्कृति के मिश्रित रूप को ही भारतीय संस्कृति मानते है, जबकि ऐसा नही है। जिस संस्कृति या धर्म की उत्पत्ती एवं विकास भारत भूमि पर नहीं हुआ है, वह धर्म या संस्कृति भारतीय (हिन्दू) कैसे हो सकती है।

      हिन्दू धर्म के सिद्धान्त के कुछ मुख्य बिन्दु:

      1. ईश्वर एक नाम अनेक.
      2. ब्रह्म या परम तत्त्व सर्वव्यापी है।
      3. ईश्वर से डरें नहीं, प्रेम करें और प्रेरणा लें.
      4. हिन्दुत्व का लक्ष्य स्वर्ग-नरक से ऊपर.
      5. हिन्दुओं में कोई एक पैगम्बर नहीं है।
      6. धर्म की रक्षा के लिए ईश्वर बार-बार पैदा होते हैं।
      7. परोपकार पुण्य है, दूसरों को कष्ट देना पाप है।
      8. जीवमात्र की सेवा ही परमात्मा की सेवा है।
      9. स्त्री आदरणीय है।
      10. सती का अर्थ पति के प्रति सत्यनिष्ठा है।
      11. हिन्दुत्व का वास हिन्दू के मन, संस्कार और परम्पराओं में.
      12. पर्यावरण की रक्षा को उच्च प्राथमिकता.
      13. हिन्दू दृष्टि समतावादी एवं समन्वयवादी.
      14. आत्मा अजर-अमर है।
      15. सबसे बड़ा मंत्र गायत्री मंत्र.
      16. हिन्दुओं के पर्व और त्योहार खुशियों से जुड़े हैं।
      17. हिन्दुत्व का लक्ष्य पुरुषार्थ है और मध्य मार्ग को सर्वोत्तम माना गया है।
      18. हिन्दुत्व एकत्व का दर्शन है।

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    5. ब्रह्म
      हिन्दू धर्मग्रन्थ उपनिषदों के अनुसार ब्रह्म ही परम तत्त्व है (इसे त्रिमूर्ति के देवता ब्रह्मा से भ्रमित न करें)। वो ही जगत का सार है, जगत की आत्मा है। वो विश्व का आधार है। उसी से विश्व की उत्पत्ति होती है और विश्व नष्ट होने पर उसी में विलीन हो जाता है। ब्रह्म एक और सिर्फ़ एक ही है। वो विश्वातीत भी है और विश्व के परे भी। वही परम सत्य, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ है। वो कालातीत, नित्य और शाश्वत है। वही परम ज्ञान है। ब्रह्म के दो रूप हैं : परब्रह्म और अपरब्रह्म। परब्रह्म असीम, अनन्त और रूप-शरीर विहीन है। वो सभी गुणों से भी परे है, पर उसमें अनन्त सत्य, अनन्त चित् और अनन्त आनन्द है। ब्रह्म की पूजा नहीं की जाती है, क्योंकि वो पूजा से परे और अनिर्वचनीय है। उसका ध्यान किया जाता है। प्रणव ॐ (ओम्) ब्रह्मवाक्य है, जिसे सभी हिन्दू परम पवित्र शब्द मानते हैं। हिन्दू यह मानते हैं कि ओम् की ध्वनि पूरे ब्रह्माण्ड मे गूंज रही है। ध्यान में गहरे उतरने पर यह सुनाई देता है। ब्रह्म की परिकल्पना वेदान्त दर्शन का केन्द्रीय स्तम्भ है और हिन्दू धर्म की विश्व को अनुपम देन है।

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    6. ईश्वर[संपादित करें]
      ब्रह्म और ईश्वर में क्या सम्बन्ध है, इसमें हिन्दू दर्शनों की सोच अलग अलग है। अद्वैत वेदान्त के अनुसार जब मानव ब्रह्म को अपने मन से जानने की कोशिश करता है, तब ब्रह्म ईश्वर हो जाता है, क्योंकि मानव माया नाम की एक जादुई शक्ति के वश मे रहता है। अर्थात जब माया के आइने में ब्रह्म की छाया पड़ती है, तो ब्रह्म का प्रतिबिम्ब हमें ईश्वर के रूप में दिखायी पड़ता है। ईश्वर अपनी इसी जादुई शक्ति "माया" से विश्व की सृष्टि करता है और उस पर शासन करता है। इस स्तिथी में हालाँकि ईश्वर एक नकारात्मक शक्ति के साथ है, लेकिन माया उसपर अपना कुप्रभाव नहीं डाल पाती है, जैसे एक जादूगर अपने ही जादू से अचंम्भित नहीं होता है। माया ईश्वर की दासी है, परन्तु हम जीवों की स्वामिनी है। वैसे तो ईश्वर रूपहीन है, पर माया की वजह से वो हमें कई देवताओं के रूप में प्रतीत हो सकता है। इसके विपरीत वैष्णव मतों और दर्शनों में माना जाता है कि ईश्वर और ब्रह्म में कोई फ़र्क नहीं है--और विष्णु (या कृष्ण) ही ईश्वर हैं। न्याय, वैषेशिक और योग दर्शनों के अनुसार ईश्वर एक परम और सर्वोच्च आत्मा है, जो चैतन्य से युक्त है और विश्व का सृष्टा और शासक है।

      जो भी हो, बाकी बातें सभी हिन्दू मानते हैं : ईश्वर एक और केवल एक है। वो विश्वव्यापी और विश्वातीत दोनो है। बेशक, ईश्वर सगुण है। वो स्वयंभू और विश्व का कारण (सृष्टा) है। वो पूजा और उपासना का विषय है। वो पूर्ण, अनन्त, सनातन, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी है। वो राग-द्वेष से परे है, पर अपने भक्तों से प्रेम करता है और उनपर कृपा करता है। उसकी इच्छा के बिना इस दुनिया में एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। वो विश्व की नैतिक व्यवस्था को कायम रखता है और जीवों को उनके कर्मों के अनुसार सुख-दुख प्रदान करता है। श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार विश्व में नैतिक पतन होने पर वो समय-समय पर धरती पर अवतार (जैसे कृष्ण) रूप ले कर आता है। ईश्वर के अन्य नाम हैं : परमेश्वर, परमात्मा, विधाता, भगवान (जो हिन्दी मे सबसे ज़्यादा प्रचलित है)। इसी ईश्वर को मुसल्मान (अरबी में) अल्लाह, (फ़ारसी में) ख़ुदा, ईसाई (अंग्रेज़ी में) गॉड और यहूदी (इब्रानी में) याह्वेह कहते हैं।

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    7. हिन्दू-धर्म - गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ़ा मतिः। पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात-- गोमाता में जिसकी भक्ति हो, प्रणव जिसका पूज्य मन्त्र हो, पुनर्जन्म में जिसका विश्वास हो--वही हिन्दू है। मेरुतन्त्र ३३ प्रकरण के अनुसार ' हीनं दूषयति स हिन्दु ' अर्थात जो हीन (हीनता या नीचता) को दूषित समझता है (उसका त्याग करता है) वह हिन्दु है।
      लोकमान्य तिलक के अनुसार- असिन्धोः सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका। पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात्- सिन्धु नदी के उद्गम-स्थान से लेकर सिन्धु (हिन्द महासागर) तक सम्पूर्ण भारत भूमि जिसकी पितृभू (अथवा मातृ भूमि) तथा पुण्यभू (पवित्र भूमि) है, (और उसका धर्म हिन्दुत्व है) वह हिन्दु कहलाता है। हिन्दु शब्द मूलतः फा़रसी है इसका अर्थ उन भारतीयों से है जो भारतवर्ष के प्राचीन ग्रन्थों, वेदों, पुराणों में वर्णित भारतवर्ष की सीमा के मूल एवं पैदायसी प्राचीन निवासी हैं। कालिका पुराण, मेदनी कोष आदि के आधार पर वर्तमान हिन्दू ला के मूलभूत आधारों के अनुसार वेदप्रतिपादित वर्णाश्रम रीति से वैदिक धर्म में विश्वास रखने वाला हिन्दू है। यद्यपि कुछ लोग कई संस्कृति के मिश्रित रूप को ही भारतीय संस्कृति मानते है, जबकि ऐसा नही है। जिस संस्कृति या धर्म की उत्पत्ती एवं विकास भारत भूमि पर नहीं हुआ है, वह धर्म या संस्कृति भारतीय (हिन्दू) कैसे हो सकती है।
      हिन्दू धर्म के सिद्धान्त के कुछ मुख्य बिन्दु:
      • 1. ईश्वर एक नाम अनेक.
      • 2. ब्रह्म या परम तत्त्व सर्वव्यापी है।
      • 3. ईश्वर से डरें नहीं, प्रेम करें और प्रेरणा लें.
      • 4. हिन्दुत्व का लक्ष्य स्वर्ग-नरक से ऊपर.
      • 5. हिन्दुओं में कोई एक पैगम्बर नहीं है।
      • 6. धर्म की रक्षा के लिए ईश्वर बार-बार पैदा होते हैं।
      • 7. परोपकार पुण्य है, दूसरों को कष्ट देना पाप है।
      • 8. जीवमात्र की सेवा ही परमात्मा की सेवा है।
      • 9. स्त्री आदरणीय है।
      • 10. सती का अर्थ पति के प्रति सत्यनिष्ठा है।
      • 11. हिन्दुत्व का वास हिन्दू के मन, संस्कार और परम्पराओं में.
      • 12. पर्यावरण की रक्षा को उच्च प्राथमिकता.
      • 13. हिन्दू दृष्टि समतावादी एवं समन्वयवादी.
      • 14. आत्मा अजर-अमर है।
      • 15. सबसे बड़ा मंत्र गायत्री मंत्र.
      • 16. हिन्दुओं के पर्व और त्योहार खुशियों से जुड़े हैं।
      • 17. हिन्दुत्व का लक्ष्य पुरुषार्थ है और मध्य मार्ग को सर्वोत्तम माना गया है।
      • 18. हिन्दुत्व एकत्व का दर्शन है।

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    8. कुल मिलाकर हे मित्र तुम मानव धर्म का पालन कर सबके दुःख - सुख में साथ दे

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    9. निम्ननलिखित प्रश्नोंि के आगे क्रमानुसार उत्तंर हैं
      प्रश्नः1. इस्लाम में पुरूष को एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति क्यों है?
      प्रश्नः2. यदि एक पुरूष को एक से अधिक पत्नियाँ करने की अनुमति है तो इस्लाम में स्त्री को एक समय में अधिक पति रखने की अनुमति क्यों नहीं है?
      प्रश्नः3.‘‘इस्लाम औरतों को पर्दे में रखकर उनका अपमान क्यों करता है?
      प्रश्नः4. यह कैसे संभव है कि इस्लाम को शांति का धर्म माना जाए क्योंकि यह तो तलवार (युद्ध और रक्तपात) के द्वारा फैला है?
      प्रश्नः5. अधिकांश मुसलमान रूढ़िवादी और आतंकवादी हैं?
      प्रश्नः6.पशुओं को मारना एक क्रूरतापूर्ण कृत्य है तो फिर मुसलमान मांसाहारी भोजन क्यों पसन्द करते हैं?
      प्रश्नः7. मुसलमान पशुओं को ज़िब्ह (हलाल) करते समय निदर्यतापूर्ण ढंग क्यों अपनाते हैं? अर्थात उन्हें यातना देकर धीरे-धीरे मारने का तरीकष, इस पर बहुत लोग आपत्ति करते हैं?
      प्रश्नः8. विज्ञान हमें बताता है कि मनुष्य जो कुछ खाता है उसका प्रभाव उसकी प्रवृत्ति पर अवश्य पड़ता है, तो फिर इस्लाम अपने अनुयायियों को सामिष आहार की अनुमति क्यों देता है? यद्यपि पशुओं का मांस खाने के कारण मनुष्य हिंसक और क्रूर बन सकता है?
      प्रश्नः9. यद्यपि इस्लाम में मूर्ति पूजा वर्जित है परन्तु मुसलमान काबे की पूजा क्यों करते हैं? और अपनी नमाज़ों के दौरान उसके सामने क्यों झुकते हैं?
      प्रश्नः10. मक्का और मदीना के पवित्रा नगरों में ग़ैर मुस्लिमों को प्रवेश की अनुमति क्यों नहीं है?
      प्रश्नः11. इस्लाम में सुअर का मांस खाना क्यों वर्जित है?
      प्रश्नः12. इस्लाम में शराब पीने की मनाही क्यों है?
      प्रश्नः13. क्या कारण है कि इस्लाम में दो स्त्रीयों की गवाही एक पुरुष के समान ठहराई जाती है?
      प्रश्नः14. इस्लामी कानून के अनुसार विरासत की धन-सम्पत्ति में स्त्री का हिस्सा पुरूष की अपेक्षा आधा क्यों है?
      प्रश्नः15. क्या पवित्र कुरआन अल्लाह का कलाम (ईष वाक्य) है?
      उत्तर: online book: “IS THE QURAN GOD’S WORD?” किया कुरआन ईश्वरीय ग्रन्थ है?
      प्रश्नः16. आप आख़िरत अथवा मृत्योपरांत जीवन की सत्यता कैसे सिद्ध करेंगे?
      प्रश्नः17. क्या कारण है कि मुसलमान विभिन्न समुदायों और विचाधाराओं में विभाजित हैं?
      प्रश्नः18. सभी धर्म अपने अनुयायियों को अच्छे कामों की शिक्षा देते हैं तो फिर किसी व्यक्ति को इस्लाम का ही अनुकरण क्यों करना चाहिए? क्या वह किसी अन्य धर्म का अनुकरण नहीं कर सकता?
      प्रश्नः19. यदि इस्लाम विश्व का श्रेष्ठ धर्म है तो फिर क्या कारण है कि बहुत से मुसलमान बेईमान और विश्वासघाती होते हैं। धोखेबाज़ी, घूसख़ोरी और नशीले पदार्थों के व्यापार जैसे घृणित कामों में लिप्त होते हैं।
      प्रश्नः20. मुसलमान ग़ैर मुस्लिमों का अपमान करते हुए उन्हें ‘‘काफ़िर’’ क्यों कहते हैं?

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    10. बहुपत्नी प्रथा
      प्रश्नः इस्लाम में पुरूष को एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति क्यों है?
      उत्तरः बहुपत्नी प्रथा (Policamy)से आश्य विवाह की ऐसे व्यवस्था से है जिसके अनुसार एक व्यक्ति एक से अधिक पत्नियाँ रख सकता है। बहुपत्नी प्रथा के दो रूप हो सकते हैं। उसका एक रूप (Polygyny)है जिसके अनुसार एक पुरूष एक से अधिक स्त्रिायों से विवाह कर सकता है। जबकि दूसरा रूप (Polyandry) है जिसमें एक स्त्री एक ही समय में कई पुरूषों की पत्नी रह सकती है। इस्लाम में एक से अधिक पत्नियाँ रखने की सीमित अनुमति है। परन्तु (Polyandry)अर्थात स्त्रियों द्वारा एक ही पुरूष में अनेक पति रखने की पूर्णातया मनाही है।
      अब मैं इस प्रश्न की ओर आता हूँ कि इस्लाम में पुरूषों को एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति क्यों है?
      पवित्र क़ुरआन विश्व का एकमात्र धर्मग्रंथ है जो केवल ‘‘एक विवाह करो’’ का आदेश देता है
      सम्पूर्ण मानवजगत मे केवल पवित्र क़ुरआन ही एकमात्र धर्म ग्रंथ (ईश्वाक्य) है जिसमें यह वाक्य मौजूद हैः ‘‘केवल एक ही विवाह करो’’, अन्य कोई धर्मग्रंथ ऐसा नहीं है जो पुरुषों को केवल एक ही पत्नी रखने का आदेश देता हो। अन्य धर्मग्रंथों में चाहे वेदों में कोई हो, रामायण, महाभारत, गीता अथवा बाइबल या ज़बूर हो किसी में पुरूष के लिए पत्नियों की संख्या पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया है, इन समस्त ग्रंथों के अनुसार कोई पुरुष एक समय में जितनी स्त्रियों से चाहे विवाह कर सकता है, यह तो बाद की बात है जब हिन्दू पंडितों और ईसाई चर्च ने पत्नियों की संख्या को सीमित करके केवल एक कर दिया।
      हिन्दुओं के धार्मिक महापुरुष स्वयं उनके ग्रंथ के अनुसार एक समय में अनेक पत्नियाँ रखते थे। जैसे श्रीराम के पिता दशरथ जी की एक से अधिक पत्नियाँ थीं। स्वंय श्री कृष्ण की अनेक पत्नियाँ थीं।
      आरंभिक काल में ईसाईयों को इतनी पत्नियाँ रखने की अनुमति थी जितनी वे चाहें, क्योंकि बाइबल में पत्नियों की संख्या पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया है। यह तो आज से कुछ ही शताब्दियों पूर्व की बात है जब चर्च ने केवल एक पत्नी तक ही सीमित रहने का प्रावधान कर दिया था।

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    11. यहूदी धर्म में एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति है। ‘ज़बूर’ में बताया गया है कि हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की तीन पत्नियाँ थीं जबकि हज़रत सुलेमान (अलैहिस्सलाम) एक समय में सैंकड़ों पत्नियों के पति थे। यहूदियों में बहुपत्नी प्रथा ‘रब्बी ग्रश्म बिन यहूदा’ (960 ई. से 1030 ई.) तक प्रचलित रही। ग्रश्म ने इस प्रथा के विरुद्ध एक
      धर्मादेश निकाला था। इस्लामी देशों में प्रवासी यहूदियों ने, यहूदी जो कि आम तौर से स्पेनी और उत्तरी अफ्ऱीकी यहूदियों के वंशज थे, 1950 ई. के अंतिम दशक तक यह प्रथा जारी रखी। यहाँ तक कि इस्राईल के बड़े रब्बी (सर्वोच्चय धर्मगुरू) ने एक धार्मिक कानून द्वारा विश्वभर के यहूदियों के लिए बहुपत्नी प्रथा पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
      रोचक तथ्य
      भारत में 1975 ई. की जनगणना के अनुसार मुसलमानों की अपेक्षा हिन्दुओं में बहुपत्नी प्रथा का अनुपात अधिक था। 1975 ई. में Commitee of the Status of Wemen in Islam (इस्लाम में महिलाओं की प्रतिष्ठा के विषय में गठित समिति) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के पृष्ठ 66-67 पर यह बताया गया है कि 1951 ई. और 1961 ई. के मध्यांतर में 5.6 प्रतिशत हिन्दू बहुपत्नी धारक थे, जबकि इस अवधि में मुसलमानों की 4.31 प्रतिशत लोगों की एक से अधिक पत्नियाँ थीं। भारतीय संविधान के अनुसार केवल मुसलमानों को ही एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति है। गै़र मुस्लिमों के लिए एक से अधिक पत्नी रखने के वैधानिक प्रतिबन्ध के बावजूद मुसलमानों की अपेक्षा हिन्दुओं में बहुपत्नी प्रथा का अनुपात
      अधिक था। इससे पूर्व हिन्दू पुरूषों पर पत्नियों की संख्या के विषय में कोई प्रतिबन्ध नहीं था। 1954 में ‘‘हिन्दू मैरिज एक्ट’’ लागू होने के पश्चात हिन्दुओं पर एक से अधिक पत्नी रखने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इस समय भी, भारतीय कानून के अनुसार किसी भी हिन्दू पुरूष के लिए एक से अधिक पत्नी रखना कषनूनन वर्जित है। परन्तु हिन्दू
      धर्मगं्रथों के अनुसार आज भी उन पर ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं है।
      आईये अब हम यह विश्लेषण करते हैं कि अंततः इस्लाम में पुरूष को एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति क्यों दी गई है?
      पवित्र क़ुरआन पत्नियों की संख्या सीमित करता है जैसा कि मैंने पहले बताया कि पवित्र क़ुरआन ही वह एकमात्र धार्मिक ग्रंथ है जिसमें कहा गया हैः
      ‘‘केवल एक से विवाह करो।’’

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    12. इस आदेश की सम्पूर्ण व्याख्या पवित्र क़ुरआन की निम्नलिखित आयत में मौजूद है जो ‘‘सूरह अन्-निसा’’ की हैः
      ‘‘यदि तुम को भय हो कि तुम अनाथों के साथ न्याय नहीं कर सकते तो जो अन्य स्त्रियाँ तुम्हें पसन्द आएं उनमें दो-दो, तीन-तीन, चार-चार से निकाह कर लो, परन्तु यदि तुम्हें आशंका हो कि उनके साथ तुम न्याय न कर सकोगे तो फिर एक ही पत्नी करो, अथवा उन स्त्रियों को दामपत्य में लाओ जो तुम्हारे अधिकार में आती हैं। यह अन्याय से बचने के लिए भलाई के अधिक निकट है।’’ (पवित्र क़ुरआन, 4 : 3 )
      पवित्र क़ुरआन के अवतरण से पूर्व पत्नियों की संख्या की कोई सीमा निधारि‍त नहीं थी। अतः पुरूषों की एक समय में अनेक पत्नियाँ होती थीं। कभी-कभी यह संख्या सैंकड़ों तक पहुँच जाती थी। इस्लाम ने चार पत्नियों की सीमा निधारि‍त कर दी। इस्लाम किसी पुरूष को दो, तीन अथवा चार शादियाँ करने की अनुमति तो देता है, किन्तु न्याय करने की शर्त के साथ।
      इसी सूरह में पवित्र क़ुरआन स्पष्ट आदेश दे रहा हैः
      ‘‘पत्नियों के बीची पूरा-पूरा न्याय करना तुम्हारे वश में नहीं, तुम चाहो भी तो इस पर कषदिर (समर्थ) नहीं हो सकते। अतः (अल्लाह के कानून का मन्तव्य पूरा करने के लिए यह पर्याप्त है कि) एक पत्नी की ओर इस प्रकार न झुक जाओ कि दूसरी को अधर में लटकता छोड़ दो। यदि तुम अपना व्यवहार ठीक रखो और अल्लाह से डरते रहो तो अल्लाह दुर्गुणों की उपेक्षा करने (टाल देने) वाला और दया करने वाला है।’’ (पवित्र क़ुरआन, 4:129)
      अतः बहु-विवाह कोई विधान नहीं केवल एक रियायत (छूट) है, बहुत से लोग इस ग़लतफ़हमी का शिकार हैं कि मुसलमानों के लिये एक से अधिक पत्नियाँ रखना अनिवार्य है।
      विस्तृत परिप्रेक्ष में अम्र (निर्देशित कर्म Do’s) और नवाही (निषिद्ध कर्म Dont’s) के पाँच स्तर हैंः
      कः फ़र्ज़ (कर्तव्य) अथवा अनिवार्य कर्म।
      खः मुस्तहब अर्थात ऐसा कार्य जिसे करने की प्रेरणा दी गई हो, उसे करने को प्रोत्साहित किया जाता हो किन्तु वह कार्य अनिवार्य न हो।
      गः मुबाह (उचित, जायज़ कर्म) जिसे करने की अनुमति हो।
      घः मकरूह (अप्रिय कर्म) अर्थात जिस कार्य का करना अच्छा न माना जाता हो और जिस के करने को हतोत्साहित किया गया हो।
      ङः हराम (वर्जित कर्म) अर्थात ऐसा कार्य जिसकी अनुमति न हो, जिसको करने की स्पष्ट मनाही हो।
      बहुविवाह का मुद्दा उपरोक्त पाँचों स्तरों के मध्यस्तर अर्थात ‘‘मुबाह’’ के अंर्तगत आता है, अर्थात वह कार्य जिसकी अनुमति है। यह नहीं कहा जा सकता कि वह मुसलमान जिसकी दो, तीन अथवा चार पत्नियाँ हों, वह एक पत्नी वाले मुसलमान से अच्छा है।
      स्त्रियों की औसत आयु पुरूषों से अधिक होती है प्राकृतिक रूप से स्त्रियाँ और पुरूष लगभग समान अनुपात से उत्पन्न होते हैं। एक लड़की में जन्म के समय से ही लड़कों की अपेक्षा अधिक प्रतिरोधक क्षमता (Immunity)होती है और वह रोगाणुओं से अपना बचाव लड़कों की अपेक्षा अधिक सुगमता से कर सकती है, यही कारण है कि बालमृत्यु में लड़कों की दर अधिक होती है। संक्षेप में यह कि स्त्रियों की औसत आयु पुरूषों से अधिक होती है और किसी भी समय में अध्ययन करने पर हमें स्त्रियों की संख्या पुरूषों से अधिक ही मिलती है।
      कन्या गर्भपात तथा कन्याओं की मृत्यु के कारण भारत में पुरूषों की संख्या स्त्रियों से ज़्यादा है
      अपने कुछ पड़ौसी देशों सहित, भारत की गणना विश्व के उन कुछ देशों में की जाती है जहाँ स्त्रियों की संख्या पुरूषों से कम है। इसका कारण यह है कि भारत में अधिकांश कन्याओं को शैशव काल में ही मार दिया जाता है। जबकि इस देश में प्रतिवर्ष दस लाख से अधिक लड़कियों की भ्रुणहत्या अर्थात ग्रर्भपात द्वारा उनको इस संसार में आँख खोलने से पहले ही नष्ट कर दिया जाता है। जैसे ही यह पता चलता है कि अमुक गर्भ से कन्या का जन्म होगा, तो गर्भपात कर दिया जाता है, यदि भारत में यह क्रूरता बन्द कर दी जाए तो यहाँ भी स्त्रियों की संख्या पुरूषों से अधिक होगी।

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    13. (आज स्थिति यह है कि भारतीय समाज विशेष रूप से हिन्दू समाज में कन्याभ्रुण हत्या का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। अल्ट्रा साउण्ड तकनीक द्वारा भ्रुण के लिंग का पता चलते ही गर्भ्रपात कराने का चलन चर्म पर पहुँच गया है और अब यह स्थिति है कि पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में स्त्रियों की इतनी कमी हो गई है कि लाखों पुरूष कुंवारे रह गए हैं। कुछ लोग अन्य राज्यों से पत्नियाँ ख़रीद कर लाने पर विवश हैं। इसका मुख्य कारण हिन्दू समाज में भयंकर दहेज प्रथा को बताया जाता है) अनुवादक

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    14. विश्व जनसंख्या में स्त्रियाँ अधिक हैं
      अमरीका में स्त्रियों की संख्या कुल आबादी में पुरूषों से 87 लाख
      अधिक है। केवल न्यूयार्क में स्त्रियाँ पुरूषों से लगभग 10 लाख अधिक हैं, जबकि न्यूयार्क में पुरूषों की एक तिहाई संख्या समलैंगिक है। पूरे अमरीका में कुल मिलाकर 2.50 करोड़ से अधिक समलैंगिक (Gays)मौजूद हैं अर्थात ये पुरूष स्त्रियों से विवाह नहीं करना चाहते। ब्रिटेन में स्त्रियों की संख्या पुरूषों से 40 लाख के लगभग अधिक है। इसी प्रकार जर्मनी में स्त्रियाँ पुरूषों से 50 लाख अधिक हैं। रूस में स्त्रियाँ पुरूषों से 90 लाख अधिक हैं। यह तो अल्लाह ही बेहतर जानता है कि विश्व में स्त्रियों की संख्या पुरूषों की अपेक्षा कितनी अधिक है।
      प्रत्येक पुरूष को केवल एक पत्नी तक सीमित रखना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं
      यदि प्रत्येक पुरूष को केवल एक पत्नी रखने की अनुमति हो तो केवल अमरीका ही में लगभग 3 करोड़ लड़कियाँ बिन ब्याही रह जाएंगी क्योंकि वहाँ लगभग ढाई करोड़ पुरूष समलैंगिक हैं। ब्रिटेन में 40 लाख, जर्मनी में 50 लाख और रूस में 90 लाख स्त्रियाँ पतियों से वंचित रहेंगी।
      मान लीजिए, आपकी या मेरी बहन अविवाहित है और अमरीकी नागरिक है तो उसके सामने दो ही रास्ते होंगे कि वह या तो किसी विवाहित पुरूष से शादी करे अथवा अविवाहित रहकर सार्वजनिक सम्पत्ति बन जाए, अन्य कोई विकल्प नहीं। समझदार और बुद्धिमान लोग पहले विकल्प को तरजीह देंगे।
      अधिकांश स्त्रियाँ यह नहीं चाहेंगी कि उनके पति की एक और पत्नी भी हो, और जब इस्लाम की बात सामने आए और पुरूष के लिए इससे शादी करना (इस्लाम को बचाने हेतु) अनिवार्य हो जाए तो एक साहिबे ईमान विवाहित मुसलमान महिला यह निजी कष्ट सहन करके अपने पति को दूसरी शादी की अनुमति दे सकती है ताकि अपनी मुसलमान बहन को ‘‘सार्वजनिक सम्पत्ति’’ बनने की बहुत बड़ी हानि से बचा सके।
      ‘‘सार्वजनिक सम्पत्ति’’ बनने से अच्छा है कि विवाहित पुरूष से शादी कर ली जाए
      पश्चिमी समाज में यह आम बात है कि पुरूष एक शादी करने के बावजूद (अपनी पत्नी के अतिरिक्त) दूसरी औरतों जैसे नौकरानियों (सेक्रेट्रीज़ और सहकर्मी महिलाओं) आदि से पति-पत्नि वाले सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जो एक स्त्री के जीवन को लज्जाजनक और असुरक्षित बना देती है, क्या यह अत्यंत खेद की बात नहीं कि वही समाज जो पुरूष को केवल एक ही पत्नी पर प्रतिबंधित करता है और दूसरी पत्नी को सिरे से स्वीकार नहीं करता, यद्यपि दूसरी स्त्री को वैध पत्नी होने के कारण समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, उसका सम्मान समान रूप से किया जाता है और वह एक सुरक्षित जीवन बिता सकती है।
      अतः वे स्त्रियाँ जिन्हें किसी कारणवश पति नहीं मिल पाता। वे केवल दो ही विकल्प अपनाने पर विवश होती हैं, किसी विवाहित पुरूष से दाम्पत्य जोड़ लें अथवा ‘‘सार्वजनिक सम्पति’’ बन जाएं। इस्लाम अच्छाई के आधार पर स्त्री को प्रतिष्ठा प्रदान करने के लिये पहले विकल्प की अनुमति देता है। इसके औचित्य में अनेक तर्क मौजूद हैं। परन्तु इस का प्रमुख उद्देश्य नारी की पवित्रता और सम्मान की रक्षा करना है।

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    15. एक समय में एक से अधिक पति (Policamy)
      प्रश्नः यदि एक पुरूष को एक से अधिक पत्नियाँ करने की अनुमति है तो इस्लाम में स्त्री को एक समय में अधिक पति रखने की अनुमति क्यों नहीं है?
      उत्तरः अनेकों लोग जिनमें मुसलमान भी शामिल हैं, यह पूछते हैं कि आख़िर इस्लाम मे पुरूषों के लिए ‘बहुपत्नी’ की अनुमति है जबकि स्त्रियों के लिए यह वर्जित है, इसका बौद्धिक तर्क क्या है?….क्योंकि उनके विचार में यह स्त्रि
      का ‘‘अधिकार’’ है जिससे उसे वंचित किया गया है आर्थात उसका अधिकार हनन किया गया है।
      पहले तो मैं आदरपूर्वक यह कहूंगा कि इस्लाम का आधार न्याय और समता पर है। अल्लाह ने पुरूष और स्त्री की समान रचना की है किन्तु विभिन्न योग्यताओं के साथ और विभिन्न ज़िम्मेदारियों के निर्वाहन के लिए। स्त्री और पुरूष न केवल शारीरिक रूप से एक दूजे से भिन्न हैं वरन् मनोवैज्ञानिक रूप से भी उनमें स्पष्ट अंतर है। इसी प्रकार उनकी भूमिका और दायित्वों में भी भिन्नता है। इस्लाम में स्त्री-पुरूष (एक दूसरे के) बराबर हैं परन्तु परस्पर समरूप (Identical)नहीं है।
      पवित्र क़ुरआन की पवित्र सूरह ‘‘अन्-निसा’’ की 22वीं और 24वीं आयतों में उन स्त्रियों की सूची दी गई है जिनसे मुसलमान विवाह नहीं कर सकते। 24वीं पवित्र आयत में यह भी बताया गया है कि उन स्त्रियों से भी विवाह करने की अनुमति नहीं है जो विवाहित हो।
      निम्ननिखित कारणों से यह सिद्ध किया गया है कि इस्लाम में स्त्री के लिये एक समय में एक से अधिक पति रखना क्यों वर्जित किया गया है।
      1. यदि किसी व्यक्ति के एक से अधिक पत्नियाँ हों तो उनसे उत्पन्न संतानों के माता-पिता की पहचान सहज और संभव है अर्थात ऐसे बच्चों के माता-पिता के विषय में किसी प्रकार का सन्देह नहीं किया जा सकता और समाज में उनकी प्रतिष्ठा स्थापित रहती है। इसके विपरीत यदि किसी स्त्री के एक से अधिक पति हों तो ऐसी संतानों की माता का पता तो चल जाएगा लेकिन पिता का निर्धारण कठिन होगा। इस्लाम की सामाजिक व्यवस्था में माता-पिता की पहचान को अत्याधिक महत्व दिया गया है।
      मनोविज्ञान शास्त्रियों का कहना है कि वे बच्चे जिन्हें माता पिता का ज्ञान नहीं, विशेष रूप से जिन्हें अपने पिता का नाम न मालूम हो वे अत्याघिक मानसिक उत्पीड़न और मनोवैज्ञानिक समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं। आम तौर पर उनका बचपन तनावग्रस्त रहता है। यही कारण है कि वेश्याओं के बच्चों का जीवन अत्यंत दुख और पीड़ा में रहता है। ऐसी कई पतियों की पत्नी से उत्पन्न बच्चे को जब स्कूल में भर्ती कराया जाता है और उस समय जब उसकी माता से बच्चे के बाप का नाम पूछा जाता है तो उसे दो अथवा अधिक नाम बताने पड़ेंगे।
      मुझे उस आधुनिक विज्ञान की जानकारी है जिसके द्वारा ‘‘जेनिटिक टेस्ट’’ या DNA जाँच से बच्चे के माता-पिता की पहचान की जा सकती है, अतः संभव है कि अतीत का यह प्रश्न वर्तमान युग में लागू न हो।
      2. स्त्री की अपेक्षा पुरूष में एक से अधिक पत्नी का रूझान अधिक है।
      3. सामाजिक जीवन के दृष्टिकोण से देखा जाए तो एक पुरूष के लिए कई पत्नियों के होते हुए भी अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करना सहज होता है। यदि ऐसी स्थिति का सामना किसी स्त्री को करना पड़े अर्थात उसके कई पति हों तो उसके लिये पत्नी की ज़िम्मेदारिया कुशलता पूर्वक निभाना कदापि सम्भव नहीं होगा। अपने मासिक धर्म के चक्र में विभिन्न चरणों के दौरान एक स्त्री के व्यवहार और मनोदशा में अनेक परिवर्तन आते हैं।
      4. किसी स्त्री के एक से अधिक पति होने का मतलब यह होगा कि उसके शारीरिक सहभागी (Sexual Partners)भी अधिक होंगे। अतः उसको किसी गुप्तरोग से ग्रस्त हो जाने की आशंका अधिक होगी चाहे वह समस्त पुरूष उसी एक स्त्री तक ही सीमित क्यों न हों। इसके विपरीत यदि किसी पुरूष की अनेक पत्नियाँ हों और वह अपनी सभी पत्नियों तक ही सीमित रहे तो ऐसी आशंका नहीं के बराबर है।
      उपरौक्त तर्क और दलीलें केवल वह हैं जिनसे सहज में समझाया जा सकता है। निश्चय ही जब अल्लाह तआला ने स्त्री के लिए एक से
      अधिक पति रखना वर्जित किया है तो इसमें मानव जाति की अच्छाई के अनेकों उद्देश्य और प्रयोजन निहित होंगे।

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    16. मुसलमान औरतों के लिये हिजाब (पर्दा)
      प्रश्नः ‘‘इस्लाम औरतों को पर्दे में रखकर उनका अपमान क्यों करता है?
      उत्तरः विधर्मी मीडिया विशेष रूप से इस्लाम में स्त्रियां को लेकर समय समय पर आपत्ति और आलोचना करता रहता है। हिजाब अथवा मुसलमान स्त्रियों के वस्त्रों (बुर्का) इत्यादि को अधिकांश ग़ैर मुस्लिम इस्लामी कानून के तहत महिलाओं का ‘अधिकार हनन’ ठहराते हैं। इससे पहले कि हम इस्लाम में स्त्रियों के पर्दे पर चर्चा करें, यह अच्छा होगा कि इस्लाम के उदय से पूर्व अन्य संस्कृतियों में नारी जाति की स्थिति और स्थान पर एक नज़र डाल ली जाए।
      अतीत में स्त्रियों को केवल शारीरिक वासनापूर्ति का साधन समझा जाता था और उनका अपमान किया जाता था। निम्नलिखित उदाहरणों से यह तथ्य उजागर होता है कि इस्लाम के आगमन से पूर्व की संस्कृतियों और समाजों में स्त्रियों का स्थान अत्यंत नीचा था और उन्हें समस्त मानवीय अधिकारों से वंचित रखा गया था।
      बाबुल (बेबिलोन) संस्कृति में
      प्राचीन बेबिलोन संस्कृति में नारीजाति को बुरी तरह अपमानित किया गया था। उन्हें समस्त मानवीय अधिकारों से वंचित रखा गया था। मिसाल के तौर पर यदि कोई पुरुष किसी की हत्या कर देता था तो मृत्यु दण्ड उसकी पत्नी को मिलता था।
      यूनानी (ग्रीक) संस्कृति में
      प्राचीन काल में यूनानी संस्कृति को सबसे महान और श्रेष्ठ माना जाता है। इसी ‘‘श्रेष्ठ’’ सांस्कृतिक व्यवस्था में स्त्रियों को किसी प्रकार का अधिकार प्राप्त नहीं था। प्राचीन यूनानी समाज में स्त्रियों को हेय दृष्टि से देखा जाता था। यूनानी पौराणिक साहित्य में ‘‘पिंडौरा’’ नामक एक काल्पनिक महिला का उल्लेख मिलता है जो इस संसार में मानवजाति की समस्त समस्याओं और परेशानियों का प्रमुख कारण थी, यूनानियों के अनुसार नारी जाति मनुष्यता से नीचे की प्राणी थी और उसका स्थान पुरूषों की अपेक्षा तुच्छतम था, यद्यपि यूनानी संस्कृति में स्त्रियों के शील और लाज का बहुत महत्व था तथा उनका सम्मान भी किया जाता था, परन्तु बाद के युग में यूनानियों ने पुरूषों के अहंकार और वासना द्वारा अपने समाज में स्त्रियों की जो दुर्दशा की वह यूनानी संस्कृति के इतिहास में देखी जा सकती है। पूरे यूनानी समाज में देह व्यापार समान्य बात होकर रह गई थी।
      रोमन संस्कृति में
      जब रोमन संस्कृति अपने चरमोत्कर्ष पर थी तो वहाँ पुरूषों को यहाँ तक स्वतंत्रता प्राप्त थी कि पत्नियों की हत्या तक करने का अधिकार था। देह व्यापार और व्यभिचार पर कोई प्रतिबन्ध नहीं था।
      प्राचीन मिस्री संस्कृति में
      मिस्र की प्राचीन संस्कृति को विश्व की आदिम संस्कृतियों में सबसे उन्नत संस्कृति माना जाता है। वहाँ स्त्रियों को शैतान का प्रतीक माना जाता था।
      इस्लाम से पूर्व अरब में
      अरब में इस्लाम के प्रकाशोदय से पूर्व स्त्रियों को अत्यंत हेय और तिरस्कृत समझा जाता था। आम तौर पर अरब समाज में यह कुप्रथा प्रचलित थी कि यदि किसी के घर कन्या का जन्म होता तो उसे जीवित दफ़न कर दिया जाता था। इस्लाम के आगमन से पूर्व अरब संस्कृति अनेकों प्रकार की बुराइयों से बुरी तरह दूषित हो चुकी थी।
      इस्लाम की रौशनी
      इस्लाम ने नारी जाती को समाज में ऊँचा स्थान दिया, इस्लाम ने स्त्रियों को पुरूषों के समान अधिकार प्रदान किये और मुसलमानों को उनकी रक्षा करने का निर्देश दिया है। इस्लाम ने आज से 1400 वर्ष पूर्व स्त्रियों को उनके उचित अधिकारों के निर्धारण का क्रांतिकारी कष्दम उठाया जो विश्व के सांकृतिक और समाजिक इतिहास की सर्वप्रथम घटना है। इस्लाम ने जो श्रेष्ठ स्थान स्त्रियों को दिया है उसके लिये मुसलमान स्त्रियों से अपेक्षा भी करता है कि वे इन अधिकारों की सुरक्षा भी करेंगी।
      पुरूषों के लिए हिजाब (पर्दा)
      आम तौर से लोग स्त्रियों के हिजाब की बात करते हैं परन्तु पवित्र क़ुरआन में स्त्रियों के हिजाब से पहले पुरूषों के लिये हिजाब की चर्चा की गई है। (हिजाब शब्द का अर्थ है शर्म, लज्जा, आड़, पर्दा, इसका अभिप्राय केवल स्त्रियों के चेहरे अथवा शरीर ढांकने वाले वस्त्र, चादर अथवा बुरका इत्यादि से ही नहीं है।)

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    17. पवित्र क़ुरआन की सूरह ‘अन्-नूर’ में पुरूषों के हिजाब की इस प्रकार चर्चा की गई हैः
      ‘‘हे नबी! ईमान रखने वालों (मुसलमानों) से कहो कि अपनी नज़रें बचाकर रखें और अपनी शर्मगाहों की रक्षा करें। यह उनके लिए ज़्यादा पाकीज़ा तरीका है, जो कुछ वे करते हैं अल्लाह उससे बाख़बर रहता है।’’ (पवित्र क़ुरआन, 24:30)
      इस्लामी शिक्षा में प्रत्येक मुसलमान को निर्देश दिया गया है कि जब कोई पुरूष किसी स्त्री को देख ले तो संभवतः उसके मन में किसी प्रकार का बुरा विचार आ जाए अतः उसे चाहिए कि वह तुरन्त नज़रें नीची कर ले।
      स्त्रियों के लिए हिजाब
      पवित्र क़ुरआन में सूरह ‘अन्-नूर’ में आदेश दिया गया हैः
      ‘‘हे नबी! मोमिन औरतों से कह दो, अपनी नज़रें बचा कर रखें और अपनी शर्मगाहों की सुरक्षा करें, और अपना बनाव-श्रंगार न दिखाएं, सिवाय इसके कि वह स्वतः प्रकट हो जाए और अपने वक्ष पर अपनी ओढ़नियों के आँचल डाले रहें, वे अपना बनाव-श्रंगार न दिखांए, परन्तु उन लोगों के सामने पति, पिता, पतियों के पिता, पुत्र…।’’ (पवित्र क़ुरआन, 24:31)
      हिजाब की 6 कसौटियाँ
      पवित्र क़ुरआनके अनुसार हिजाब के लिए 6 बुनियादी कसौटियाँ अथवा शर्तें लागू की गई हैं।
      1. सीमाएँ (Extent):प्रथम कसोटी तो यह है कि शरीर का कितना भाग (अनिवार्य) ढका होना चाहिए। पुरूषों और स्त्रियों के लिये यह स्थिति भिन्न है। पुरूषों के लिए अनिवार्य है कि वे नाभी से लेकर घुटनों तक अपना शरीर ढांक कर रखें जबकि स्त्रियों के लिए चेहरे के सिवाए समस्त शरीर को और हाथों को कलाईयों तक ढांकने का आदेश है। यदि वे चाहें तो चेहरा और हाथ भी ढांक सकती हैं। कुछ उलेमा का कहना है कि हाथ और चेहरा शरीर का वह अंग है जिनको ढांकना स्त्रियों के लिये अनिवार्य है अर्थात स्त्रियों के हिजाब का हिस्सा है और यही कथन उत्तम है। शेष पाँचों शर्तें स्त्रियों और पुरूषों के लिए समान हैं।
      2. धारण किए गये वस्त्र ढीले-ढाले हों, जिससे अंग प्रदर्शन न हो (मतलब यह कि कपड़े तंग, कसे हुए अथवा ‘‘फ़िटिंग’’ वाले न हों।
      3. पहने हुए वस्त्र पारदर्शी न हों जिनके आर पार दिखाई देता हो।
      4. पहने गए वस्त्र इतने शोख़, चटक और भड़कदार न हों जो स्त्रियों को पुरूषों और पुरूषों को स्त्रियों की ओर आकर्षित करते हों।
      5. पहने गए वस्त्रों का स्त्रियों और पुरूषों से भिन्न प्रकार का होना अनिवार्य है अर्थात यदि पुरूष ने वस्त्र धारण किये हैं तो वे पुरूषों के समान ही हों, स्त्रियों के वस्त्र स्त्रियों जैसे ही हों और उन पर पुरूषों के वस्त्रों का प्रभाव न दिखाई दे। (जैसे आजकल पश्चिम की नकल में स्त्रियाँ पैंट-टीशर्ट इत्यादि धारण करती हैं। इस्लाम में इसकी सख़्त मनाही है, और मुसलमान स्त्रियों के लिए इस प्रकार के वस्त्र पहनना हराम है।
      6. पहने गए वस्त्र ऐसे हों कि जिनमें ‘काफ़िरों’ की समानता न हो। अर्थात ऐसे कपड़े न पहने जाएं जिनसे (काफ़िरों के किसी समूह) की कोई विशेष पहचान सम्बद्ध हो। अथवा कपड़ों पर कुछ ऐसे प्रतीक चिन्ह बने हों जो काफ़िरों के धर्मों को चिन्हित करते हों।
      हिजाब में पर्दें के अतिरिक्त कर्म और
      आचरण भी शामिल है
      लिबास में उपरौक्त 6 शर्तों के अतिरिक्त सम्पूर्ण ‘हिजाब’ में पूरी नैतिकता, आचरण, रवैया और हिजाब करने वाले की नियत भी शामिल है। यदि कोई व्यक्ति केवल शर्तों के अनुसार वस्त्र धारण करता हे तो वह हिजाब के आदेश पर सीमित रूप से ही अमल कर रहा होगा। लिबास के हिजाब के साथ ‘आँखों का हिजाब, दिल का हिजाब, नियत और अमल का हिजाब भी आवश्यक है। इस (हिजाब) में किसी व्यक्ति का चलना, बोलना और आचरण तथा व्यवहार सभी कुछ शामिल है।
      हिजाब स्त्रियों को छेड़छाड़ से बचाता है
      स्त्रियों के लिये हिजाब क्यों अनिवार्य किया गया है? इसका एक कारण पवित्र क़ुरआन के सूरह ‘‘अहज़ाब’’ में इस प्रकार बताया गया हैः
      ‘‘हे नबी! अपनी पत्नियों और बेटियों और ईमान रखने वाले (मुसलमानों) की स्त्रियों से कह दो कि अपनी चादरों के पल्लू लटका लिया करें, यह मुनासिब तरीका है ताकि वे पहचान ली जाएं, और न सताई जाएं। अल्लाह ग़फूर व रहीम (क्षमा करने वाला और दयावान) है। (पवित्र क़ुरआन , 33:59)
      पवित्र क़ुरआन की इस आयत से यह स्पष्ट है कि स्त्रियों के लिये पर्दा इस कारण अनि‍वार्य किया गया ताकि वे सम्मानित ढंग से पहचान ली जाएं और छेड़छाड़ से भी सुरक्षित रह सकें।

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    18. जुड़वाँ बहनों की मिसाल
      ‘‘मान लीजिए कि दो जुड़वाँ बहनें हैं, जो समान रूप से सुन्दर भी हैं। उनमें एक ने पूर्णरूप से इस्लामी हिजाब किया हुआ है, उसका सारा शरीर (चादर अथवा बुरके से) ढका हुआ है। दूसरी जुड़वाँ बहन ने पश्चिमी वस्त्र धारण किये हुए हैं, अर्थात मिनी स्कर्ट अथवा शाटर्स इत्यादि जो पश्चिम में प्रचलित सामान्य परिधान है। अब मान लीजिए कि गली के नुक्कड़ पर कोई आवारा, लुच्चा लफ़ंगा या बदमाश बैठा है, जो आते जाते लड़कियों को छेड़ता है, ख़ास तौर पर युवा लड़कियों को। अब आप बताईए कि वह पहले किसे तंग करेगा? इस्लामी हिजाब वाली लड़की को या पश्चिमी वस्त्रों वाली लड़की को?’’
      ज़ाहिर सी बात है कि उसका पहला लक्ष्य वही लड़की होगी जो पश्चिमी फै़शन के कपड़ों में घर से निकली है। इस प्रकार के आधुनिक वस्त्र पुरूषों के लिए प्रत्यक्ष निमंत्रण होते हैं। अतः यह सिद्ध हुआ कि पवित्र कुरआन ने बिल्कुल सही फ़रमाया है कि ‘‘हिजाब लड़कियों को छेड़छाड़ इत्यादि से बचाता है।’’
      दुष्कर्म का दण्ड, मृत्यु
      इस्लामी शरीअत के अनुसार यदि किसी व्यक्ति पर किसी विवाहित स्त्री के साथ दुष्कर्म (शारीरिक सम्बन्ध) का अपराध सिद्ध हो जाए तो उसके लिए मृत्युदण्ड का प्रावधान है। बहुतों को इस ‘‘क्रूर दण्ड व्यवस्था’’ पर आश्चर्य है। कुछ लोग तो यहाँ तक कह देते हैं कि इस्लाम एक निर्दयी और क्रूर धर्म है, नऊजुबिल्लाह (ईश्वर अपनी शरण में रखे) मैंने सैंकड़ो ग़ैर मुस्लिम पुरूषों से यह सादा सा प्रश्न किया कि ‘‘मान लें कि ईश्वर न करे, आपकी अपनी बहन, बेटी या माँ के साथ कोई दुष्कर्म करता है और उसे उसके अपराध का दण्ड देने के लिए आपके सामने लाया जाता है तो आप क्या करेंगे?’’ उन सभी का यह उत्तर था कि ‘‘हम उसे मार डालेंगे।’’ कुछ ने तो यहाँ तक कहा, ‘‘हम उसे यातनाएं देते रहेंगे, यहाँ तक कि वह मर जाए।’’ तब मैंने उनसे पूछा, ‘‘यदि कोई व्यक्ति आपकी माँ, बहन, बेटी की इज़्ज़त लूट ले तो आप उसकी हत्या करने को तैयार हैं, परन्तु यही दुर्घटना किसी अन्य की माँ, बहन, बेटी के साथ घटी हो तो उसके लिए मृत्युदण्ड प्रस्तावित करना क्रूरता और निर्दयता कैसे हो सकती है? यह दोहरा मानदण्ड क्यों है?’’
      स्त्रियों का स्तर ऊँचा करने का
      पश्चिमी दावा निराधार है
      नारी जाति की स्वतंत्रता के विषय में पश्चिमी जगत की दावेदारी एक ऐसा आडंबर है जो स्त्री के शारीरिक उपभोग, आत्मा का हनन तथा स्त्री को प्रतिष्ठा और सम्मान से वंचित करने के लिए रचा गया है। पश्चिमी समाज का दावा है कि उसने स्त्री को प्रतिष्ठा प्रदान की है, वास्तविकता इसके विपरीत है। वहाँ स्त्री को ‘‘आज़ादी’’ के नाम पर बुरी तरह अपमानित किया गया है। उसे ‘‘मिस्ट्रेस’’ (हर प्रकार की सेवा करने वाली दासी) तथा ‘‘सोसाइटी बटरफ़्लाई’’ बनाकर वासना के पुजारियों तथा देह व्यापारियों का खिलौना बना दिया गया है। यही वे लोग हैं जो ‘‘आर्ट’’ और ‘‘कल्चर’’ के पर्दों में छिपकर अपना करोबार चमका रहे हैं।
      अमरीका मे बलात्कार की दर सर्वाधिक है

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    19. संयुक्त राज्य अमरीका (U.S.A.)को विश्व का सबसे अधिक प्रगतिशील देश समझा जाता है। परन्तु यही वह महान देश है जहाँ बलात्कार की घटनाएं पूरे संसार की अपेक्षा सबसे अधिक होती हैं। एफ़.बी.आई की रिपोर्ट के अनुसार 1990 ई. में केवल अमरीका में प्रति दिन औसतन 1756 बलात्कार की घटनाएं हुईं। उसके बाद की रिपोर्टस में (वर्ष नहीं लिखा) प्रतिदिन 1900 बलात्कार काण्ड दर्ज हुए। संभवतः यह आंकड़े 1992, 1993 ई. के हों और यह भी संभव है कि इसके बाद अमरीकी पुरूष बलात्कार के बारे में और ज़्यादा ‘‘बहादुर’’ हो गए हों।
      ‘‘वास्तव में अमरीकी समाज में देह व्यापार को कषनूनी दर्जा हासिल है। वहाँ की वेश्याएं सरकार को विधिवत् टेक्स देती हैं। अमरीकी कानून में ‘बलात्कार’ ऐसे अपराध को कहा जाता है जिसमें शारीरिक सम्बन्ध में एक पक्ष (स्त्री अथवा पुरूष) की सहमति न हो। यही कारण है कि अमरीका में अविवाहित जोड़ों की संख्या लाखों में है जबकि स्वेच्छा से व्याभिचार अपराध नहीं माना जाता। अर्थात इस प्रकार के स्वेच्छाचार और व्यभिचार को भी बलात् दुष्कर्म की श्रेणी में लाया जाए तो केवल अमरीका में ही लाखों स्त्री-पुरूष ‘‘ज़िना’’ जैसे महापाप में संलग्न हैं।’’ (अनुवादक)
      ज़रा कल्पना कीजिए कि अमरीका में इस्लामी हिजाब की पाबन्दी की जाती है जिसके अनुसार यदि किसी पुरूष की दृष्टि किसी परस्त्री पर पड़ जाए तो वह तुरंत आँखें झुका ले। प्रत्येक स्त्री पूरी तरह से इस्लामी हिजाब करके घर से निकले। फिर यह भी हो कि यदि कोई पुरूष बलात्कार का दोषी पाया जाए तो उसे मृत्युदण्ड दिया जाए, मैं आपसे पूछता हूँ कि ऐसे हालात में अमरीका में बलात्कार की दर बढ़ेगी, सामान्य रहेगी अथवा घटेगी?
      इस्लीमी शरीअत के लागू होने से बलात्कार घटेंगे
      यह स्वाभाविक सी बात है कि जब इस्लामी शरीअत का कानून लागू होगा तो उसके सकारात्मक परिणाम भी शीध्र ही सामने आने लगेंगे। यदि इस्लामी कानून विश्व के किसी भाग में भी लागू हो जाए, चाहे अमरीका हो, अथवा यूरोप, मानव समाज को राहत की साँस मिलेगी। हिजाब स्त्री के सम्मान और प्रतिष्ठा को कम नहीं करता वरन् इससे तो स्त्री का सम्मान बढ़ता है। पर्दा महिलाओं की इज़्ज़त और नारित्व की सुरक्षा करता है।
      ‘‘हमारे देश भारत में प्रगति और ज्ञान के विकास के नाम पर समाज में फै़शन, नग्नता और स्वेच्छाचार बढ़ा है, पश्चिमी संस्कृति का प्रसार टी.वी और सिनेमा आदि के प्रभाव से जितनी नग्नता और स्वच्छन्दता बढ़ी है उससे न केवल हिन्दू समाज का संभ्रांत वर्ग बल्कि मुसलमानों का भी एक पढ़ा लिखा ख़ुशहाल तब्क़ा बुरी तरह प्रभावित हुआ है। आज़ादी और प्रगतिशीलता के नाम पर परंपरागत भारतीय समाज की मान्यताएं अस्त-व्यस्त हो रही हैं, अन्य अपराधों के अतिरिक्त बलात्कार की घटनाओं में तेज़ी से वृद्धि हो रही है। चूंकि हमारे देश का दण्डविघान पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित है अतः इसमें भी स्त्री-पुरूष को स्चेच्छा और आपसी सहमति से दुष्कर्म करने को दण्डनीय अपराध नहीं माना जाता, भारतीय कानून में बलात्कार जैसे जघन्य अपराध की सज़ा भी कुछ वर्षों की कैद से अधिक नहीं है तथा न्याय प्रक्रिया इतनी विचित्र और जटिल है कि बहुत कम अपराधियों को दण्ड मिल पाता है। इस प्रकार के अमानवीय अपराधों को मानव समाज से केवल इस्लामी कानून द्वारा ही रोका जा सकता है। इस संदर्भ में इस्लाम और मुसलमानों के कट्टर विरोधी भाजपा नेता श्री लाल कृष्ण आडवानी ने बलात्कार के अपराधियों को मृत्यु दण्ड देने का सुझाव जिस प्रकार दिया है उस से यही सन्देश मिलता है कि इस्लामी कानून क्रूरता और निर्दयता पर नहीं बल्कि स्वाभाविक न्याय पर आधारित है। यही नहीं केवल इस्लामी शरीअत के उसूल ही प्रगति के नाम पर विनाश के गर्त में गिरती जा रही मानवता को तबाह होने से बचा सकते हैं।’’ (अनुवादक)

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    20. क्या इस्लाम तलवार के ज़ोर से फैला है?
      प्रश्नः यह कैसे संभव है कि इस्लाम को शांति का धर्म माना जाए क्योंकि यह तो तलवार (युद्ध और रक्तपात) के द्वारा फैला है?
      उत्तरः अधिकांश ग़ैर मुस्लिमों की एक आम शिकायत है कि यदि इस्लाम ताकष्त के इस्तेमाल से न फैला होता तो इस समय उनके अनुयायियों की संख्या इतनी अधिक (अरबों में) हरगिज़ नहीं होती। आगे दर्ज किये जा रहे तथ्य यह स्पष्ट करेंगे कि इस्लाम के तेज़ी से विश्वव्यापी फैलाव में तलवार की शक्ति नहीं वरन् उसकी सत्यता तथा बुद्धि और विवेकपूर्ण तार्किक प्रमाण इसके मुख्य कारण है।
      इस्लाम का अर्थ है ‘शांति’ अरबी भाषा में इस्लाम शब्द ‘सलाम’ से बना है जिसका अर्थ है, सलामती और शांति। इस्लाम का एक अन्य अर्थ है कि अपनी इच्छा और इरादों को ईश्वर (अल्लाह) के आधीन कर दिया जाए। अर्थात इस्लाम शांति का धर्म है और यह शांति (सुख संतोष और सुरक्षा) तभी प्राप्त हो सकती है जब मनुष्य अपने आस्तित्व, इच्छाओं ओर आकांक्षाओं को ईश्वर के आधीन कर दे अर्थात स्वंय को पूरी तरह समर्पित कर दे। कभी-कभार शांति बनाए रखने के लिए बल प्रयोग करना पड़ता है
      इस संसार का प्रत्येक व्यक्ति शांति और एकता स्थापित रखने के पक्ष में नहीं है। ऐसे अनेकों लोग हैं जो अपने निहित अथवा प्रत्यक्ष स्वार्थों की पूर्ति के लिए शांति व्यवस्था में व्यावधान उत्पन्न करते रहते हैं, अतः कुछ अवसरों पर बल प्रयोग करना पड़ता है। यही कारण है कि प्रत्येक देश में पुलिस विभाग होता है जो अपराधियों और समाज विरोधी तत्वों के विरुद्ध शक्ति का प्रयोग करता है ताकि देश में शांति व्यवस्था बनी रहे। इस्लाम शांति का सन्देश देता है। इसी के साथ वह हमें यह शिक्षा भी देता है कि अन्याय के विरुद्ध लड़ें। अतः कुछ अवसरों पर अन्याय और अराजकता के विरुद्ध बल प्रयोग आवश्यक हो जाता है। विदित हो कि इस्लाम में शक्ति का प्रयोग केवल और केवल शांति तथा न्याय की स्थापना एवं विकास के लिए ही किया जा सकता है।
      इतिहासकार लेसी ओलेरी की राय
      इस्लाम तलवार के ज़ोर से फैला, इस सामान्य भ्रांति का सटीक जवाब प्रसिद्ध इतिहासकार लेसी ओलेरी ने अपनी विख्यात पुस्तक ‘‘इस्लाम ऐट दि क्रास रोड’’ पृष्ठ 8) में इस प्रकार दिया है।
      ‘‘इतिहास से सिद्ध होता है कि लड़ाकू मुसलमानों के समस्त विश्व में फैलने और विजित जातियों को तलवार के ज़ोर पर इस्लाम में प्रविष्ट करने की कपोल-कल्पित कहानी उन मनगढ़ंत दंतकथाओं में से एक है जिन्हें इतिहासकार सदैव से दोहराते आ रहे हैं।’’
      मुसलमानों ने स्पेन पर 800 वर्षों तक शासन किया
      स्पेन पर मुसलमानों का 800 वर्षों तक एकछत्र शासन रहा है परन्तु स्पेन में मुसलमानों ने वहाँ के लोगों का धर्म परिवर्तन अर्थात मुसलमान बनाने के लिए कभी तलवार का उपयोग नही किया। बाद में सलीबी ईसाईयों ने स्पेन पर कष्ब्ज़ा कर लिया और मुसलमानों को वहाँ से निकाल बाहर किया, तब यह स्थिति थी कि स्पेन में किसी एक मुसलमान को भी यह अनुमति नहीं थी कि वह आज़ादी से अज़ान ही दे सकता।
      एक करोड़ 40 लाख अरब आज भी कोपटिक ईसाई हैं
      मुसलमान विगत् 1400 वर्षों से अरब के शासक रहे हैं। बीच के कुछ वर्ष ऐसे हैं जब वहाँ फ्ऱांसीसी अधिकार रहा परन्तु कुल मिलाकर अरब की धरती पर मुसलमान 14 शताब्दियों से शासन कर रहे हैं। इसके बावजूद वहाँ एक करोड़ 40 लाख कोपटिक क्रिश्चियन हैं, अर्थात वह ईसाई जो पीढ़ी दर पीढ़ी वहाँ रहते चले आ रहे हैं। यदि मुसलमानों ने तलवार इस्तेमाल की होती तो उस क्षेत्र में कोई एक अरबवासी भी ऐसा नहीं होता जो ईसाई रह जाता।
      भारत में 80 प्रतिशत से अधिक ग़ैर मुस्लिम हैं
      भारत में मुसलमानों ने लगभग 1000 वर्षों तक शासन किया है। यदि वे चाहते, और उनके पास इतनी शक्ति थी कि भारत में बसने वाले प्रत्येक ग़ैर मुस्लिम को (तलवार के ज़ोर पर) इस्लाम स्वीकार करने पर विवश कर सकते थे। आज भारत में 80 प्रतिशत से अधिक ग़ैर मुस्लिम हैं। इतनी बड़ी गै़र मुस्लिम जनसंख्या यह स्पष्ट गवाही दे रही है कि उपमहाद्वीप में इस्लाम तलवार के ज़ोर पर हरगिज़ नहीं फैला।
      इंडोनेशिया और मलेशिया

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    21. जनसंख्या के आधार पर इंडोनेशिया विश्व का सबसे बड़ा इस्लामी देश है। मलेशिया में भी मुसलमान बहुसंख्यक हैं। यह पूछा जासकता है कि वह कौन सी सेना थी जिसने (सशस्त्र होकर) इंडोनेशिया और मलेशिया पर आक्रमण किया था और वहाँ इस्लाम फैलाने के लिए मुसलमानों की कौन सी युद्ध शक्ति का इसमें हाथ है?
      अफ्ऱीकष का पूर्वी समुद्र तट
      इसी प्रकार अफ्ऱीकी महाद्वीप के पूर्वी समुद्रतट के क्षेत्र के साथ-साथ इस्लाम का तीव्रगति से विस्तार हुआ है। एक बार फिर वही प्रश्न सामाने आता है कि यदि इस्लाम तलवार के ज़ोर से फैला है तो आपत्ति करने वाले इतिहास का तर्क देकर बताएं कि किस देश की मुसलमान सेना उन क्षेत्रों को जीतने और वहाँ के लोगों को मुसलमान बनाने गई थी?
      थामस कारलायल
      प्रसिद्ध इतिहासकार थामस कारलायल अपनी पुस्तक ‘‘हीरोज़ एण्ड हीरो वर्शिप’’ में इस्लाम फैलने के विषय में भ्रांति का समाधान करते हुए लिखता हैः
      ‘‘तलवार तो है, परन्तु आप तलवार लेकर वहाँ जाएंगे? प्रत्येक नई राय की शुरूआत अल्पमत में होती है। (आरंभ में) केवल एक व्यक्ति के मस्तिष्क में होती है, यह सोच वहीं से पनपती है। इस विश्व का केवल एक व्यक्ति जो इस बात पर विश्वास रखता है, केवल एक व्यक्ति जो शेष समस्त व्यक्तियों के सामने होता है, फिर (यदि) वह तलवार उठा ले और (अपनी बात) का प्रचार करने का प्रयास करने लगे तो वह थोड़ी सी सफलता ही पा सकेगा। आप के पास अपनी तलवार अवश्य होनी चाहिए परन्तु कुल मिलाकर कोई वस्तु उतना ही फैलेगी जितना वह अपने तौर पर फैल सकती है।’’
      दीन (इस्लाम) में कोई ज़बरदस्ती नहीं
      इस्लाम किस तलवार द्वारा फैला? यदि मुसलमानों के पास यह तलवार होती और उन्होंने इस्लाम फैलाने के लिये उसका प्रयोग किया भी होता तब भी वे उसका प्रयोग नहीं करते क्योंकि पवित्र क़ुरआन का स्पष्ट आदेश हैः
      ‘‘दीन के बारे में कोई ज़बरदस्ती नहीं है, सही बात ग़लत बात से छाँटकर रख दी गई है।’’ (पवित्र क़ुरआन, 2:256)
      ज्ञान, बुद्धि और तर्क की तलवार
      वास्तविकता यह है कि जिस तलवार ने इस्लाम को फैलाया, वह ज्ञान, बुद्धि और तर्क की तलवार है। यही वह तलवार है जो मनुष्य के हृदय और मस्तिष्क को विजित करती है। पवित्र कुरआन के सूरह ‘अन्-नह्ल’ में अल्लाह का फ़रमान हैः
      ‘‘हे नबी! अपने रब के रास्ते की तरफ़ दावत दो, ज्ञान और अच्छे उपदेश के साथ लोगों से तर्क-वितर्क करो, ऐसे ढंग से जो बेहतरीन हो। तुम्हारा रब ही अधिक बेहतर जानता है कि कौन राह से भटका हुआ है और कौन सीधे रास्ते पर है।’’ (पवित्र क़ुरआन, 16:125)
      इस्लाम 1934 से 1984 के बीच
      विश्व में सर्वाधिक फैलने वाला धर्म रीडर्स डायजेस्ट, विशेषांक 1984 में प्रकाशित एक लेख में विश्व के प्रमुख धर्मों में फैलाव के आंकड़े दिये गये हैं जो 1934 से 1984 तक के 50 वर्षों का ब्योरा देते हैं। इसके पश्चात यह लेख ‘दि प्लेन ट्रुथ’’ नामक पत्रिका में भी प्रकाशित हुआ। इस आकलन में इस्लाम सर्वोपरि था जो 50 वर्षों में 235 प्रतिशत बढ़ा था। जबकि ईसाई धर्म का विस्तार केवल 47 प्रतिशत रहा। क्या यह पूछा जा सकता है कि इस शताब्दी में कौन सा युद्ध हुआ था जिसने करोड़ों लोगों को धर्म परिवर्तन पर बाध्य कर दिया?
      इस्लाम यूरोप और अमरीका में सबसे अधिक तेज़ी से फैलने वाला धर्म है इस समय इस्लाम अमरीका में सबसे अधिक तेज़ी से फैलने वाला धर्म है। इसी प्रकार यूरोप में भी तेज़ गति से फैलने वाला धर्म भी इस्लाम ही है। क्या आप बता सकते हैं कि वह कौन सी तलवार है जो पश्चिम के लोगोें को इस्लाम स्वीकार करने पर विवश कर रही है।
      डा. पीटर्सन का मत डा. जोज़फ़ एडम पीटर्सन ने बिल्कुल ठीक कहा है किः
      ‘‘जो लोग इस बात से भयभीत हैं कि ऐटमी हथियार एक न एक दिन अरबों के हाथों में चले जाएंगे, वे यह समझ पाने में असमर्थ हैं कि इस्लामी बम तो गिराया जा चुका है, यह बम तो उसी दिन गिरा दिया गया था जिस दिन मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म हुआ था।’’

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    22. मुसलमान रूढ़िवादी ;(Fundamentalist) और आतंकवादी हैं
      प्रश्नः अधिकांश मुसलमान रूढ़िवादी और आतंकवादी हैं?
      उत्तरः यह वह प्रश्न है जो मुसलमानों से प्रायः सीधे अथवा सांकेतिक रूप से विश्व समस्याओं अथवा धर्म पर चर्चा के दौरान किया जाता है। मुसलमानों के विरुद्ध ऐसी मानसिकता मीडिया मे निरंतर व्यक्त की जाती है और उसके साथ मुसलमानों के विषय में आधारहीन जानकारी भी जोड़ दी जाती है।
      वास्तव में यही वह ग़लत-सलत जानकारी और झूठे प्रचार हैं जो मुसलमानों के साथ भेदभाव और उनके विरुद्ध हिंसक कार्यवाहियों के पीछे होते हैं। इस जगह मैं अमरीकी मीडिया में मुसलमानों के विरुद्ध ज़हरीले प्रचार का एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहूंगा।
      ओकलाहमा बम धमाके के तुरंत बाद अमरीकी मीडिया ने यह प्रोपेगण्डा आरंभ कर दिया कि इस हमले के पीछे ‘‘मध्य पूर्व की साज़िश’’ है। कुछ समय पश्चात असली अपराधी पकड़ा गया जो सचमुच उस काण्ड का ज़िम्मेदार था, पता चला कि वह अमरीकी सशस्त्र सेना से सम्बन्ध रखने वाला सैनिक था।
      अब हम रूढ़िवाद (Fundamentalism) और आतंकवाद के आरोपों का विश्लेषण करेंगे।
      शब्द ‘रूढ़िवाद’ का अर्थ
      रूढ़िवादी अथवा फ़ंडामेंटलिस्ट ऐसा कोई भी व्यक्ति होता है जो किसी विशेष विचारधारा अथवा आचार संहिता से सम्बद्ध रहते हुए उसके अनुसार अमल करता है। जैसे किसी व्यक्ति के कुशल डाक्टर होने के लिए आवश्यक है कि वह मेडिकल नालेज् और चिकित्सा विज्ञान की मौलिक बातों की जानकारी रखता हो और उस पर पूरी तरह अमल भी करता हो। दूसरे शब्दों में उसे चिकित्सा विज्ञान या मेडिकल साइंस का ‘‘रूढ़िवादी’’ होना चाहिए। इसी प्रकार एक कुशल गणित शास्त्री होने के लिए उस व्यक्ति को गणित का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो और उसके नियमों के अनुसार ही वह अपना कार्य करता हो, अर्थात उसे गणित का ‘‘रूढ़िवादी’’ होना चाहिए। इसी प्रकार एक अच्छा वैज्ञानिक होने के लिये यह आवश्यक है कि उक्त व्यक्ति को विज्ञान की बुनियादी बातों का भली प्रकार ज्ञान हो और वह उस ज्ञान का पाबन्द हो, अर्थात अच्छा वैज्ञानिक होने के लिये उसे विज्ञान का ‘‘रूढ़िवादी’’ होना चाहिए।
      सभी रूढ़िवादी समान नहीं होते
      समस्त प्रकार के रूढ़िवादियों का विवरण संक्षेप में नहीं किया जा सकता। इससे अभिप्राय यह है कि समस्त रूढ़िवादियों अथवा फ़ण्डामेंटालिस्टों को समान रूप से अच्छा या बुरा नहीं कष्रार दिया जा सकता। वर्गीकरण के लिए आवश्यक है कि उस विचारधारा अथवा सक्रियता को देखा जाए जिस से उस रूढ़िवादी का सम्बन्ध है। जैसे एक रूढ़िवादी चोर अथवा डकैत समाज के लिए हानिकारक हैं अतः वह अप्रिय होगा, इसके विपरीत एक रूढ़िवादी डाक्टर या सर्जन अपने कार्य से समाज को लाभ पहुंचाता है अतः उसे सम्मान की दृष्टि से देखा जा सकता है।
      मुझे गर्व है कि मैं मुसलमान रूढ़िवादी हूँ

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    23. मैं फ़ण्डामेंटालिस्ट मुसलमान हूँ, (आप अपने शब्दों में रूढ़िवादी कह सकते हैं) अल्लाह की कृपा है कि मैं इस्लाम के मौलिक नियमों की जानकारी रखता हूँ, उनकी रक्षा करता हूँ और उन्हीं नियमों पर अमल करने का प्रयास करता हूँ। एक सच्चे मुसलमान को अपने फ़ण्डामेंटलिस्ट अथवा रूढ़िवादी कहे जाने पर कदापि लज्जित नहीं होना चाहिए। मुझे मुसलमान फ़ण्डामेंटलिस्ट अथवा रूढ़िवादी होने पर गर्व है। मैं जानता हूँ कि इस्लाम के मौलिक नियम ही समस्त मानवजाति और समस्त संसार के लिए लाभकारी हैं। इस्लाम की बुनियादी बातों में कोई एक बात भी ऐसी नहीं है जो कुल मिलाकर मानव समाज हेतु अहितकर हो। बहुत से लोग इस्लाम के बारे में ग़लतफ़हमी का शिकार हैं। वे समझते हैं कि इस्लाम की कई बातें अनुचित हैं तथा न्यायसंगत नहीं हैं। इसका कारण इस्लाम के सम्बन्ध में उनका अल्पज्ञान और ग़लत जानकारी है। यदि इस्लाम का खुले मन से विवेचनात्मक अध्ययन किया जाए तो इस सत्यता से पलायन कर पाना संभव ही नहीं रहता कि वास्तव में इस्लाम सामुहिक एवं व्यक्तिगत दोनों आधार पर मानवजाति हेतु पूर्णतया कल्याणकारी है।
      शब्द फ़ण्डामेंटालिस्ट का अनुवाद
      अंग्रेज़ी भाषा के इस शब्द का वास्तविक अर्थ है किसी विचारधारा के मौलिक नियमों के प्रति कटिबद्धता जिसे रूढ़ि अर्थात परंपरा और पुराने उसूलों पर चलने वाला रूढ़िवादी कहा जाता है। उर्दू में Fundamentalism अथवा रूढ़िवाद का अर्थ है ‘बुनियाद परस्त’। वेब्स्टर्ज़ डिक्शनरी के अनुसार दरअस्ल फ़ण्डामेंन्टलिज़्म अमरीका में प्रोटेस्टेंट ईसाईयों द्वारा छेड़ा गया एक आन्दोलन था जो बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में हुआ था। यह आन्दोलन ईसाई समाज में आधुनिकता के प्रचलन की प्रतिक्रिया पर
      आधारित था। ईसाई रूढ़िवादियों ने इस आन्दोलन में बाइबल को आधार बनाया था, ईसाई फ़ण्डामेंटलिज़्म के इस आन्दोलन में यह ज़ोर दिया गया था कि बाइबल के निर्देश और नियम केवल आस्था और नैतिकता के मुआमलों में ही सीमित नहीं वरन् ऐतिहासिक रिकार्ड के सन्दर्भ में भी बिल्कुल सही माने जाएं। इस बात पर विशेष बल दिया जाता था कि केवल और केवल बाईबल को ही ख़ुदा का सच्चा कलाम (ईश्वरीय सन्देश) माना जाए। इससे सिद्ध हुआ कि यह शब्द थ्नदकंउमदजंसपेउ सर्वप्रथम ईसाईयों के उस गिरोह ने इस्तेमाल किया जिसका विश्वास था कि बाइबल ही ख़ुदा का एकमात्र कलाम है जो किसी भी प्रकार की त्रुटियों और फेरबदल से सुरक्षित है।
      आॅक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी के अनुसार फ़ण्डामेंटलिज़्म से आश्य, किसी भी धर्म, विशेषरूप से इस्लाम की प्राचीन अथवा मौलिक शिक्षा और आस्था पर सख़्ती से पाबन्द रहना है।

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    24. यदि आज किसी व्यक्ति के सामने ‘‘फ़ण्डामेंटलिज़्म’’ या रूढ़िवादी का शब्द इस्तेमाल किया जाए तो वह तुरन्त किस ऐसे मुसलमान की कल्पना करता है जो आतंकवादी हो।
      प्रत्येक मुसलमान को ‘‘आतंकवादी’’ होना चाहिए
      प्रत्येक मुसलमान को आंतकवादी होना चाहिए। आतंकवादी कोई ऐसा व्यक्ति होता है जो भय और आतंक का कारण बनता है। जैसे कोई डाकू किसी पुलिस वाले को देखता है तो वह आतंकित हो जाता है। इसी प्रकार प्रत्येक मुसलमान को समाज विरोधी तत्वों के लिए आतंकवादी होना चाहिए। चाहे वह चोर, डाकू हो अथवा बदकार। जब भी ऐसा कोई बुरा व्यक्ति किसी मुसलमान को देखे तो उसे भयभीत और आतंकित हो जाना चाहिए। यह सच है कि शब्द ‘‘आतंकवादी’’ से आशय उस व्यक्ति से होता है जो जन साधारण में भय और आतंक फैलाने का कारण हो। लेकिन एक सच्चे मुसलमान के लिए आवश्यक है कि वह केवल विशेष लोगोें के लिए ही आतंकवादी हो। अर्थात उन लोगों के लिए जो समाज के बुरे तत्व हैं। जबकि वह सामान्य लोगों के लिए आतंक का कारण न बने। बल्कि यह कहना अधिक ठीक होगा कि एक सच्चे मुसलमान को साधारण और निर्दोष लोगों के लिए शांति और सुरक्षा का साधन होना चाहिए।
      ‘‘आतंकवादी’’ और ‘‘राष्ट्रवादी’’
      एक ही काम करने वालों के दो नाम
      ब्रितानी साम्राज्य से मुक्ति प्राप्त करने से पहले, भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले वे लोग जो आहिंसा पर सहमत नहीं थे, उन्हें अंग्रेज़ी साम्राज्य ने ‘‘आतंकवादी’’ क़रार दे दिया था। उन्हीं लोगों को आज भारत में स्वतंत्रता के बलिदानियों और राष्ट्र भक्तों के रूप में याद किया जाता है। यह देखने वाली बात है कि यह लोग वही हैं, काम भी एक ही है परन्तु उन पर दो विपरीत पक्षों की ओर से दो विभिन्न लेबिल लगा दिये गए हैं। एक पक्ष के लिए वे ‘‘आतंकवादी’’ थे, इसके विपरीत जिन लोगों का दृष्टिकोण यह था कि ब्रितानिया को भारत पर शासन करने का कोई अधिकार नहीं है, वह उन लोगों को ‘‘देशभक्त’’ और ‘‘बलिदानी नायकों’’ के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं।
      अतः यह आवश्यक है कि किसी व्यक्ति का फै़सला करने से पहले दोनों पक्षों की बात सुनी जाए। परिस्थतियों का आकलन किया जाए। आरोपी की नीयत को भी सामने रखा जाए और फिर उसी के अनुसार उस व्यक्ति के लिए कोई फ़ैसला किया जाए।
      इस्लाम का मतलब ‘‘शांति’’ है
      इस्लाम लफ़्ज़ ‘‘सलाम’’ से निकला है जिसका अर्थ है ‘‘शांति’’। यह शांति का धर्म है जिसके मौलिक सिद्धांत उसके अनुयायियों को यह शिक्षा देते हैं कि वे शांति स्थापित करें और विश्व में शांति फैलाएं। अतः हर मुसलमान को फ़ण्डामेंटालिस्ट होना चाहिए अर्थात शांति के धर्म की, इस्लाम की बुनियादी बातों पर अनिवार्य रूप से अमल करना चाहिए। उसे केवल उन लोगों के लिए ‘आतंकवादी’ होना चाहिए जो समाज में शांति और सुरक्षा के शत्रु हैं। ताकि समाज में सुख, न्याय और शांति स्थापित और स्थिर रखी जा सके।

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    25. मांसाहारी भोजन
      प्रश्नः पशुओं को मारना एक क्रूरतापूर्ण कृत्य है तो फिर मुसलमान मांसाहारी भोजन क्यों पसन्द करते हैं?
      उत्तरः ‘शाकाहार’ आज एक अंतराष्ट्रीय आन्दोलन बन चुका है बल्कि अब तो पशु-पक्षियों के अधिकार भी निर्धारित कर दिये गए हैं। नौबत यहां तक पहुंची है कि बहुत से लोग मांस अथवा अन्य प्रकार के सामिष भोजन को भी पशु-पक्षियों के अधिकारों का हनन मानने लगे हैं।
      इस्लाम केवल इंसानों पर ही नहीं बल्कि तमाम पशुओं और
      प्राणधारियों पर दया करने का आदेश देता है परन्तु इसके साथ-साथ इस्लाम यह भी कहता है कि अल्लाह तआला ने यह धरती और इस पर मौजूद सुन्दर पौधे और पशु पक्षी, समस्त वस्तुएं मानवजाति के फ़ायदे के लिए उत्पन्न कीं। यह मनुष्य की ज़िम्मेदारी है कि वह इन समस्त
      संसाधनों को अल्लाह की नेमत और अमानत समझकर, न्याय के साथ इनका उपयोग करे।
      अब हम इस तर्क के विभिन्न पहलुओं पर दृष्टि डालते हैं।
      मुसलमान पक्का ‘शाकाहारी’ बन सकता है
      एक मुसलमान पुरी तरह शाकाहारी रहकर भी एक अच्छा मुसलमान बन सकता है। मुसलमानों के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वह सदैव मांसाहारी भोजन ही करें।
      पवित्र क़ुरआन मुसलमानों को मांसाहार की अनुमति देता है
      पवित्र क़ुरआन में मुसलमानों को मांसाहारी भोजन की अनुमति दी गई है। इसका प्रमाण निम्नलिखित आयतों से स्पष्ट हैः
      ‘‘तुम्हारे लिए मवेशी (शाकाहारी पशु) प्रकार के समस्त जानवर हलाल किये गए हैं।’’ (पवित्र क़ुरआन , 5:1)
      ‘‘उसने पशु उत्पन्न किये जिनमें तुम्हारे लिए पोशाक भी है और ख़ूराक भी, और तरह तरह के दूसरे फ़ायदे भी।’’ (पवित्र क़ुरआन , 16:5)
      ‘‘और हकीकत यह है कि तुम्हारे लिये दुधारू पशुओं में भी एक शिक्षा है, उनके पेटों में जो कुछ है उसी में से एक चीज़ (अर्थात दुग्ध) हम तुम्हें पिलाते हैं और तुम्हारे लिए इनमे बहुत से दूसरे फ़ायदे भी हैं, इनको तुम खाते हो और इन पर और नौकाओं पर सवार भी किये जाते हो।’’ (पवित्र क़ुरआन , 23:21)
      मांस पौष्टिकता और प्रोटीन से भरपूर होता है
      मांसाहारी भोजन प्रोटीन प्राप्त करने का अच्छा साधन है। इसमें भरपूर प्रोटीन होते है। अर्थात आठों जीवन पोषक तत्व। (इम्यूनो एसिड) मौजूद होते हैं। यह आवश्यक तत्व मानव शरीर में नहीं बनते। अतः इनकी पूर्ती बाहरी आहार से करना आवश्यक होता है। इसके अतिरिक्त माँस में लोहा, विटामिन-बी, इत्यादि पोषक तत्व भी पाए जाते हैं।
      मानवदंत प्रत्येक प्रकार के भोजन के लिए उपयुक्त हैं
      यदि आप शाकाहारी पशुओं जैसे गाय, बकरी अथवा भेड़ आदि के दांतों को देखें तो आश्चर्यजनक समानता मिलेगी। इन सभी पशुओं के दाँत
      सीधे अथवा फ़्लैट हैं। अर्थात ऐसे दांत जो वनस्पति आहार चबाने के लिए उपयुक्त हैं। इसी प्रकार यदि आप शेर, तेंदुए अथवा चीते इत्यादि के दांतों का निरीक्षण करें तो आपको उन सभी में भी समानता मिलेगी। मांसाहारी जानवारों के दांत नोकीले होते हैं। जो माँस जैसा आहार चबाने के लिए उपयुक्त हैं। परनतु मनुष्य के दाँतों को ध्यानपुर्वक देखें तो पाएंगे कि उनमें से कुछ दांत सपाट या फ़्लैट हैं परन्तु कुछ नोकदार भी हैं। इसका मतलब है कि मनुष्य के दांत शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के आहार के लिए उपयुक्त हैं। अर्थात मनुष्य सर्वभक्षी प्राणी है जो वनास्पति और माँस प्रत्येक प्रकार का आहार कर सकता है।

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    26. प्रश्न किया जा सकता है कि यदि अल्लाह चाहता कि मनुष्य केवल शाकाहारी रहे तो उसमें हमें अतिरिक्त नोकदार दांत क्यों दिये? इसका तार्किक उत्तर यही है कि अल्लाह ने मनुष्य को सर्वभक्षी प्राणी के रूप में रचा है और वह महान विधाता हमसे अपेक्षा रखता है कि हम शाक सब्ज़ी के अतिरिक्त सामिष आहार (मांस, मछली, अण्डा इत्यादि) से भी अपनी शारीरिक आवश्यकताएं पूरी कर सकें।
      मनुष्य की पाचन व्यवस्था शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के भोजन को पचा सकती है
      शाकाहारी प्राणीयों की पाचन व्यवस्था केवल शाकाहारी भोजन को पचा सकती है। मांसाहारी जानवरों में केवल मांस को ही पचाने की क्षमता होती है। परन्तु मनुष्य हर प्रकार के खाद्य पद्रार्थों को पचा सकता है। यदि अल्लाह चाहता कि मनुष्य एक ही प्रकार के आहार पर जीवत रहे तो हमारे शरीर को दोनों प्रकार के भोजन के योग्य क्यों बनाता कि वह शक सब्ज़ी के साथ-साथ अन्य प्रकार के भोजन को भी पचा सके।
      पवित्र हिन्दू धर्मशास्त्रों में भी
      मांसाहारी भोजन की अनुमति है
      (क) बहुत से हिन्दू ऐसे भी हैं जो पूर्ण रूप से शाकाहारी हैं। उनका विचार है कि मास-मच्छी खाना उनके धर्म के विरुद्ध है परन्तु यह वास्तविकता है कि हिन्दुओं के प्राचीन धर्मग्रन्थों में मांसाहार पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है। उन्हीं ग्रंथों में ऐसे साधू संतों का उल्लेख है जो मांसाहारी थे।
      (ख) मनुस्मृति जो हिन्दू कानून व्यवस्था का संग्रह है, उसके पाँचवे
      अध्याय के 30वें श्लोक में लिखा हैः
      ‘‘खाने वाला जो उनका मांस खाए कि जो खाने के लिए है तो वह कुछ बुरा नहीं करता, चाहे नितदिन वह ऐसा क्यों न करे क्योंकि ईश्वर ने स्वयं ही बनाया है कुछ को ऐसा कि खाए जाएं और कुछ को ऐसा कि खाएं।’’
      (ग) मनुस्मृति के पाँचवें अध्याय के अगले श्लोक नॉ 31 में लिखा हैः
      ‘‘बलि का माँस खाना उचित है, यह एक रीति है जिसे देवताओं का आदेश जाना जाता है ’’
      (घ) मनुस्मृति के इसी पाँचवें अध्याय के श्लोक 39-40 में कहा गया हैः
      ‘‘ईश्वर ने स्वयं ही बनाया है बलि के पशुओं को बलि हेतु। तो बलि के लिये मारना कोई हत्या नहीं है।’’
      (ङ) महाभारत, अनुशासन पर्व के 58वें अध्याय के श्लोक 40 में धर्मराज युधिष्ठिर और भीष्म पितामहः के मध्य इस संवाद पर कि यदि कोई व्यक्ति अपने पुरखों के श्राद्ध में उनकी आत्मा की शांति के लिए कोई भोजन अर्पित करना चाहे तो वह क्या कर सकता है। वह वर्णन इस प्रकार हैः
      ‘‘युधिष्ठिर ने कहाµ ‘हे महाशक्तिमान, मुझे बताओ कि वह कौन सी वस्तु है जिसे यदि अपने पुरखों की आत्मा की शांति के लिए अर्पित करूं तो वह कभी समाप्त न हो, वह क्या वस्तु है जो (यदि दी जाए तो) सदैव बनी रहे? वह क्या है जो (यदि भेंट की जाए तो) अमर हो जाए?’’
      भीष्म ने कहाः ‘‘हे युधिष्ठिर! मेरी बात ध्यानपुर्वक सुनो, वह भेंटें क्या हैं जो कोई श्रद्धापूर्वक अर्पित की जाए जो श्रद्धा हेतु अचित हो और वह क्या फल है जो प्रत्येक के साथ जोड़े जाएं। तिल और चावल, जौ और उड़द और जल एवं कन्दमूल आदि उनकी भेंट किया जाए तो हे राजन! तुम्हारे पुरखों की आत्माएं प्रसन्न होंगी। भेड़ का (मांस) चार मास तक, ख़रगोश के (मांस) की भेंट चार मास तक प्रसन्न रखेगी, बकरी के (मांस) की भेंट छः मास तक और पक्षियों के (मांस) की भेंट सात मास तक प्रसन्न रखेगी। मृग के (मांस) की भेंट दस मास तक, भैंसे के (मांस) का दान ग्यारह मास तक प्रसन्न रखेगा। कहा जाता है कि गोमांस की भेंट एक वर्ष तक शेष रहती है। भेंट के गोमांस में इतना घृत मिलाया जाए जो तुम्हारे पुरखों की आत्माओं को स्वीकार्य हो, धरनासा (बड़ा बैल) का मांस तुम्हारे पुरखों की आत्माओं को बारह वर्षों तक प्रसन्न रखेगा। गेण्डे का मांस, जिसे पुरखों की आत्माओं को चन्द्रमा की उन रातों में भेंट किया जाए जब वे परलोक सिधारे थे तो वह उन्हें सदैव प्रसन्न रखेगा। और एक जड़ी बूटी कलासुका कही जाती है तथा कंचन पुष्प की पत्तियाँ और (लाल) बकरी का मांस भी, जो भेंट किया जाए, वह सदैव-सदैव के लिये है। यदि तुम चाहते हो कि तुम्हारें पितरों की आत्मा सदैव के लिए शांति प्राप्त करे तो तुम्हें चाहिए कि लाल बकरी के मांस से उनकी सेवा करो।’’ (भावार्थ)
      हिन्दू धर्म भी अन्य धर्मों से प्रभावित हुआ है
      यद्यपि हिन्दू धर्म शास्त्रों में मांसाहारी भोजन की अनुमति नहीं है परन्तु हिन्दुओं के अनुयायियों ने कालांतर में अन्य धर्मों का प्रभाव भी स्वीकार किया और शाकाहार को आत्मसात कर लिया। इन अन्य धर्मों में जैनमत इत्यादि शामिल हैं।

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    27. पौधे भी जीवनधारी हैं
      कुछ धर्मों ने शकाहार पर निर्भर रहना इसलिए भी अपनाया है क्योंकि आहार व्यवस्था में जीवित प्राणधारियों को मारना वार्जित है। यदि कोई व्यक्ति अन्य प्राणियों को मारे बिना जीवित रह सकता है तो वह पहला व्यक्ति होगा जो जीवन बिताने का यह मार्ग स्वीकार कर लेगा। अतीत में लोग यह समझते थे कि वृक्ष-पौधे निष्प्राण होते हैं परन्तु आज यह एक प्रामाणिक तथ्य है कि वृक्ष-पौधे भी जीवधारी होते हैं अतः उन लोगों की यह धारणा कि प्राणियों को मारकर खाना पाप है, आज के युग में
      निराधार सिद्ध होती है। अब चाहे वे शाकाहारी क्यों न बने रहें।
      पौधे भी पीड़ा का आभास कर सकते हैं
      पूर्ण शाकाहार में विश्वास रखने वालों की मान्यता है कि पौधे कष्ट और पीड़ा महसूस नहीं कर सकते अतः वनस्पति और पेड़-पौधों को मारना किसी प्राणी को मारने के अपेक्षा बहुत छोटा अपराध है। आज विज्ञान हमें बताता है कि पौधे भी कष्ट और पीड़ा का अनुभव करते हैं किन्तु उनके रुदन और चीत्कार को सुनना मनुष्य के वश में नहीं। इस का कारण यह है कि मनुष्य की श्रवण क्षमता केवल 20 हटर्ज़ से लेकर 20,000 हर्टज फ्ऱीक्वेंसी वाली स्वर लहरियाँ सुन सकती हैं। एक कुत्ता 40,000 हर्टज तक की लहरों को सुन सकता है। यही कारण है कि कुत्तों के लिए विशेष सीटी बनाई जाती है तो उसकी आवाज़ मनुष्यों को सुनाई नहीं देती परन्तु कुत्ते उसकी आवाज़ सुनकर दौड़े आते हैं, उस सीटी की आवाज़ 20,000 हर्टज से अधिक होती है।
      एक अमरीकी किसान ने पौधों पर अनुसंधान किया। उसने एक ऐसा यंत्र बनाया जो पौधे की चीख़ को परिवर्तित करके फ्ऱीक्वेंसी की
      परिधि में लाता था कि मनुष्य भी उसे सुन सकें। उसे जल्दी ही पता चल गया कि पौधा कब पानी के लिए रोता है। आधुनिकतम अनुसंधान से सिद्ध होता है कि पेड़-पौधे ख़ुशी और दुख तक को महसूस कर सकते हैं और वे रोते भी हैं।
      (अनुवादक के दायित्व को समक्ष रखते हुए यह उल्लेख हिन्दी में भी किया गया है। दरअस्ल पौधे के रोने चीख़ने की बात किसी अनुसंधान की चर्चा किसी अमरीकी अख़बार द्वारा गढ़ी गई है। क्योंकि गम्भीर विज्ञान साहित्य और अनुसंघान सामग्री से पता चला है कि प्रतिकूल परिस्थतियों अथवा पर्यावरण के दबाव की प्रतिक्रिया में पौधों से विशेष प्रकार का रसायनिक द्रव्य निकलता है। वनस्पति वैज्ञानिक इस प्रकार के रसायनिक द्रव्य को ‘‘पौधे का रुदन और चीत्कार बताते हैं) अनुवादक
      दो अनुभूतियों वाले प्राणियों की हत्या करना

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    28. निम्नस्तर का अपराध है
      एक बार एक शाकाहारी ने बहस के दौरान यह तर्क रखा कि पौधों में दो अथवा तीन अनुभूतियाँ होती हैं। जबकि जानवरों की पाँच अनुभूतियाँ होती है। अतः (कम अनुभव क्षमता के कारण) पौधों को मारना जीवित जानवरों को मारने की अपेक्षा छोटा अपराध है। इस जगह यह कहना पड़ता है कि मान लीजिए (ख़ुदा न करे) आपका कोई भाई ऐसा हो जो जन्मजात मूक और बधिर हो अर्थात उसमें अनुभव शक्ति कम हो, वह वयस्क हो जाए और कोई उसकी हत्या कर दे तब क्या आप जज से कहेंगे कि हत्यारा थोड़े दण्ड का अधिकारी है। आपके भाई के हत्यारे ने छोटा अपराध किया है और इसीलिए वह छोटी सज़ा का अधिकारी है? केवल इसलिए कि आपके भाई में जन्मजात दो अनुभूतियाँ कम थीं? इसके बजाए आप यही कहेंगे कि हत्यारे ने एक निर्दोष की हत्या की है अतः उसे कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाए।
      पवित्र क़ुरआन में फ़रमाया गया हैः
      ‘‘लोगो! धरती पर जो पवित्र और वैध चीज़ें हैं, उन्हें खाओ और शैतान के बताए हुए रास्तों पर न चलो, वह तुम्हारा खुला दुश्मन है।’’ (पवित्र क़ुरआन , 2ः168)
      पशुओं की अधिक संख्या
      यदि इस संसार का प्रत्येक व्यक्ति शाकाहारी होता तो परिणाम यह होता कि पशुओं की संख्या सीमा से अधिक हो जाती क्योंकि पशुओं में उत्पत्ति और जन्म की प्रक्रिया तेज़ होती है। अल्लाह ने जो समस्त ज्ञान और बुद्धि का स्वामी है इन जीवों की संख्या को उचित नियंत्रण में रखने का मार्ग सुझाया है। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं कि अल्लाह तआला ने हमें (सब्ज़ियों के साथ साथ) पशुओं का माँस खाने की अनुमति भी दी है।
      सभी लोग मांसाहारी नहीं,
      अतः माँस का मूल्य भी उचित है
      मुझे इस पर कोई आपत्ति नहीं कि कुछ लोग पूर्ण रूप से शाकाहारी हैं परन्तु उन्हें चाहिए कि मांसाहारियों को क्रूर और अत्याचारी कहकर उनकी निन्दा न करें। वास्तव में यदि भारत के सभी लोग मांसाहारी बन जाएं तो वर्तमान मांसाहारियों का भारी नुकष्सान होगा क्योकि ऐसी स्थिति में माँस का मूल्य कषबू से बाहर हो जाएगा।

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    29. पशुओं को ज़िब्हा करने का इस्लामी तरीकष निदर्यतापूर्ण है
      प्रश्नः मुसलमान पशुओं को ज़िब्ह (हलाल) करते समय निदर्यतापूर्ण ढंग क्यों अपनाते हैं? अर्थात उन्हें यातना देकर धीरे-धीरे मारने का तरीकष, इस पर बहुत लोग आपत्ति करते हैं?
      उत्तरः निम्नलिखित तथ्यों से सिद्ध होता है कि ज़बीहा का इस्लामी तरीकष न केवल मानवीयता पर आधारित है वरन् यह साइंटीफ़िक रूप से भी श्रेष्ठ है।
      जानवर हलाल कने का इस्लामी तरीकष
      अरबी भाषा का शब्द ‘‘ज़क्कैतुम’’ जो क्रिया के रूप में प्रयोग किया जाता है उससे ही शब्द ‘‘ज़क़ात’’ निकलता है, जिसका अर्थ है ‘‘पवित्र करना।’’
      जानवर को इस्लामी ढंग से ज़िब्हा करते समय निम्न शर्तों का पूर्ण
      ध्यान रखा जाना आवश्यक है।
      (क) जानवर को तेज़ धार वाली छुरी से ज़िब्हा किया जाए। ताकि जानवर को ज़िब्हा होते समय कम से कम कष्ट हो।
      (ख) ज़बीहा एक विशेष शब्द है जिस से आश्य है कि ग्रीवा और गर्दन की नाड़ियाँ काटी जाएं। इस प्रकार ज़िब्हा करने से जानवर रीढ़ की हड्डी काटेे बिना मर जाता है।
      (ग) ख़ून को बहा दिया जाए।
      जानवर के सिर को धड़ से अलग करने से पूर्व आवश्यक है कि उसका सारा ख़ून पूरी तरह बहा दिया गया हो। इस प्रकार सारा ख़ून निकाल देने का उद्देश्य यह है कि यदि ख़ून शरीर में रह गया तो यह कीटाणुओं के पनपने का माध्यम बनेगा। रीढ़ की हड्डी अभी बिल्कुल नहीं काटी जानी चाहिए क्योंकि उसमें वह धमनियाँ होती हैं जो दिल तक जाती हैं। इस समय यदि वह धमनियाँ कट गईं तो दिल की गति रुक सकती है और इसके कारण ख़ून का बहाव रुक जाएगा। जिससे ख़ून नाड़ियों में जमा रह सकता है।
      कीटाणुओं और बैक्टीरिया के लिये
      ख़ून मुख्य माध्यम है
      कीटाणुओं, बैक्टीरिया और विषाक्त तत्वों की उत्पति के लिये ख़ून एक सशक्त माध्यम है। अतः इस्लामी तरीके से ज़िब्हा करने से सारा ख़ून निकाल देना स्वास्थ्य के नियमों के अनुसार है क्योंकि उस ख़ून में कीटाणु और बैक्टीरिया तथा विषाक्त तत्व अधिकतम होते हैं।
      मांस अधिक समय तक स्वच्छ और ताज़ा रहता है
      इस्लामी तरीकष्े से हलाल किये गए जानवर का मांस अधिक समय तक स्वच्छ और ताज़ा तथा खाने योग्य रहता है क्योंकि दूसरे तरीकषें से काटे गए जानवर के मांस की अपेक्षा उसमें ख़ून की मात्रा बहुत कम होती है।
      जानवर को कष्ट नहीं होता
      ग्रीवा की नाड़ियाँ तेज़ी से काटने के कारण दिमाग़ को जाने वाली
      धमनियों तक ख़ून का प्रवाह रुक जाता है, जो पीड़ा का आभास उत्पन्न करती हैं। अतः जानवर को पीड़ा का आभास नहीं होता। याद रखिए कि हलाल किये जाते समय मरता हुआ कोई जानवर झटके नहीं लेता बल्कि उसमें तड़पने, फड़कने और थरथराने की स्थिति इसलिए होती है कि उसके पुट्ठों में ख़ून की कमी हो चुकी होती है और उनमें तनाव बहुत अधिक बढ़ता या घटता है।

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    30. मांसाहारी भोजन मुसलमानों को हिंसक बनाता है
      प्रश्नः विज्ञान हमें बताता है कि मनुष्य जो कुछ खाता है उसका प्रभाव उसकी प्रवृत्ति पर अवश्य पड़ता है, तो फिर इस्लाम अपने अनुयायियों को सामिष आहार की अनुमति क्यों देता है? यद्यपि पशुओं का मांस खाने के कारण मनुष्य हिंसक और क्रूर बन सकता है?
      उत्तरः केवल वनस्पति खाने वाले पशुओं को खाने की अनुमति है। मैं इस बात से सहमत हूँ कि मनुष्य जो कुछ खाता है उसका प्रभाव उसकी प्रवृत्ति पर अवश्य पड़ता है। यही कारण है कि इस्लाम में मांसाहारी पशुओं, जैसे शेर, चीता, तेंदुआ आदि का मांस खाना वार्जित है क्योंकि ये दानव हिंसक भी हैं। सम्भव है इन दरिन्दों का मांस हमें भी दानव बना देता। यही कारण है कि इस्लाम में केवल वनस्पति का आहार करने वाले पशुओं का मांस खाने की अनुमति दी गई हैं। जैसे गाय, भेड़, बकरी इत्यादि। यह वे पशु हैं जो शांति प्रिय और आज्ञाकारी प्रवृत्ति के हैं। मुसलमान शांति प्रिय और आज्ञाकारी पशुओं का मांस ही खाते हैं। अतः वे भी शांति प्रिय और अहिंसक होते हैं।
      पवित्र क़ुरआन का फ़रमान है कि रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) बुरी चीज़ों से रोकते हैं।
      पवित्र क़ुरआन में फ़रमान हैः
      ‘‘वह उन्हें नेकी का हुक्म देता है, बदी से रोकता है, उनके लिए पाक चीज़ें हलाल और नापाक चीज़ें हराम करता है, उन पर से वह बोझ उतारता है जो उन पर लदे हुए थे। वह
      बंधन खोलता है जिनमें वे जकड़े हुए थे।’’ (पवित्र क़ुरआन , 7ः157)
      एक अन्य आयत में कहा गया हैः
      ‘‘जो कुछ रसूल तुम्हें दे तो वह ले लो और जिस चीज़ें से तुम्हें रोक दे उसमें रुक जाओ, अल्लाह से डरो, अल्लाह सख़्त अज़ाब (कठोरतम दण्ड) देने वाला है।’’ (पवित्र क़ुरआन , 7ः159)
      मुसलमानों के लिए महान पैग़म्बर का यह निर्देश ही उन्हे कषयल करने के लिए काफ़ी है कि अल्लाह तआला नहीं चाहता कि वह कुछ जानवरों का मांस खाएं जबकि कुछ का खा लिया करें।
      इस्लाम की सम्पूर्ण शिक्षा पवित्र क़ुरआन और उसके बाद हदीस पर आधारित है। हदीस का आश्य है मुसलमानों के महान पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन जो ‘सही बुख़ारी’, ‘मुस्लिम’, सुनन इब्ने माजह’, इत्यादि पुस्तकों में संग्रहीत हैं। और मुसलमानों का उन पर पूर्ण विश्वास है। प्रत्येक हदीस को उन महापुरूषों के संदर्भ से बयान कया गया है जिन्होंने स्वंय महान पैग़म्बर से वह बातें सुनी थीं।
      पवित्र हदीसों में मांसाहारी जानवर
      का मांस खाने से रोका गया है
      सही बुख़ारी, मुस्लिम शरीफ़ में मौजूद, अनेक प्रमाणिक हदीसों के अनुसार मांसाहारी पशु का मांस खाना वर्जित है। एक हदीस के अनुसार, जिसमें हज़रत इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हु) के संदर्भ से बताया गया है कि हमारे पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने (हदीस नॉ 4752), और सुनन इब्ने माजह के तेरहवें अध्याय (हदीस नॉ 3232 से 3234 तक) के अनुसार निम्नलिखित जानवरों का मांस खाने से मना किया हैः
      1. वह पशु जिनके दांत नोकीले हों, अर्थात मांसाहारी जानवर, ये जानवर बिल्ली के परिवार से सम्बन्ध रखते हैं। जिसमें शेर, बबर शेर, चीता, बिल्लियाँ, कुत्ते, भेड़िये, गीदड़, लोमड़ी, लकड़बग्घे इत्यादि शामिल हैं।
      2. कुतर कर खाने वाले जानवर जैसे छोटे चूहे, बड़े चूहे, पंजों वाले ख़रगोश इत्यादि।
      3. रेंगने वाले कुछ जानवर जैसे साँप और मगरमच्छ इत्यादि।
      4. शिकारी पक्षी, जिनके पंजे लम्बे और नोकदार नाख़ून हों (जैसे आम तौर से शिकारी पक्षियों के होते हैं) इनमें गरूड़, गिद्ध, कौए और उल्लू इत्यादि शामिल हैं।
      ऐसा कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं है जो किसी सन्देह और संशय से ऊपर उठकर यह सिद्ध कर सके कि मांसाहारी अपने आहार के कारण हिसंक भी बन सकता है।

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    31. मुसलमान काबा की पूजा करते हैं।
      प्रश्नः यद्यपि इस्लाम में मूर्ति पूजा वर्जित है परन्तु मुसलमान काबे की पूजा क्यों करते हैं? और अपनी नमाज़ों के दौरान उसके सामने क्यों झुकते हैं?
      उत्तरः काबा हमारे लिये किष्बला (श्रद्धेय स्थान, दिशा) है, अर्थात वह दिशा जिसकी ओर मुँह करके मुसलमान नमाज़ पढ़ते हैं। यह बात ध्यान देने योग्य है कि, मुसलमान नमाज़ के समय काबे की पूजा नहीं करते, मुसलमान केवल अल्लाह की इबादत करते हैं और उसी के आगे झुकते हैं। जैसा कि पवित्र क़ुरआन की सूरह अल-बकष्रः में अल्लाह का फ़रमान हैः
      ‘‘हे नबी! यह तुम्हारे मुँह का बार-बार आसमान की तरफ़ उठना हम देख रहे है, लो हम उसी किष्बले की तरफ़ तुम्हें फेर देते हैं जिसे तुम पसन्द करते हो। मस्जिदुल हराम (काबा) की तरफ़ रुख़ फेर दो, अब तुम जहाँ कहीं हो उसी तरफ़ मुँह करके नमाज़ पढ़ा करो।’’ (पवित्र क़ुरआन , 2ः144)
      इस्लाम एकता और सौहार्द के
      विकास में विश्वास रखता है
      जैसे, यदि मुसलमान नमाज़ पढ़ना चाहें तो बहुत सम्भव है कि कुछ लोग उत्तर की दिशा की ओर मुँह करना चाहें, कुछ दक्षिण की ओर, तो कुछ पूर्व अथवा पश्चिम की ओर, अतः एक सच्चे ईश्वर (अल्लाह) की उपासना के अवसर पर मुसलमानों में एकता और सर्वसम्मति के लिए उन्हें यह आदेश दिया गया कि वह विश्व मे जहाँ कहीं भी हों, जब अल्लाह की उपासना (नमाज़) करें तो एक ही दिशा में रुख़ करना होगा। यदि मुसलमान काबा की पूर्व दिशा की ओर रहते हैं तो पश्चिम की ओर रुख़ करना होगा। अर्थात जिस देश से काबा जिस दिशा में हो उस देश से मुसलमान काबा की ओर ही मुँह करके नमाज़ अदा करें।
      पवित्र काबा धरती के नक़्शे का केंद्र है
      विश्व का पहला नक़्शा मुसलमानों ने ही तैयार किया था। मुसलमानों द्वारा बनाए गए नक़शे में दक्षिण ऊपर की ओर और उत्तर नीचे होता था। काबा उसके केंद्र में था। बाद में भूगोल शास्त्रियों ने जब नक़शे बनाए तो उसमें परिवर्तन करके उत्तर को ऊपर तथा दक्षिण को नीचे कर दिया। परन्तु अलहम्दो लिल्लाह (समस्त प्रशंसा केवल अल्लाह के लिए है) तब भी काबा विश्व के केंद्र में ही रहा।
      काबा शरीफ़ का तवाफ़ (परिक्रमा) अल्लाह के एकेश्वरत्व का प्रदर्शन है
      जब मुसलमान मक्का की मस्जिदे हराम में जाते हैं, वे काबा का तवाफ़ करते हैं अथवा उसके गिर्द चक्कर लगाकर परिक्रमा करते हैं तो उनका यह कृत्य एक मात्र अल्लह पर विश्वास और उसी की उपासना का प्रतीक है क्योंकि जिस प्रकार किसी वृत्त (दायरे) का केंद्र बिन्दु एक ही होता है उसी प्रकार अल्लाह भी एकमात्र है जो उपासना के योग्य है।
      हज़रत उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) की हदीस सही बुख़ारी, खण्ड 2, किताब हज्ज, अध्याय 56 में वर्णित हदीस नॉ 675 के अनुसार हज़रत उमर (रज़ियल्लाह अन्हु) ने काबा में रखे हुए काले रंग के पत्थर (पवित्र हज्र-ए- अस्वद) को सम्बोधित करते हुए फ़रमायाः
      ‘‘मैं जानता हूँ कि तू एक पत्थर है जो किसी को हानि अथवा लाभ नहीं पहुंचा सकता। यदि मैंने हुजूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को चूमते हुए नहीं देखा होता तो मैं भी तुझे न छूता (और न ही चूमता)।’’
      (इस हदीस से यह पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है कि
      विधर्मियों की धारणा और उनके द्वारा फैलाई गई यह भ्रांति पूर्णतया निराधार है कि मुसलमान काबा अथवा हज्र-ए-अस्वद की पूजा करते हैं। किसी वस्तु को आदर और सम्मान की दृष्टि से देखना उसकी पूजा करना नहीं हो सकता।) (अनुवादक)
      लोगों ने काबे की छत पर खड़े होकर अज़ान दी
      महान पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के समय में लोग काबे के ऊपर चढ़कर अज़ान भी दिया करते थे, अब ज़रा उनसे पूछिए जो मुसलमानों पर काबे की पूजा का आरोप लगाते हैं कि क्या कोई मूर्ति पूजक कभी अपने देवता की पूजी जाने वाली मूर्ति के ऊपर खड़ा होता है?

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    32. मक्का मे ग़ैर मुस्लिमों को प्रवेश की अनुमति नहीं
      प्रश्नः मक्का और मदीना के पवित्र नगरों में ग़ैर मुस्लिमों को प्रवेश की अनुमति क्यों नहीं है?
      उत्तरः यह सच है कि कानूनी तौर पर मक्का और मदीना शरीफ़ के पवित्र नगरों में ग़ैर मुस्लिमों को प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। निम्नलिखित तथ्यों द्वारा प्रतिबन्ध के पीछे कारणों और औचित्य का स्पष्टीकरण किया गया है।
      समस्त नागरिकों को कन्टोन्मेंट एरिया (सैनिक छावनी) में जाने की अनुमति नहीं होती
      मैं भारत का नागरिक हूँ। परन्तु फिर भी मुझे (अपने ही देश के) कुछ वर्जित क्षेत्रों में जाने की अनुमति नहीं है। प्रत्येक देश में कुछ न कुछ ऐसे क्षेत्र अवश्य होते हैं जहाँ सामान्य जनता को जाने की इजाज़त नहीं होती। जैसे सैनिक छावनी या कन्टोन्मेंट एरिया में केवल वही लोग जा सकते हैं जो सेना अथवा प्रतिरक्षा विभाग से सम्बंधित हों। इसी प्रकार इस्लाम भी समस्त मानवजगत और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के लिए एकमात्र सत्यधर्म है। इस्लाम के दो नगर मक्का और मदीना किसी सैनिक छावनी के समान महत्वपूर्ण और पवित्र हैं, इन नगरों में प्रवेश करने का उन्हें ही अधिकार है जो इस्लाम में विश्वास रखते हों और उसकी प्रतिरक्षा में शरीक हों। अर्थात केवल मुसलमान ही इन नगरों में जा सकते हैं।
      सैनिक संस्थानों और सेना की छावनियों में प्रवेश पर प्रतिबन्ध के विरुद्ध एक सामान्य नागरिक का विरोध करना ग़ैर कषनूनी होता है। अतः ग़ैर मुस्लिमों के लिये भी यह उचित नहीं है कि वे मक्का और मदीना में ग़ैर मुस्लिमों के प्रवेश पर पाबन्दी का विरोध करें।
      मक्का और मदीना में प्रवेश का वीसा
      1. जब कोई व्यक्ति किसी अन्य देश की यात्रा करता है तो उसे सर्वप्रथम उस देश में प्रवेश करने का अनुमति पत्र ;टपेंद्ध प्राप्त करना पड़ता है। प्रत्येक देश के अपने कषयदे कानून होते हैं जो उनकी ज़रूरत और व्यवस्था के अनुसार होते हैं तथा उन्हीं के अनुसार वीसा जारी किया जाता है। जब तक उस देश के कानून की सभी शर्तों को पूरा न कर दिया जाए उस देश के राजनयिक कर्मचारी वीसा जारी नहीं करते।
      2. वीसा जारी करने के मामले में अमरीका अत्यंत कठोर देश है, विशेष रूप से तीसरी दुनिया के नागरिकों को वीसा देने के बारे में, अमरीकी आवर्जन कानून की कड़ी शर्तें हैं जिन्हें अमरीका जाने के इच्छुक को पूरा करना होता है।
      3. जब मैं सिंगापुर गया था तो वहाँ के इमैग्रेशन फ़ार्म पर लिखा था ‘‘नशे की वस्तुएँ स्मगल करने वाले को मृत्युदण्ड दिया जायेगा।’’ यदि मैं सिंगापुर जाना चाहूँ तो मुझे वहाँ के कानून का पालन करना होगा। मैं यह नहीं कह सकता कि उनके देश में मृत्युदण्ड का निर्दयतापूर्ण और क्रूर प्रावधान क्यों है। मुझे तो केवल उसी अवस्था में वहाँ जाने की अनुमति मिलेगी जब उस देश के कानून की सभी शर्तों के पालन का इकष्रार करूंगा।
      4. मक्का और मदीना का वीसा अथवा वहाँ प्रवेश करने की बुनियादी शर्त यह है कि मुख से ‘‘ला इलाहा इल्लल्लाहु, मुहम्मदुर्रसूलल्लाहि’’ (कोई ईश्वर नहीं, सिवाय अल्लाह के (और) मुहम्मद (सल्लॉ) अल्लाह के सच्चे सन्देष्टा हैं), कहकर मन से अल्लाह के एकमात्र होने का इकरार किया जाए और हज़रत मुहम्मद (सल्लॉ) को अल्लाह का सच्चा रसूल स्वीकार किया जाए।

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    33. सुअर का मांस हराम है
      प्रश्नः इस्लाम में सुअर का मांस खाना क्यों वर्जित है?
      उत्तरः इस्लाम में सुअर का माँस खाना वर्जित होने की बात से सभी परिचित हैं। निम्नलिखित तथ्यों द्वारा इस प्रतिबन्ध की व्याख्या की गई है।
      पवित्र क़ुरआन में कम से कम चार स्थानों पर सुअर का मांस खाने की मनाही की गई है। पवित्र क़ुरआन की सूरह 2, आयत 173, सूरह 5, आयत 3, सूरह 6, आयत 145, सूरह 16, आयत 115 में इस विषय पर स्पष्ट आदेश दिये गए हैंः
      ‘‘तुम पर हराम किया गया मुरदार (ज़िब्हा किये बिना मरे हुए जानवर) का मांस, सुअर का मांस और वह जानवर जो अल्लाह के नाम के अतिरिक्त किसी और नाम पर ज़िब्हा किया गया हो, जो गला घुटने से, चोट खाकर, ऊँचाई से गिरकर या टक्कर खाकर मरा हो, या जिसे किसी दरिन्दे नें फाड़ा हो सिवाय उसके जिसे तुम ने ज़िन्दा पाकर ज़िब्हा कर लिया और वह जो किसी आस्ताने (पवित्र स्थान, इस्लाम के मूल्यों के आधार पर) पर ज़िब्हा किया गया हो।’’ (पवित्र क़ुरआन , 5ः3)
      इस संदर्भ में पवित्र क़ुरआन की सभी आयतें मुसलमानों को संतुष्ट करने हेतु पर्याप्त है कि सुअर का मांस क्यों हराम है।
      बाइबल ने भी सुअर का मांस खाने की मनाही की है
      संभवतः ईसाई लोग अपने धर्मग्रंथ में तो विश्वास रखते ही होंगे। बाइबल में सुअर का मांस खाने की मनाही इस प्रकार की गई हैः
      ‘‘और सुअर को, क्योंकि उसके पाँव अलग और चिरे हुए हैं। पर वह जुगाली (पागुर) नहीं करता, वह भी तुम्हारे लिये अपवित्र है, तुम उनका मांस न खाना, उनकी लााशों को न छूना, वह तुम्हारे लिए अपवित्र हैं।’’ (ओल्ड टेस्टामेंट, अध्याय 11, 7 से 8)
      कुछ ऐसे ही शब्दों के साथ ओल्ड टेस्टामेंट की पाँचवी पुस्तक में सुअर खाने से मना किया गया हैः
      ‘‘और सुअर तुम्हारे लिए इस कारण से अपवित्र है कि इसके पाँव तो चिरे हुए हैं परन्तु वह जुगाली नहीं करता, तुम न तो उनका माँस खाना और न उनकी लाशों को हाथ लगाना।’’ (ओल्ड टेस्टामेंट, अध्याय 14ः8)
      ऐसी ही मनाही बाइबल (ओल्ड टेस्टामेंट, अध्याय 65, वाक्य 2 ता 5) में भी मौजूद है।
      सुअर के मांसाहार से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं
      अब आईए! ग़ैर मुस्लिमों और ईश्वर को न मानने वालों की ओर, उन्हें तो बौद्धिक तर्क, दर्शन और विज्ञान के द्वारा ही कषयल किया जा सकता है। सुअर का मांस खाने से कम से कम 70 विभिन्न रोग लग सकते हैं। एक व्यक्ति के उदर में कई प्रकार के कीटाणु हो सकते हैं, जैसे राउण्ड वर्म, पिन वर्म और हुक वर्म इत्यादि। उनमें सबसे अधिक घातक टाईनिया सोलियम (Taenia Soliam) कहलाता है। सामान्य रूप से इसे टेपवर्म भी कहा जाता है। यह बहुत लम्बा होता है और आंत में रहता है। इसके अण्डे (OVA)रक्त प्रवाह में मिलकर शरीर के किसी भी भाग में पहुंच सकते हैं। यदि यह मस्तिष्क तक जा पहुंचे तो स्मरण शक्ति को बहुत हानि पहुंचा सकते हैं। यदि दिल में प्रवेश कर जाए तो दिल का दौरा पड़ सकता है। आँख में पहुंच जाए तो अंधा कर सकते हैं। जिगर में घुसकर पूरे जिगर को नष्ट कर सकते हैं। इसी प्रकार शरीर के किसी भाग को हानि पहुंचा सकते हैं। पेट में पाया जाने वाला एक अन्य रोगाणु Trichura Lichurasiहै।
      यह एक सामान्य भ्रांति है कि यदि सुअर के मांस को भलीभांति पकाया जाए तो इन रोगाणुओं के अण्डे नष्ट हो जाएंगे। अमरीका में किये गए अनुसंधान के अनुसार ट्राईक्योरा से प्रभावित 24 व्यक्तियों में 20 ऐसे थे जिन्होंने सुअर का माँस अच्छी तरह पकाकर खाया था। इससे पता चला कि सुअर का मांस अच्छी तरह पकाने पर सामान्य तापमान पर भी उसमें मौजूद रोगाणु नहीं मरते जो भोजन पकाने के लिए पर्याप्त माना जाता है।

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    34. सुअर के मांस में चर्बी बढ़ाने वाला तत्व होता है
      सुअर के मांस में ऐसे तत्व बहुत कम होते हैं जो मांसपेशियों को विकसित करने के काम आते हों। इसके विपरीत यह चर्बी से भरपूर होता है। यह वसा रक्त नलिकाओं में एकत्र होती रहती है और अंततः
      अत्याधिक दबाव (हाइपर टेंशन) ओर हृदयघात का कारण बन सकती है। अतः इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि 50 प्रतिशत से अधिक अमरीकियों को हाइपर टेंशन का रोग लगा हुआ है।
      सुअर संसार के समस्त जानवरों से अधिक घिनौना जीव
      सुअर संसार में सबसे अधिक घिनौना जानवर है। यह गंदगी, मैला इत्यादि खाकर गुज़ारा करता है। मेरी जानकारी के अनुसार यह बेहतरीन सफ़ाई कर्मचारी है जिसे ईश्वर ने पैदा किया है। वह ग्रामीण क्षेत्र जहाँ शौचालय आदि नहीं होते और जहाँ लोेग खुले स्थानों पर मलमूत्र त्याग करते हैं, वहाँ की अधिकांश गन्दगी यह सुअर ही साफ़ करते हैं।
      कुछ लोग कह सकते हैं कि आस्ट्रेलिया जैसे उन्नत देशों में सुअर पालन स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण में किया जाता है। परन्तु इतनी सावधानी के बावजूद कि जहाँ सुअरों को बाड़ों में अन्य पशुओं से अलग रखा जाता है, कितना ही प्रयास कर लिया जाए कि उन्हें स्वच्छ रखा जा सके किन्तु यह सुअर अपनी प्राकृतिक प्रवत्ति में ही इतना गन्दा है कि उसे अपने साथ के जानवरों का मैला खाने ही में आनन्द आता है।
      सुअर सबसे निर्लज्ज जानवर
      इस धरती पर सबसे ज़्यादा बेशर्म जानवर केवल सुअर है। सुअर एकमात्र जानवर है जो अपनी मादिन (Mate)के साथ सम्भोग में अन्य सुअरों को आमंत्रिक करता है। अमरीका में बहुत से लोग सुअर खाते हैं अतः वहाँ इस प्रकार का प्रचलन आम है कि नाच-रंग की अधिकतर पार्टियों के पश्चात लोग अपनी पत्नियाँ बदल लेते हैं, अर्थात वे कहते हैं‘ ‘‘मित्र! तुम मेरी पत्नी और मैं तुम्हारी पत्नी के साथ आनन्द लूंगा…।’’
      यदि कोई सुअर का मांस खाएगा तो सुअर के समान ही व्यवहार करेगा, यह सर्वमान्य तथ्य है।

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    35. शराब की मनाही
      प्रश्नः इस्लाम में शराब पीने की मनाही क्यों है?
      उत्तरः मानव संस्कृति की स्मृति और इतिहास आरंभ होने से पहले से शराब मानव समाज के लिए अभिशाप बनी हुई है। यह असंख्य लोगों के प्राण ले चुकी है। यह क्रम अभी चलता जा रहा है। इसी के कारण विश्व के करोड़ों लोगों का जीवन नष्ट हो रहा है। समाज की अनेकों समस्याओं की बुनियादी वजह केवल शराब है। अपराधों में वृद्धि और विश्वभर में करोड़ों बरबाद घराने शराब की विनाशलीला का ही मौन उदाहरण है।
      पवित्र क़ुरआन में शराब की मनाही
      निम्नलिखित पवित्र आयत में क़ुरआन हमें शराब से रोकता है।
      ‘‘हे लोगो! जो ईमान लाए हो! यह शराब, जुआ और यह आस्ताने और पांसे, यह सब गन्दे और शैतानी काम हैं। इनसे परहेज़ करो, उम्मीद है कि तुम्हें भलाई प्राप्त होगी।’’ (सूरह 5, आयत 90)
      बाईबल में मदिरा सेवन की मनाही
      बाईबल की निम्नलिखित आयतों में शराब पीने की बुराई बयान की गई हैः
      ‘‘शराब हास्यास्पद और हंगामा करने वाली है, जो कोई इनसे धोखा खाता है (वह) बुद्धिमान नहीं।’’ (दृष्टांत अध्याय 20, आयत 1)
      ‘‘और शराब के नशे में मतवाले न बनो।’’ (अफ़सियों, अध्याय 5, आयत 18)
      मानव मस्तिष्क का एक भाग ‘‘निरोधी केंद्र’’ (Inhibitory Centre) कहलाता है। इसका काम है मनुष्य को ऐसी क्रियाओं से रोकना जिन्हें वह स्वयं ग़लत समझता हो। जैसे सामान्य व्यक्ति अपने बड़ों के सामने अशलील भाषा का प्रयोग नहीं करता। इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति को शौच की आवश्यकता होती है वह सबके सामने नहीं करता और शौचालय की ओर रुख़ करता है।
      जब कोई शराब पीता है तो उसका निरोधी केंद्र स्वतः ही काम करना बन्द कर देता है। यही कारण है कि शराब के नशे में धुत होकर वह व्यक्ति ऐसी क्रियाएं करता है जो सामान्यतः उसकी वास्तविक प्रवृति से मेल नहीं खातीं। जेसे नशे में चूर व्यक्ति अशलील भाषा बोलने में कोई शर्म महसूस नहीं करता। अपनी ग़लती भी नहीं मानता, चाहे वह अपने माता-पिता से ही क्यों न बात कर रहा हो। शराबी अपने कपड़ों में ही मूत्र त्याग कर लेते हैं, वे न तो ठीक से बात कर पाते हैं और न ही ठीक से चल पाते हैं, यहाँ तक कि वे अभद्र हरकतें भी कर गुज़रते हैं।
      व्यभिचार, बलात्कार, वासनावृत्ति की घटनाएं शराबियों में अधिक होती हैं। अमरीकी प्रतिरक्षा मंत्रालय के ‘‘राष्ट्रीय अपराध प्रभावितों हेतु सर्वेक्षण एंव न्याय संस्थान’’ के अनुसार 1996 के दौरान अमरीका में बलात्कार की प्रतिदिन घटनाएं 20,713 थीं। यह तथ्य भी सामने आया कि अधिकांश बलात्कारियों ने यह कुकृत्य नशे की अवस्था में किया। छेड़छाड़ के मामलों का कारण भी अधिकतर नशा ही है।
      आंकड़ों के अनुसार 8 प्रतिशत अमरीकी इनसेस्ट ;प्दबमेजद्ध से ग्रसित हैं। इसका मतलाब यह हुआ कि प्रत्येक 12 अथवा 13 में से एक अमरीकी इस रोग से प्रभावित है। इन्सेस्ट की अधिकांश घटनाएं मदिरा सेवन के कारण घटित होती हैं जिनमें एक या दो लोग लिप्त हो जाते हैं।
      (अंग्रेज़ी शब्द प्दबमेज का अनुवाद किसी शब्दकोक्ष में नहीं मिलता। परन्तु इसकी व्याख्या से इस कृत्य के घिनौनेपन का अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसे निकट रिश्ते जिनके बीच धर्म, समाज और कानून के अनुसार विवाह वार्जित है, उनसे शरीरिक सम्बन्ध को प्दबमेज कहा जाता है।’’) अनुवादक
      इसी प्रकार एड्स के विनाशकारी रोग के फैलाव के कारणों में एक प्रमुख कारण मदिरा सेवन ही है।
      प्रत्येक शराब पीने वाला ‘‘सामाजिक’’ रूप से ही पीना आरंभ करता है

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    36. बहुत से लोग ऐसे हैं जो मदिरापान के पक्ष में तर्क देते हुए स्वयं को ‘‘सामाजिक पीने वाला’’ ;ैवबपंस क्तपदामतद्ध बताते हैं और यह दावा करते हैं कि वे एक या दो पैग ही लिया करते हैं और उन्हें स्वयं पर पूर्ण नियंत्रण रहता है और वे कभी पीकर उन्मत्त नहीं होते। खोज से पता चला है कि अधिकांश घोर पियक्कड़ों ने आरंभ इसी ‘‘सामाजिक’’ रूप से किया था। वास्तव में कोई पियक्कड़ ऐसा नहीं है जिसने शराब पीने का आंरभ इस इरादे से किया हो कि आगे चलकर वह इस लत में फंस जाएगा। इसी प्रकार कोई ‘‘सामाजिक पीने वाला’’ यह दावा नहीं कर सकता कि वह वर्षों से पीता आ रहा है और यह कि उसे स्वयं पर इतना अधिक नियंत्रण है कि वह पीकर एक बार भी मदहोश नहीं हुआ।
      यदि कोई व्यक्ति नशे में एकबार कोई शर्मनाक हरकत कर बैठे तो वह सारी ज़िन्दगी उस के साथ रहेगी
      माल लीजिए एक ‘‘सामाजिक पियक्कड़’’ अपने जीवन में केवल एक बार (नशे की स्थिति में) अपना नियंत्रण खो देता है और उस स्थिति में प्दबमेज का अपराध कर बैठता है तो पश्ताचाप जीवन पर्यन्त उसका साथ नहीं छोड़ता और वह अपराध बोध की भावना से ग्रस्त रहेगा। अर्थात अपराधी और उसका शिकार दोनों ही का जीवन इस ग्लानि से नष्टप्राय होकर रह जाएगा।
      पवित्र हदीसों में शराब की मनाही
      हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमायाः
      (क) ‘‘शराब तमाम बुराईयों की माँ है और तमाम बुराईयों में सबसे ज़्यादा शर्मनाक है।’’ (सुनन इब्ने माजह, जिल्द 3, किताबुल ख़म्र, अध्याय 30, हदीस 3371)
      (ख) ‘‘प्रत्येक वस्तु जिसकी अधिक मात्रा नशा करती हो, उसकी थोड़ी मात्रा भी हराम है।’’ (सुनन इब्ने माजह, किताबुल ख़म्र, हदीस 3392)
      इस हदीस से अभिप्राय यह सामने आता है कि एक घूंट अथवा कुछ बूंदों की भी गुंजाईश नहीं है।
      (ग) केवल शराब पीने वालों पर ही लानत नहीं की गई, बल्कि अल्लाह तआला के नज़दीक वे लोग भी तिरस्कृत हैं जो शराब पीने वालों के साथ प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संमबन्ध रखें। सुनन इब्ने माजह में किताबुल ख़म्र की हदीस 3380 के अनुसार हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमायाः
      ‘‘अल्लाह की लानत नाज़िल होती है उन 10 प्रकार के समूहों पर जो शराब से सम्बंधित हैं। एक वह समूह जो शराब बनाए, और दूसरा वह जिसके लिए शराब बनाई जाए। एक वह जो उसे पिये और दूसरा वह जिस तक शराब पहुंचाई जाए, एक वह जो उसे परोसे। एक वह जो उसको बेचे, एक वह जो इसके द्वारा अर्जित धन का उपयोग करे। एक वह जो इसे ख़रीदे। और एक वह जो इसे किसी दूसरे के लिये ख़रीदे।’’
      शराब पीने से जुड़ी बीमारियाँ
      वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो शराब से दूर रहने के अनेक बौद्धिक कारण मिलेंगे। यदि विश्व में मृत्यु का कोई बड़ा कारण तलाश किया जाए तो पता चलेगा कि शराब एक प्रमुख कारण है। प्रत्येक वर्ष लाखों लोग शराब की लत के कारण मृत्यु को प्राप्त हैं। मुझे इस जगह शराब के बुरे प्रभावों के विषय में अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं क्योंकि इन बातों से सम्भवतः सभी परिचित हैं। फिर भी शराब के सेवन से उत्पन्न रोगों की संक्षिप्त सूची अवश्य दी जा रही है।

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    37. 1. जिगर (लीवर) की सिकुड़न की बीमारी, शराब पीने के द्वारा अधिक होती है, यह सर्वमान्य हैं।
      2. शराब पीने से आहार नलिका का कैंसर, सिर और गर्दन का कैंसर, तथा पाकाशय (मेदा) का कैंसर इत्यादि होना आम बात है।
      3. आहार नलिका की जलन और सूजन, मेदे पर सूजन, पित्ते की ख़राबी तथा हेपिटाईटिस का सम्बन्ध भी शराब के सेवन से है।
      4. हृदय से सम्बंधित समस्त रोगों, और हृदयघात से भी शराब का
      सीधा सम्बन्ध है।
      5. स्ट्रोक, एपोप्लेक्सी, हाईपर टेंशन, फ़िट्स तथा अन्य प्रकार के पक्षाघात का सम्बन्ध भी शराब से है।
      6. पेरीफ़ेरल न्यूरोपैथी, कोर्टिकल एटरोफ़ी और सिरबेलर एटरोफ़ी जैसे लक्षण भी मदिरा सेवन से ही उत्पन्न होते हैं।
      7. स्मरण शक्ति का क्षीण हो जाना, बोलचाल और स्मृति में केवल पूर्व की घटनाओं के ही शेष रह जाने का कारण थाईमिन की कमी से होता है जो शराब के अत्याधिक सेवन से उत्पन्न होती है।
      8. बेरी-बेरी और अन्य विकार भी शाराबियों में पाए जाते हैं, यहाँ तक कि उन्हें प्लाजरा भी हो जाता है।
      9. डीलेरियम टर्मिनस एक गम्भीर रोग है जो किसी विकार के उभरने के दौरान आप्रेशन के पश्चात लग सकता है। यह शराब पीना छोड़ने के एक प्रभाव के रूप में भी प्रकट हो सकता है। यह स्थिति बहुत जटिल है और प्रायः मृत्यु का कारण भी बन सकती है।
      10. मूत्र तथा गुर्दों की अनेक समस्याएं भी मदिरा सेवन से सम्बद्ध हैं जिनमें मिक्सोडीमिया से लेकर हाईपर थाईराडिज़्म और फ़्लोर डिक्शिंग सिंडरोम तक शामिल हैं।
      11. रक्त पर मदिरा सेवन के नकरात्मक प्रभावों की सूची बहुत लम्बी है किन्तु फ़ोलिक एसिड में कमी एक ऐसा प्रतीक है जो अधिक मदिरा सेवन का सामान्य परिणाम है और जो माईक्रो साइटिक एनेमिया के रूप में प्रकट होता है। ज़्युज़ सिंडरोम तीन रोगों का संग्रह है जो पियक्कड़ों की ताक में रहते हैं जो कि हेमोलेटिक एनेमया, जानडिस (पीलिया) और हाईपर लाइपेडीमिया का संग्रह हैं।
      12. थ्रम्बो साइटोपीनिया और प्लेटलिट्स के अन्य विकार पीने वालों में सामान्य हैं।
      13. सामान्य रूप से उपयोग की जाने वाली औषधि अर्थात ‘फ़्लेजल’ (मेट्रोनेडाज़ोल) भी शराब के साथ बुरे प्रभाव डालती है।
      14. किसी रोग का बार-बार आक्रमण करना, शराबियों में बहुत आम है। कारण यह है कि अधिक मदिरा सेवन से उनके शरीर की बीमारियों के विरुद्ध अवरोधक क्षमता क्षीण हो जाती है।
      15. छाती के विभिन्न विकार भी पीने वालों में बहुतायत से पाए जाते हैं। निमोनिया, फेफड़ों की ख़राबी तथा क्षयरोग शराबियों में सामान्य रूप से पाए जाते हैं।
      16. अधिक शराब पीकर अधिकांश शराबी वमन कर दते हैं, खाँसी की शारीरिक प्रतिक्रिया जो सुरक्षा व्यवस्था का कार्य करती है उस दौरान असफल हो जाती है अतः उल्टी से निकलने वाला द्रव्य सहज में फेफड़ों तक जा पहुंचता है और निमोनिया या फेफड़ों के विकार का कारण बनता है। कई बार इसका परिणाम दम घुटने तथा मृत्यु के रूप में भी प्रकट होता है।
      17. महिलाओं में मदिरा सेवन के हानिकारक प्रभावों की चर्चा विशेष रूप से की जानी आवश्यक है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को मदिरा सेवन से अधिक हानि की आशंका होती है। गर्भावस्था में मदिरा सेवन से गर्भाशय पर घातक प्रभाव पड़ता है। मेडिकल साइंस में ‘‘फ़ैटल अलकोहल सिंडरोम’’ से सम्बद्ध शंकाएं दिनो-दिन बढ़ती जा रही है।
      18. मदिरा सेवन से त्वचा रोगों की पूरी सम्भावना है।
      19. एगज़ीमा, एलोपेशिया, नाख़ुनों की बनावट बिगड़ना, पेरोनेशिया अर्थात नाख़ुनों के किनारों का विकार, एंगुलर स्टोमाटाईटिस (मुँह के जोड़ों में जलन) वह सामान्य बीमारियाँ हैं जो शराबियों में पाई जाती हैं।

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    38. मदिरा सेवन एक ‘‘बीमारी’’ है
      चिकित्सा शास्त्री अब शराब पीने वालों के विषय में खुलकर विचार व्यक्त करते हैं। उनका कहना है कि मदिरा सेवन कोई आदत या नशा नहीं बल्कि एक बीमारी है। इस्लामिक रिसर्च फ़ाउण्डेशन नामक संस्था ने एक पुस्तिका प्रकाशित की है जिसमें कहा गया है कि शराब एक बीमारी है जोः
      त बातलों में बेची हाती है।
      त जिसका प्रचार समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, रेडियो और टी.वी. पर किया जाता है।
      त जिसे फैलाने के लिए दुकानों को लायसेंस दिये जाते हैं।
      त सरकार के राजस्व आय का साधन है
      त सड़कों पर भयंकर दुर्घटनाओं का कारण बनती हैं
      त पारिवारिक जीवन को नष्ट करती है तथा अपराधों में बढ़ौतरी करती है।
      त इसका कारण कोई रोगााणु अथवा वायरस नहीं है।
      त मदिरा सेवन कोई रोग नहीं…यह तो शैतान की कारीगरी है।
      अल्लाह तआला ने हमें इस शैतानी कुचक्र से सावधान किया है। इस्लाम ‘‘दीन-ए-फ़ितरत’’ (प्राकृतिक धर्म) कहलाता है। अर्थात ऐसा
      धर्म जो मानव के प्रकृति के अनुसार है। इस्लाम के समस्त प्रावधानों का उद्देश्य यह है कि मानव की प्रकृति की सुरक्षा की जाए। शराब और मादक द्रव्यों का सेवन प्रकृति के विपरीत कृत्य है जो व्यक्ति और समाज में बिगाड़ का कारण बन सकता है। शराब मनुष्य को उसकी व्यक्तिगत मानवीय प्रतिष्ठा और आत्म सम्मान से वंचित कर उसे पाश्विक स्तर तक ले जाती है। इसीलिए इस्लाम में शराब पीने की घोर मनाही है और इसे महापाप ठहराया गया है।

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    39. गवाहों की समानता
      प्रश्नः क्या कारण है कि इस्लाम में दो स्त्रियों की गवाही एक पुरुष के समान ठहराई जाती है?
      उत्तरः दो स्त्रियों की गवाही एक पुरुष की गवाही के बराबर हमेशा नहीं ठहराई जाती।
      (क) जब विरासत की वसीयत का मामला हो तो दो न्यायप्रिय (योग्य) व्यक्तियों की गवाही आवश्यक है।
      पवित्र क़ुरआन की कम से कम 3 आयतें हैं जिनमें गवाहों की चर्चा स्त्री अथवा पुरुष की व्याख्या के बिना की गई है। जैसेः
      ‘‘हे लोगो! जो ईमान लाए हो, जब तुम में से किसी की मृत्यु का समय आ जाए और वह वसीयत कर रहा हो तो उसके लिए साक्ष्य का नियम यह है कि तुम्हारी जमाअत (समूह) में से दो न्यायप्रिय व्यक्ति गवाह बनाए जाएं। या यदि तुम यात्रा की स्थिति में हो और वहाँ मृत्यु की मुसीबत पेश आए तो ग़ैर (बेगाने) लोगों में से दो गवाह बनाए जाएं।’’ (सूरह अल-मायदा, आयत 106)
      (ख) तलाकष् के मामले में दो न्यायप्रिय लोगों की बात की गई हैः
      ‘‘फिर जब वे अपनी (इद्दत) की अवधि की समाप्ति पर पहुंचें तो या तो भले तरीके से (अपने निकाह) में रोक रखो, या भले तरीके से उनसे जुदा हो जाओ और दो ऐसे लोगों को गवाह बना लो जो तुम में न्यायप्रिय हों और (हे गवाह बनने वालो!) गवाही ठीक-ठीक और अल्लाह के लिए अदा करो।’’ (पवित्र क़ुरआन 65ः2)
      (इस जगह इद्दत की अवधि की व्याख्या ग़ैर मुस्लिम पाठकों के लिए करना आवश्यक जान पड़ता है। इद्दत का प्रावधान इस्लामी शरीअत में इस प्रकार है कि यदि पति तलाकष् दे दे तो पत्नी 3 माह 10 दिन तक अपने घर में परिजनों की देखरेख में सीमित रहे, इस बीच यदि तलाकष् देने वाले पति से वह गर्भवती है तो उसका पता चल जाएगा। यदि पति की मृत्यु हो जाती है तो इद्दत की अवधि 4 माह है। यह इस्लाम की विशेष सामाजिक व्यवस्था है। इन अवधियों में स्त्री दूसरा विवाह नहीं कर सकती।) अनुवादक
      (ग) स्त्रियों के विरूद्ध बदचलनी के आरोप लगाने के सम्बन्ध में चार गवाहों का प्रावधान किया गया हैः
      ‘‘और जो लोग पाकदामन औरतों पर तोहमत लगाएं और फिर 4 गवाह लेकर न आएं, उनको उसी कोड़े से मारो और उनकी गवाही न स्वीकार करो और वे स्वयं ही झूठे हैं।’’ (पवित्र क़ुरआन 24ः4)
      पैसे के लेन-देन में दो स्त्रियों की गवाही
      एक पुरुष की गवाही के बराबर होती है
      यह सच नहीं है कि दो गवाह स्त्रियाँ हमेशा एक पुरुष के बराबर समझी जाती हैं। यह बात केवल कुछ मामलों की हद तक ठीक है, पवित्र क़ुरआन में ऐसी लगभग पाँच आयतेें हैं जिनमें गवाहों की स्त्री-पुरुष के भेद के बिना चर्चा की गई है। इसके विपरीत पवित्र क़ुरआन की केवल एक आयत है जो यह बताती है कि दो गवाह स्त्रियाँ एक पुरुष के बराबर हैं। यह पवित्र क़ुरआन की सबसे लम्बी आयत भी है जो व्यापारिक लेन-देन के विषय में समीक्षा करती है। इस पवित्र आयत में अल्लाह तआला का फ़रमान हैः
      ‘‘हे लोगो! जो ईमान लाए हो, जब किसी निर्धारित अवधि के लिये तुम आपस में कष्र्ज़ का लेन-देन करो तो उसे लिख लिया करो। दोनों पक्षों के बीच न्याय के साथ एक व्यक्ति दस्तावेज़ लिखे, जिसे अल्लाह ने लिखने पढ़ने की योग्यता प्रदान की हो उसे लिखने से इंकार नहीं करना चाहिए, वह लिखे और वह व्यक्ति इमला कराए (बोलकर लिखवाए) जिस पर हकष् आता है (अर्थात कष्र्ज़ लेने वाला) और उसे अल्लाह से, अपने रब से डरना चाहिए, जो मामला तय हुआ हो उसमें कोई कमी-बेशी न करे, लेकिर यदि कष्र्ज़ लेने वाला अज्ञान या कमज़ोर हो या इमला न करा सकता हो तो उसका वली (संरक्षक अथवा प्रतिनिधि) न्याय के साथ इमला कराए। फिर अपने पुरूषों में से दो की गवाही करा लो। ओर यदि दो पुरुष न हों तो एक पुरुष और दो स्त्रियाँ हों ताकि एक भूल जाए तो दूसरी उसे याद दिला दे।’’ (पवित्र क़ुरआन , सूरह बकष्रह आयत 282)
      ध्यान रहे कि पवित्र क़ुरआन की यह आयत केवल और केवल व्यापारिक कारोबारी (रूपये पैसे के) लेन-देन से सम्बंधित है। ऐसे मामलों में यह सलाह दी गई है कि दो पक्ष आपस में लिखित अनुबंध करें और दो गवाह भी साथ लें जो दोनों (वरीयता में) पुरुष हों। यदि आप को दो पुरुष न मिल सकें तो फिर एक पुरुष और दो स्त्रियों की गवाही से भी काम चल जाएगा।
      मान लें कि एक व्यक्ति किसी बीमारी के इलाज के लिए आप्रेशन करवाना चाहता है। इस इलाज की पुष्टि के लिए वह चाहेगा कि दो विशेषज्ञ सर्जनों से परामर्श करे, मान लें कि यदि उसे दूसरा सर्जन न मिले तो दूसरा चयन एक सर्जन और दो सामान्य डाक्टरों (जनरल प्रैक्टिशनर्स) की राय होगी (जो सामान्य एम.बी.बी.एस) हों।

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    40. इसी प्रकार आर्थिक लेन-देन में भी दो पुरुषों को तरजीह (प्रमुखता) दी जाती है। इस्लाम पुरुष मुसलमानों से अपेक्षा करता है कि वे अपने परिवारजनों का कफ़ील (ज़िम्मेदार) हो। और यह दायित्व पूरा करने के लिए रुपया पैसा कमाने की ज़िम्मेदारी पुरुष के कंधों पर है। अतः उसे स्त्रियों की अपेक्षा आर्थिक लेन-देन के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। दूसरे साधन के रुप में एक पुरुष और दो स्त्रियों को गवाह के रुप में लिया जा सकता है ताकि यदि उन स्त्रियों में से कोई एक भूल करे तो दूसरी उसे याद दिला दे। पवित्र क़ुरआन में अरबी शब्द ‘‘तनज़ील’’ का उपयोग किया गया है जिसका अर्थ ‘कन्फ़यूज़ हो जाना’ या ‘ग़लती करना’ के लिए किया जाता है। बहुत से लोगों ने इसका ग़लत अनुवाद करके इसे ‘‘भूल जाना’’ बना दिया है, अतः आर्थिक लेन-देन में (इस्लाम में) ऐसा केवल एक उदाहरण है जिसमें दो स्त्रियों की गवाही को एक पुरुष के बराबर कष्रार दिया गया है।
      हत्या के मामलों में भी दो गवाह स्त्रियाँ
      एक पुरुष गवाह के बराबर हैं
      तथपि कुछ उलेमा की राय में नारी का विशेष और स्वाभाविक रवैया किसी हत्या के मामले में भी गवाही पर प्रभावित हो सकता है। ऐसी स्थिति में कोई स्त्री पुरुष की अपेक्षा अधिक भयभीत हो सकती है। अतः कुछ व्याख्याकारों की दृष्टि में हत्या के मामलों में भी दो साक्षी स्त्रियाँ एक पुरुष साक्षी के बराबर मानी जाती हैं। अन्य सभी मामलों में एक स्त्री की गवाही एक पुरुष के बराबर कष्रार दी जाती है।
      पवित्र क़ुरआन स्पष्ट रूप से बताता है कि
      एक गवाह स्त्री एक गवाह पुरुष के बराबर है
      कुछ उलेमा ऐसे भी हैं जो यह आग्रह करते हैं कि दो गवाह स्त्रियों के एक गवाह पुरुष के बराबर होने का नियम सभी मामलों पर लागू होना चाहिए। इसका समर्थन नहीं किया जा सकता क्योंकि पवित्र क़ुरआन ने सूरह नूर की आयत नम्बर 6 में स्पष्ट रूप से एक गवाह औरत को एक पुरुष गवाह के बराबर कष्रार दिया हैः
      ‘‘और जो लोग अपनी पत्नियों पर लांच्छन लगाएं, और उनके पास सिवाय स्वयं के दूसरे कोई गवाह न हों उनमें से एक व्यक्ति की गवाही (यह है कि) चार बार अल्लाह की सौगन्ध खाकर गवाही दे कि वह (अपने आरोप में) सच्चा है और पाँचवी बार कहे कि उस पर अल्लाह की लानत हो, अगर वह (अपने आरोप में) झूठा हो। और स्त्री से सज़ा इस तरह टल सकती है कि वह चार बार अल्लाह की सौगन्ध खाकर गवाही दे कि यह व्यक्ति (अपने आरोप में) झूठा है, और पाँचवी बार कहे कि इस बन्दी पर अल्लाह का ग़ज़ब (प्रकोप) टूटे अगर वह (अपने आरोप में) सच्चा हो।’’ (सूरह नूर 6 से 9)
      हदीस को स्वीकारने हेतु हज़रत आयशा
      (रज़ियल्लाहु अन्हा) की अकेली गवाही पर्याप्त है
      उम्मुल मोमिनीन (समस्त मुसलमानों की माता) हज़रत आयशा रजि़. (हमारे महान पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पत्नी) के माध्यम से कम से कम 12,220 हदीसें बताई गई हैं। जिन्हें केवल हज़रत आयशा रजि़. एकमात्र गवाही के आधार पर प्रामाणिक माना जाता है।
      (इस जगह यह जान लेना अनिवार्य है कि यह बात उस स्थिति में सही है कि जब कोई पवित्र हदीस (पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कथन अथवा कार्य की चर्चा अर्थात हदीस के उसूलों पर खरी उतरती हो (अर्थात किसने किस प्रकार क्या बताया) के नियम के अनुसार हो, अन्यथा वह हदीस चाहे कितने ही बड़े सहाबी (वे लोग जिन्होंने सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा सुना है) के द्वारा बताई गई हो, उसे अप्रामाणिक अथवा कमज़ोर हदीसों में माना जाता है।) अनुवादक
      यह इस बात का स्पष्ट सबूत है कि एक स्त्री की गवाही भी स्वीकार की जा सकती है।

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    41. अनेक उलेमा तथा इस्लामी विद्वान इस पर एकमत हैं कि नया चाँद दिखाई देने के मामले में एक (मस्लिम) स्त्री की साक्षी पर्याप्त है। कृपया ध्यान दें कि एक स्त्री की साक्षी (रमज़ान की स्थिति में) जो कि इस्लाम का एक स्तम्भ है, के लिये पर्याप्त ठहराई जा रही है। अर्थात वह मुबारक और पवित्र महीना जिसमें मुसलमान रोज़े रखते हैं, गोया रमज़ान शरीफ़ के आगमन जैसे महत्वपूर्ण मामले में स्त्री-पुरुष उसे स्वीकार कर रहे हैं। इसी प्रकार कुछ फुकहा (इस्लाम के धर्माचार्यों) का कहना है कि रमज़ान का प्रारम्भ (रमज़ान का चाँद दिखाई देने) के लिए एक गवाह, जबकि रमज़ान के समापन (ईदुलफ़ित्र का चाँद दिखाई देने) के लिये दो गवाहों का होना ज़रूरी है। यहाँ भी उन गवाहों के स्त्री अथवा पुरुष होने की कोई भी शर्त नहीं है।
      कुछ मुसलमानों में स्त्री की गवाही को
      अधिक तरजीह दी जाती है
      कुछ घटनाओं में केवल और केवल एक ही स्त्री की गवाही चाहिए होती है जबकि पुरुष को गवाह के रूप में नहीं माना जाता। जैसे स्त्रियों की विशेष समस्याओं के मामले में, अथवा किसी मृतक स्त्री के नहलाने और कफ़नाने आदि में एक स्त्री का गवाह होना आवश्यक है।
      अंत में इतना बताना पर्याप्त है कि आर्थिक लेन-देन में स्त्री और पुरुष की गवाही के बीच समानता का अंतर केवल इसलिए नहीं कि इस्लाम में पुरुषों और स्त्रियों के बीच समता नहीं है, इसके विपरीत यह अंतर केवल उनकी प्राकृतिक प्रवृत्तियों के कारण है। और इन्हीं कारणों से इस्लाम ने समाज में पुरूषों और स्त्रियों के लिये विभिन्न दायित्वों को सुनिश्चित किया है।

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    42. विरासत
      प्रश्नः इस्लामी कानून के अनुसार विरासत की धन-सम्पत्ति में स्त्री का हिस्सा पुरूष की अपेक्षा आधा क्यों है?
      उत्तरः
      पवित्र क़ुरआन में विरासत की चर्चा
      पवित्र क़ुरआन में धन (चल-अचल सम्पत्ति सहित) के हकष्दार उत्तराधिकारियों के बीच बंटवारे के विषय पर बहुत स्पष्ट और विस्तृत मार्गदर्शन किया गया है। विरासत के सम्बन्ध में मार्गदर्शक नियम निम्न वर्णित पवित्र आयतों में बताए गए हैंः
      ‘‘तुम पर फ़र्ज़ (अनिवार्य कर्तव्य) किया गया है कि जब तुम में से किसी की मृत्यु का समय आए और अपने पीछे माल छोड़ रहा हो, माता पिता और सगे सम्बंधियों के लिए सामान्य ढंग से वसीयत करे। यह कर्तव्य है मुत्तबकी लोगों (अल्लाह से डरने वालों) पर।’’ (पवित्र क़ुरआन , सूरह बकष्रह आयत 180)
      ‘‘तुम में से जो लोग मृत्यु को प्राप्त हों और अपने पीछे पत्नियाँ छोड़ रहे हों, उनको चाहिए कि अपनी पत्नियों के हकष् में वसीयत कर जाएं कि एक साल तक उन्हें नान-व- नफ़कष्ः (रोटी, कपड़ा इत्यादि) दिया जाए और वे घर से निकाली न जाएं। फिर यदि वे स्वयं ही निकल जाएं तो अपनी ज़ात (व्यक्तिगत रुप में) के मामले में सामान्य ढंग से वे जो कुछ भी करें, इसकी कोई ज़िम्मेदारी तुम पर नहीं है। अल्लाह सब पर ग़ालिब (वर्चस्व प्राप्त) सत्ताधारी हकीम (ज्ञानी) और बुद्धिमान है।’’ (सूरह अल बकष्रह, आयत 240)
      ‘‘पुरुषों के लिए उस माल में हिस्सा है जो माँ-बाप और निकटवर्ती रिश्तेदारों ने छोड़ा हो और औरतों के लिए भी उस माल में हिस्सा है जो माँ-बाप और निकटवर्ती रिश्तेदारों ने छोड़ा हो। चाहे थोड़ा हो या बहुत। और यह हिस्सा (अल्लाह की तरफ़ से) मुकष्र्रर है। और जब बंटवारे के अवसर पर परिवार के लोग यतीम (अनाथ) और मिस्कीन (दरिद्र, दीन-हीन) आएं तो उस माल से उन्हें भी कुछ दो और उनके साथ भलेमानुसों की सी बात करो। लोगों को इस बात का ख़याल करके डरना चाहिए कि यदि वे स्वयं अपने पीछे बेबस संतान छोड़ते तो मारते समय उन्हें अपने बच्चों के हकष् में कैसी कुछ आशंकाएं होतीं, अतः चाहिए कि वे अल्लाह से डरें और सत्यता की बात करें।’’ (सूरह अन्-निसा, आयत 7 से 9)
      ‘‘हे लोगो जो ईमान लाए हो, तुम्हारे लिए यह हलाल नहीं है कि ज़बरदस्ती औरतों के वारिस बन बैठो, और न यह हलाल है कि उन्हें तंग करके उस मेहर का कुछ हिस्सा उड़ा लेने का प्रयास करो जो तुम उन्हें दे चुके हो। हाँ यदि वह कोई स्पष्ट बदचलनी करें (तो अवश्य तुम्हें तंग करने का हकष् है) उनके साथ भले तरीकष्े से ज़िन्दगी बसर करो। अगर वह तुम्हें नापसन्द हों तो हो सकता है कि एक चीज़ तुम्हें पसन्द न हो मगर अल्लाह ने उसी में बहुत कुछ भलाई रख दी हो।’’ (सूरह अन्-निसा, आयत 19)
      ‘‘और हमने उस तरके (छोड़ी हुई धन-सम्पत्ति) के हकष्दार मुकष्र्रर कर दिये हैं जो माता-पिता और कष्रीबी रिश्तेदार छोड़ें। अब रहे वे लोग जिनसे तुम्हारी वचनबद्धता हो तो उनका हिस्सा उन्हें दो। निश्चय ही अल्लाह हर वस्तु पर निगहबान है।’’ (सूरह अन्-निसा, आयत 33)
      विरासत में निकटतम रिश्तेदारों का विशेष हिस्सा

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    43. पवित्र क़ुरआन में तीन आयतें ऐसी हैं जो बड़े सम्पूर्ण ढंग से विरासत में निकटतम सम्बंधियों के हिस्से पर रौशनी डालती हैंः
      ‘‘तुम्हारी संतान के बारे में अल्लाह तुम्हें निर्देश देता है कि पुरुष का हिस्सा दो स्त्रियों के बराबर है। यदि (मृतक के उत्तराधिकारी) दो से अधिक लड़कियाँ हों तो उन्हें तरके का दो तिहाई दिया जाए और अगर एक ही लड़की उत्तराधिकारी हो तो आधा तरका उसका है। यदि मृतक संतान वाला हो तो उसके माता-पिता में से प्रत्येक को तरके का छठवाँ भाग मिलना चाहिए। यदि वह संतानहीन हो और माता-पिता ही उसके वारिस हों तो माता को तीसरा भाग दिया जाए। और यदि मृतक के भाई-बहन भी हों तो माँ छठे भाग की हकष्दार होगी (यह सब हिस्से उस समय निकाले जाएंगे) जबकि वसीयत जो मृतक ने की हो पूरी कर दी जाए और क़र्ज़ जो उस पर हो अदा कर दिया जाए। तुम नहीं जानते कि तुम्हारे माँ-बाप और तुम्हारी संतान में से कौन लाभ की दृष्टि से तुम्हें अत्याधिक निकटतम है, यह हिस्से अल्लाह ने निधार्रित कर दिये हैं और अल्लाह सारी मस्लेहतों को जानने वाला है। और तुम्हारी पत्नियों ने जो कुछ छोड़ा हो उसका
      आधा तुम्हें मिलेगा। यदि वह संतानहीन हों, अन्यथा संतान होने की स्थिति में तरके का एक चैथाई हिस्सा तुम्हारा है, जबकि वसीयत जो उन्होंने की हो पूरी कर दी जाए और क़र्ज़ जो उन्होंने छोड़ा हो अदा कर दिया जाए। और वह तुम्हारे तरके में से चैथाई की हकष्दार होंगी। यदि तुम संताीहीन हो, अन्यथा संतान होने की स्थिति में उनका हिस्सा आठवाँ होगा। इसके पश्चात कि जो वसीयत तुमने की हो पूरी कर दी जाए और वह क़र्ज़ जो तुमने छोड़ा हो अदा कर दिया जाए।
      और अगर वह पुरुष अथवा स्त्री (जिसके द्वारा छोड़ी गई
      धन-सम्पति का वितरण होना है) संतानहीन हो और उसके माता-पिता जीवित न हों परन्तु उसका एक भाई अथवा एक बहन मौजूद हो तो भाई और बहन प्रत्येक को छठा भाग मिलेगा और भाई बहन एक से ज़्यादा हों तो कुछ तरके के एक तिहाई में सभी भागीदार होंगे। जबकि वसीयत जो की गई हो पूरी कर दी जाए और क़र्ज़ जो मृतक ने छोड़ा हो अदा कर दिया जाए। बशर्ते कि वह हानिकारक न हो। यह आदेश है अल्लाह की ओर से और अल्लाह ज्ञानवान, दृष्टिवान एवं विनम्र है।’’ (सूरह अन्-निसा, आयत 11 से 12 )
      ‘‘हे नबी! लोग तुम से कलालः (वह मृतक जिसका पिता हो न पुत्र) के बारे में में फ़तवा पूछते हैं, कहो अल्लाह तुम्हें फ़तवा देता है। यदि कोई व्यक्ति संतानहीन मर जए और उसकी एक बहन हो तो वह उसके तरके में से आधा पाएगी और यदि बहन संतानहीन मरे तो भाई उसका उत्तराधिकारी होगा। यदि मृतक की उत्तराधिकारी दो बहनें हों तो वे तरके में दो तिहाई की हक़दार होंगी और अगर कई बहन भाई हों तो स्त्रियों का इकहरा और पुरुषों का दोहरा हिस्सा होगा तुम्हारे लिये अल्लाह आदेशों की व्याख्या करता है ताकि तुम भटकते न फिरो और अल्लाह हर चीज़ का ज्ञान रखता है।’’ (सूरह अन्-निसा, आयत 176)

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    44. कुछ अवसरों पर तरके में स्त्री का हिस्सा अपने समकक्ष पुरुष से अधिक होता है
      अधिकांक्ष परिस्थतियों में एक स्त्री को विरासत में पुरुष की अपेक्षा आधा भाग मिलता है। किन्तु हमेशा ऐसा नहीं होता। यदि मृतक कोई सगा बुजष्ुर्ग (माता-पिता इत्यादि अथवा सगे उत्ताराधिकारी पुत्र, पुत्री आदि) न हों परन्तु उसके ऐसे सौतेले भाई-बहन हों, माता की ओर से सगे और पिता की ओर से सौतेले हों तो ऐसे दो बहन-भाई में से प्रत्येक को तरके का छठा भाग मिलेगा।
      यदि मृतक के बच्चें न हों तो उसके माँ-बाप अर्थात माँ और बाप में से प्रत्येक को तरके का छठा भाग मिलेगा। कुछ स्थितियों में स्त्री को तरके में पुरुष से दोगुना हिस्सा मिलता है। यदि मृतक कोई स्त्री हो जिससे बच्चे न हों और उसका कोई भाई बहन भी न हो जबकि उसके निकटतम सम्बंधियों में उसका पति, माँ और बाप रह गए हों (ऐसी स्थिति में) उस स्त्री के पति को स्त्री के तरके में आधा भाग मिलेगा) माता को एक तिहाई, जबकि पिता को शेष का छठा भाग मिलेगा। देखिए कि इस मामले में स्त्री की माता का हिस्सा उसके पिता से दोगुना होगा।
      तरके में स्त्री का सामान्य हिस्सा अपने
      समकक्ष पुरुष से आधा होता है
      एक सामान्य नियम के रूप में यह सच है कि अधिकांश मामलों में स्त्री का तरके में हिस्सा पुरुष से आधा होता है, जैसेः
      1. विरासत में पुत्री का हिस्सा पुत्र से आधा होता है।
      2. यदि मृतक की संतान हो तो पत्नी को आठवाँ और पति को चैथाई हिस्सा मिलेगा।
      3. यदि मृतक संतानहीन हो तो पत्नी को चैथाई और पति को
      आधा हिस्सा मिलेगा।
      4. यदि मृतक का कोई (सगा) बुजष्ुर्ग अथवा उत्तराधिकारी न हो तो उसकी बहन को (उसके) भाई के मुकषबले में आधा हिस्सा मिलेगा।
      पति को विरासत में दोगुना हिस्सा इसलिए मिलता है कि वह परिवार के भरण पोषण का ज़िम्मेदार है
      इस्लाम में स्त्री पर जीवनोपार्जन की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है। जबकि परिवार की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ती का दायित्व पुरुष पर डाला गया है। विवाह से पूर्व कन्या के रहने सहने, आवागमन, भोजन वस्त्र तथा समस्त आर्थिक आवश्यकताओं का पूरा करना उसके पिता अथवा भाई (या भाईयों) का कर्तव्य है। विवाहोपरांत स्त्री की यह समस्त आवश्यकताएं पूरी करने का दायित्व उसके पति अथवा पुत्र (पुत्रों) पर लागू होता है। अपने परिवार की समस्त आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इस्लाम ने पूरी तरह पुरुष को ज़िम्मेदार ठहराया है। इस दायित्व के निर्वाह के कारण से इस्लाम में विरासत में पुरुष का हिस्सा स्त्री से दोगुना निश्चित किया गया है। उदाहरणतः यदि कोई पुरुष तरके में डेढ़ लाख रुपए छोड़ता है और उसके एक बेटी और एक बेटा है तो उसमें से 50 हज़ार बेटी को और एक लाख रुपए बेटे को मिलेंगे।
      देखने में यह हिस्सा ज़्यादा लगता है परन्तु बेटे पर घर-परिवार की ज़िम्मेदारी भी है जिन्हें पूरा करने के लिए (स्वाभाविक रूप से) एक लाख में से 80 हज़ार रूपए ख़र्च करने पड़ सकते हैं। अर्थात विरासत में उसका हिस्सा वास्तव में 20 हज़ार के लगभग ही रहेगा। दूसरी ओर यदि लड़की को 50 हज़ार रूपए मिले हैं लेकिन उसपर किसी प्रकार की ज़िम्मेदारी नहीं है अतः वह समस्त राशि उसके पास बची रहेेगी। आपके विचार में क्या चीज़ बेहतर है। तरके में एक लाख लेकर 80 हज़ार ख़र्च कर देना या 50 हज़ार लेकर पूरी राशि बचा लेना?
      15
      क्या पवित्र क़ुरआन अल्लाह का कलाम (ईष वाक्य) है?
      निश्चय ही विश्व के प्रत्येक मुसलमान का इस पर पूर्ण विश्वास है परन्तु यह प्रश्न एक सम्पूर्ण पुस्तक की मांग करता है। इस प्रश्न का विस्तार से उत्तर एक पुस्तक के रूप में डा. ज़ाकिर नायक दे चुके, अफसोस उस पुस्तमक की हिन्दीश नही होसकी,
      Now online book: “IS THE QURAN GOD’S WORD? (Hindi)” किया कुरआन ईश्वरीय ग्रन्थ है?

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    45. आख़िरत, मृत्योपरांत जीवन
      प्रश्नः आप आख़िरत अथवा मृत्योपरांत जीवन की सत्यता कैसे सिद्ध करेंगे?
      उत्तरः आख़िरत पर विश्वास का आधार अंधी आस्था नहीं है।
      बहुत से लोग इस बात पर हैरान होते हैं कि एक ऐसा व्यक्ति जो बौद्धिक और वैज्ञानिक प्रवृत्ति का स्वामी हो, वह किस प्रकार मृत्यु के उपरांत जीवन पर विश्वास धारण कर सकता है? लोग यह विचार करते हैं कि आख़िरत पर किसी का विश्वास अंधी आस्था पर स्थापित होता है। परन्तु आख़िरत पर मेरा विश्वास बौद्धिक तर्क के आधार पर है।
      आख़िरत एक बौद्धिक आस्था
      पवित्र क़ुरआन में एक हज़ार से अधिक आयतें ऐसी हैं जिनमें वैज्ञानिक तथ्यों का वर्णन किया गया है। (इसके लिए मेरी पुस्तक ‘‘क़ुरआन और आधुनिक विज्ञान, समन्वय अथवा विरोध’’ देखें) विगत शताब्दियों के दौरान पवित्र क़ुरआन मे वर्णित 80 प्रतिशत तथ्य 100 प्रतिशत सही सिद्ध हो चुके हैं। शेष 20 प्रतिशत तथ्यों के विषय में विज्ञान ने कोई स्पष्ट निष्कर्ष नहीं घोषित किया है क्योंकि विज्ञान अभी तक इतनी उन्नति नहीं कर सका है कि पवित्र क़ुरआन में वर्णित शेष तथ्यों को सही अथवा ग़लत सिद्ध कर सके। इस सीमित ज्ञान के साथ जो हमारे पास है, हम पूरे विश्वास के साथ कदापि नहीं कह सकते कि इस 20 प्रतिशत का भी केवल एक प्रतिशत भाग अथवा कोई एक आयत ही ग़लत है। अतः जब पवित्र क़ुरआन का 80 प्रतिशत भाग (बौद्धिक आधार पर) शत प्रतिशत सही सिद्ध हो चुका है और शेष 20 प्रतिशत ग़लत सिद्ध नहीं किया जा सका तो विवेक यही कहता है कि शेष 20 प्रतिशत भाग भी सही है।
      आख़िरत का अस्तित्व जो पवित्र क़ुरआन ने बयान किया है उसी 20 प्रतिशत समझ में न आने वाले भाग में शामिल है जो बौद्धिक रूप से सही है।
      शांति और मानवीय मूल्यों की कल्पना, आख़िरत के विश्वास के बिना व्यर्थ है
      डकैती अच्छा काम है या बुरा? इस प्रश्न के उत्तर में कोई भी नार्मल और स्वस्थ बुद्धि वाला व्यक्ति यही कहेगा कि यह बुरा काम है। किन्तु इस से भी महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि कोई ऐसा व्यक्ति जो आख़िरत पर विश्वास न रखता हो वह किसी शक्तिशाली और प्रभावशाली पहुंच रखने वाले व्यक्ति को कैसे कषइल करेगा कि डाके डालना एक बुराई, एक पाप है?
      यदि कोई मेरे सामने इस बात के पक्ष में एक बौद्धिक तर्क प्रस्तुत कर दे (जो मेरे लिए भी समान रूप से स्वीकार्य हो) कि डाका डालना बुरा है तो मैं तुरन्त यह काम छोड़ दूंगा। इसके जवाब में लोग आम तौर से निम्नलिखित तर्क देते हैं।

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    46. (क) लुटने वाले व्यक्ति को कठिनाईयों का सामना होगा
      कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि लुटने वाले व्यक्ति को कठिनाईयों का सामना होगा। निश्चय ही, मैं इस बात पर सहमत होऊंगा कि लुटनेवाले के लिए डाकाज़नी का काम बहुत बुरा है। परन्तु मेरे लिए तो यह अच्छा है। यदि मैं 20 हज़ार डालर की डकैती मारूं तो किसी पाँच तारा होटल में मज़े से खाना खा सकता हूँ।
      (ख) कोई अन्य आप को भी लूट सकता है
      कुछ लोग यह कह सकते हैं कि किसी दिन कोई अन्य डाकू आप को भी लूट सकता है। परन्तु मैं तो बड़ी ऊँची पहुंच वाला प्रभावशाली अपराधी हूँ, और मेरे सैकड़ों अंगरक्षक हैं तो भला कोई मुझे कैसे लूट सकता है? अर्थात मैं तो किसी को भी लूट सकता हूँ परन्तु मुझे कोई नहीं लूट सकता। डकैती किसी साधारण व्यक्ति के लिये ख़तरनाक पेशा हो सकता है पर मुझ जैसे शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्ति के लिए नहीं।
      (ग) आपको पुलिस गिरफ़्तार कर सकती है
      एक तर्क यह भी सामने आ सकता है कि किसी न किसी दिन पुलिस आपको गिरफ़्तार कर लेगी। अरे भई! पुलिस तो मुझे पकड़ ही नहीं सकती, पुलिस के छोटे से बड़े अधिकारियों और ऊपर मंत्रियों तक मेरा नमक खाने वाले हैं। हाँ, यह मैं मानता हूँ कि यदि कोई साधारण व्यक्ति डाका डाले तो वह गिरफ़्तार कर लिया जाएगा और डकैती उसके लिये बुरी सिद्ध होगी, परन्तु मैं तो आसाधारण रूप से प्रभावशाली और ताकष्तवर अपराधी हूँ, मुझे कोई बौद्धिक तर्क दीजिए कि यह कृत्य बुरा है, मैं डाके मारना छोड़ दूंगा।
      (घ) यह बिना परिश्रम की कमाई है
      यह एक तर्क दिया जा सकता है कि यह बिना परिश्रम अथवा कम परिश्रम से कमाई गई आमदनी है जिसकी प्राप्ति हेतु कोई अधिक मेहनत नहीं की गई है। मैं मानता हूँ कि डाका मारने में कुछ खास परिश्रम किये बिना अच्छी खासी रकष्म हाथ लग जाती है। और यही मेरे डाका मारने का बड़ा कारण भी है। यदि किसी के सामने अधिक धन कमाने का सहज और सुविधाजनक रास्ता हो तथा वह रास्ता भी हो जिससे धन कमाने में उसे बहुत ज़्यादा परिश्रम करना पड़े तो एक बुद्धिमान व्यक्ति स्वाभाविक रूप से सरल रास्ते को ही अपनाएगा।
      (ङ) यह मानवता के विरूद्ध है
      कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि डाके मारना अमानवीय कृत्य है और यह कि एक व्यक्ति को दूसरे मनुष्यों के बारे में सोचना चाहिए। इस बात को नकारते हुए मैं यह प्रश्न करूंगा कि ‘‘मानवता कहलाने वाला यह कानून किसने लिखा है, मैं इस का पालन किस ख़ुशी में करूँ?’’
      यह कानून किसी भावुक और संवेदनशील व्यक्ति के लिए तो ठीक हो सकता है किन्तु मैं बुद्धिमान व्यक्ति हूँ, मुझे दूसरे लोगों की चिंता करने में कोई लाभ दिखाई नहीं देता।
      (च) यह स्वार्थी कृत्य है
      कुछ लोग डाकाज़नी को स्वार्थी कृत्य कह सकते हैं, यह बिल्कुल सच है कि डाके मारना स्वार्थी कृत्य है किन्तु मैं स्वार्थी क्यों न बनूँ। इसी से तो मुझे जीवन का आनन्द उठाने में मदद मिलती है।
      डाकाज़नी को बुरा काम सिद्ध करने के लिए
      कोई बौद्धिक तर्क नहीं
      अतः डाका मारने को बुरा काम सिद्ध करने हेतु दिये गए समस्त तर्क व्यर्थ रहते हैं। इस प्रकार के तर्कों से एक साधारण कमज़ोर व्यक्ति को तो प्रभावित किया जा सकता है। किन्तु मुझ जैसे शक्तिशाली और असरदार व्यक्ति को नहीं। इनमें से किसी एक तर्क का बचाव भी बुद्धि और विवेक के बल पर नहीं किया जा सकता, अतः इसमें कोई हैरानी की बात नहीं कि संसार में बहुत अपराधी प्रवृति के लोग पाए जाते हैं। इसी प्रकार धोखाधड़ी और बलात्कार जैसे अपराध मुझ जैसे किसी व्यक्ति के लिए अच्छे होने का औचित्य प्राप्त कर सकते हैं। और कोई बौद्धिक तर्क मुझ से इनके बुरे होने की बात नहीं मनवा सकता।
      एक मुसलमान किसी भी शक्तिशाली अपराधी को लज्जित होने पर विवश कर सकता है
      चलिए, अब हम स्थान बदल लेते हैं। मान लीजिए कि आप दुनिया के शक्तिशाली अपराधी हैं जिसका प्रभाव पुलिस से लेकर सरकार के बड़े- बड़े मंत्रियों आदि पर भरपूर है। आपके पास अपने गिरोह के बदमाशों की पूरी सेना है। मैं एक मुसलमान हूँ जो आपको समझाने का प्रयत्न कर रहा है कि बलात्कार, लूटमार और धोखाधड़ी इत्यादि बुरे काम हैं। यदि मैं वैसे ही तर्क (जो पहले दिये जा चुके हैं) अपराधों को बुरा सिद्ध करने के लिए दूँ तो अपराधी भी वही जवाब देगा जो उसने पहले दिये थे।

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    47. मैं मानता हूँ कि अपराधी चतुर बुद्धि का व्यक्ति हैं, और उसके समस्त तर्क उसी समय सटीक होंगे जब वह संसार का बलशाली अपराधी हो।
      प्रत्येक मनुष्य न्याय चाहता है
      प्रत्येक मनुष्य की यह कामना होती है कि उसे न्याय मिले। यहाँ तक कि यदि वह दूसरों के लिए न्याय का इच्छुक न भी हो तो भी वह अपने लिए न्याय चाहता है। कुछ लोग शक्ति और अपने असर-रसूख़ के नशे में इतने उन्मत्त होते हैं कि दूसरे लोगों के लिए कठिनाईयाँ और विपत्तियाँ खड़ी करते रहते हैं परन्तु यही लोग उस समय कड़ी आपत्ति करते हैं जब स्वयं उनके साथ अन्याय हो। दूसरों की ओर से असंवेदनशील और भावहीन होने का कारण यह है कि वे अपनी शक्ति की पूजा करते हैं और यह सोचते हैं कि उनकी शक्ति ही उन्हें दूसरों के साथ अन्याय करने के योग्य बनाती है और दूसरों को उनके विरुद्ध अन्याय करने से रोकने का साधन है।
      अल्लाह तआला सबसे शक्तिशाली और
      न्याय करने वाला है
      एक मुसलमान की हैसियत से मैं अपराधी को सबसे पहले अल्लाह के अस्तित्व को मानने पर बाध्य करूंगा, (इस बारे में तर्क अलग हैं) अल्लाह आपसे कहीं अधिक ताकष्तवर है और साथ ही साथ वह अत्यंत न्यायप्रिय भी है। पवित्र क़ुरआन में कहा गया हैः
      ‘‘अल्लाह किसी पर ज़र्रा बराबर भी अत्चायार नहीं करता। यदि कोई एक नेकी करे तो अल्लाह उसको दोगुना करता है और अपनी ओर से बड़ा प्रतिफल प्रदान करता है।’’ (पवित्र क़ुरआन , 4ः40)
      अल्लाह मुझे दण्ड क्यों नहीं देता?
      और बुद्धिमान तथा वैज्ञानिक प्रवृत्ति वाला व्यक्ति होने के नाते जब उसके समक्ष पवित्र क़ुरआन से तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं तो वह उन्हें स्वीकार करके अल्लाह तआला के अस्तित्व को मान लेता है। वह प्रश्न कर सकता है कि जब अल्लाह तआला सबसे ताकष्तवर और सबसे
      अधिक न्याय करने वाला है तो मुझे दण्ड क्यों नहीं मिलता?
      अन्याय करने वाले को दण्ड मिलना चाहिए
      प्रत्येक वह व्यक्ति, जिसके साथ अन्याय हुआ हो, निश्चय ही यह चाहेगा कि अन्यायी को उसके धन, शक्ति और सामाजिक रुतबे का
      ध्यान किये बिना दण्ड दिया जाना चाहिए। प्रत्येक सामान्य व्यक्ति यह चाहेगा कि डाकू और बदकार को सबकष् सिखाया जाए। यद्यपि बहुतेरे अपराधियों को दण्ड मिलता है किन्तु फिर भी उनकी बड़ी तादाद कानून से बच जाने में सफल रहती है।। ये लोग बड़ा आन्दमय एवं विलासितापूर्ण जीवन बिताते हैं और अधिकांश आनन्दपूर्वक रहते हैं। यदि किसी शक्तिशाली और असरदार व्यक्ति के साथ उससे अधिक शक्तिशाली व्यक्ति अन्याय करे तो भी वह चाहेगा कि उससे अधिक शक्तिशाली और असरदार व्यक्ति को उसके अन्याय का दण्डा दिया जाए।
      यह जीवन आख़िरत का परीक्षा स्थल है
      दुनिया की यह ज़िन्दगी आख़िरत के लिए परीक्षा स्थल है। पवित्र क़ुरआन का फ़रमान हैः
      ‘‘जिसने मृत्यु और जीवन का अविष्कार किया ताकि तुम लोगों को आज़मा कर देखे कि तुम में से कौन सद्कर्म करने वाला है, और वह ज़बदस्त भी है और दरगुज़र (क्षमा) करने वाला भी।’’ (पवित्र क़ुरआन 67ः2)
      किष्यामत के दिन पूर्ण और निश्चित न्याय होगा

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    48. पवित्र क़ुरआन में कहा गया हैः
      ‘‘अंततः प्रत्येक व्यक्ति को मृत्यु का स्वाद चखना है। और तुम जब अपने पूरे-पूरे अज्र (प्रतिफल) पाने वाले हो, सफल वास्तव में वह है जो दोज़ख़ की आग से बच जाए और जन्नत में दाख़िल कर दिया जाए, रही यह दुनिया तो यह एक प्रत्यक्ष धोखा (माया) है।’’ (पवित्र क़ुरआन , 3ः185)
      पूर्ण न्याय किष्यामत के दिन किया जाएगा। मरने के बाद हर व्यक्ति को हिसाब के दिन (कियामत के दिन) एक बार फिर दूसरे तमाम मनुष्यों के साथ ज़िन्दा किया जाएगा। यह संभव है कि एक व्यक्ति अपनी सज़ा का एक हिस्सा दुनिया ही में भुगत ले, किन्तु दण्ड और पुरुस्कार का पूरा फ़ैसला आख़िरत में ही किया जाएगा। संभव है अल्लाह तआला किसी अपराधी को इस दुनिया में सज़ा न दे लेकिन किष्यामत के दिन उसे अपने एक-एक कृत्य का हिसाब चुकाना पड़ेगा। और वह आख़िरत अर्थात मृत्योपरांत जीवन में अपने एक-एक अपराध की सज़ा पाएगा।
      मानवीय कानून हिटलर को क्या सज़ा दे सकता है?
      महायुद्ध में हिटलर ने लगभग 60 लाख यहूदियों को जीवित आग में जलवाया था। मान लें कि पुलिस उसे गिरफ़्तार भी कर लेती तो कानून के अनुसार उसे अधिक से अधि क्या सज़ा दी जाती? बहुत से बहुत यह होता कि उसे किसी गैस चैम्बर में डालकर मार दिया जाता, किन्तु यह तो केवल एक यहूदी की हत्या का दण्ड होता, शेष 59 लाख, 99 हज़ार, 999 यहूदियों की हत्या का दण्ड उसे किस प्रकार दिया जा सकता था? उसे एक बार ही (स्वाभाविक रुप से) मृत्युदण्ड दिया जा सकता था।
      अल्लाह के अधिकार में है कि वह हिटलर को जहन्नम की आग में 60 लाख से अधिक बार जला दे
      पवित्र क़ुरआन में अल्लाह तआला फ़रमाता हैः
      ‘‘जिन लोगों ने हमारी आयतों को मानने से इंकार कर दिया है उन्हें हम निश्चिय ही आग में फेंकेंगे और जब उनके शरीर की खाल गल जाएगी तो उसकी जगह दूसरी खाल पैदा कर देंगे ताकि वह ख़ूब अज़ाब (यातना) का मज़ा चखें, अल्लाह बड़ी क्षमता रखता है और अपने फ़ैसलों के क्रियानवयन की हिकमत ख़ूब जानता है।’’ (पवित्र क़ुरआन , 4ः56)
      अर्थात अल्लाह चाहे तो हिटलर को जहन्नम की आग में केवल 60 लाख बार नहीं बल्कि असंख्य बार जला सकता है।
      आख़िरत की परिकल्पना के बिना मानवीय मूल्यों
      और अच्छाई बुराई की कोई कल्पना नहीं
      यह स्पष्ट है कि किसी व्यक्ति को आख़िरत की कल्पना अथवा मृत्यु के पश्चात जीवन के विश्वास पर कषयल किये बिना उसे मानवीय मूल्यों और अच्छे-बुरे कर्मों की कल्पना पर कषयल करना भी संभव नहीं। विशेष रूप से जब मामला शक्तिशाली और बड़े अधिकार रखने वालों का हो जो अन्याय में लिप्त हों।

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    49. प्रश्नः क्या कारण है कि मुसलमान विभिन्न समुदायों और विचाधाराओं में विभाजित हैं?
      उत्तरः मुसलमानों को एकजुट होना चाहिए।
      यह सत्य है कि आज के मुसलमान आपस में ही बंटे हुए हैं। दुख की बात यह है कि इस प्रकार के अलगाव की इस्लाम में कोई अनुमति नहीं है। इस्लाम इस बात पर ज़ोर देता है कि उसके अनुयायियों में परस्पर एकता को बरक़रार रखा जाए।
      ‘‘सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मज़बूत पकड़ लो और अलगाव में न पड़ो।’’ (पवित्र क़ुरआन , 3ः103)
      वह कौन सी रस्सी है जिसकी ओर इस पवित्र आयत में अल्लाह तआला ने इशारा किया है। पवित्र क़ुरआन ही वह रस्सी है, यही अल्लाह की वह रस्सी है जिसे समस्त मुसलमानों को मज़बूती से थामे रहना चाहि। इस पवित्र आयत में दोहरा आग्रह है, एक ओर यह आदेश दिया गया है कि अल्लाह की रस्सी को ‘‘मज़बूती से थामे रखें’’ तो दूसरी ओर यह आदेश भी है कि अलगाव में न पड़ो (एकजुट रहो)।
      पवित्र क़ुरआन का स्पष्ट आदेश हैः
      ‘‘हे लोगो! जो ईमान लाए हो, आज्ञापालन करो अल्लाह का, और आज्ञापालन करो रसूल (सल्लॉ) का, और उन लोगों का जो तुम में साहिब-ए-अम्र (अधिकारिक) हों फिर तुम्हारे बीच किसी मामले में विवाद हो जाए तो उसे अल्लाह और रसूल की ओर फेर दो, यदि तुम वास्तव में अल्लाह और अंतिम दिन (किष्यामत) पर ईमान रखते हो। यही एक सीधा तरीकष है और परिणाम की दृष्टि से भी उत्तम है।’’ (पवित्र क़ुरआन , 4ः59)
      सभी मुसलमानों को पवित्र क़ुरआन और प्रामाणिक हदीसों का ही अनुकरण करना चाहिए और आपस में फूट नहीं डालनी चाहिए।
      इस्लाम में समुदायों और अलगाव की मनाही है
      पवित्र क़ुरआन का आदेश हैः
      ‘‘जिन लोगों ने अपने दीन को टुकड़े-टुकड़े कर दिया और गिरोह-गिरोह बन गए, निश्चय ही तुम्हारा उनसे कोई वास्ता नहीं, उनका मामला तो अल्लाह के सुपुर्द है और वही उनको बताएगा कि उन्होंने क्या कुछ किया है।’’ (पवित्र क़ुरआन , 6ः159)
      इस पवित्र आयत से यह स्पष्ट होता है कि अल्लाह तआला ने हमें उन लोगों से अलग रहने का आदेश दिया है जो दीन में विभाजन करते हों और समुदायों में बाँटते हों। किन्तु आज जब किसी मुसलमान से पूछा जाए कि ‘‘तुम कौन हो?’’ तो सामान्य रूप से कुछ ऐसे उत्तर मिलते हैं, ‘‘मैं सुन्नी हूँ, मैं शिया हूँ, ’’इत्यादि। कुछ लोग स्वयं को हनफ़ी, शाफ़ई, मालिकी और हम्बली भी कहते हैं, कुछ लोग कहते हैं ‘‘मैं देवबन्दी, या बरेलवी हूँ।’’
      हमारे निकट पैग़म्बर
      (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मुस्लिम थे
      ऐसे मुसलमान से कोई पूछे कि हमारे प्यारे पैग़म्बर (सल्लॉ) कौन थे? क्या वह हन्फ़ी या शाफ़ई थे। क्या मालिकी या हम्बली थे? नहीं, वह मुसलमान थे। दूसरे सभी पैग़म्बरों की तरह जिन्हें अल्लाह तआला ने उनसे पहले मार्गदर्शन हेतु भेजा था।
      पवित्र क़ुरआन की सूरह 3, आयत 25 में स्पष्ट किया गया है कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम भी मुसलमान ही थे। इसी पवित्र सूरह की 67वीं आयत में पवित्र क़ुरआन बताता है कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम कोई यहूदी या ईसाई नहीं थे बल्कि वह ‘‘मुस्लिम’’ थे।
      पवित्र क़ुरआन हमे स्वयं को ‘‘मुस्लिम’’
      कहने का आदेश देता है
      यदि कोई व्यक्ति एक मुसलमान से प्रश्न करे कि वह कौन है तो उत्तर में उसे कहना चाहिए कि वह मुसलमान है, हनफ़ी अथवा शाफ़ई नहीं। पवित्र क़ुरआन में अल्लाह तआला का फ़रमान हैः
      ‘‘और उस व्यक्ति से अच्छी बात और किसकी होगी जिसने अल्लाह की तरफ़ बुलाया और नेक अमल (सद्कर्म) किया और कहा कि मैं मुसलमान हूँ।’’ (पवित्र क़ुरआन , 41ः33)
      ज्ञातव्य है कि यहाँ पवित्र क़ुरआन कह रहा है कि ‘‘कहो, मैं उनमें से हूँ जो इस्लाम में झुकते हैं,’’ दूसरे शब्दों में ‘‘कहो, मैं एक मुसलमान हूँ।’’
      हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब ग़ैर मुस्लिम बादशाहों को इस्लाम का निमंत्रण देने के लिए पत्र लिखवाते थे तो उन पत्रों में सूरह आल इमरान की 64वीं आयत भी लिखवाते थेः

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    50. ‘‘हे नबी! कहो, हे किताब वालो, आओ एक ऐसी बात की ओर जो हमारे और तुम्हारे बीच समान है। यह कि हम अल्लाह के सिवाए किसी की बन्दगी न करें, उसके साथ किसी को शरीक न ठहराएं, और हममें से कोई अल्लाह के सिवाए किसी को अपना रब (उपास्य) न बना ले। इस दावत को स्वीकार करने से यदि वे मुँह मोड़ें तो साफ़ कह दो, कि गवाह रहो, हम तो मुस्लिम (केवल अल्लाह की बन्दगी करने वाले) हैं।’’
      इस्लाम के सभी महान उलेमा का सम्मान कीजिए
      हमें इस्लाम के समस्त उलेमा का, चारों इमामों सहित अनिवार्य रूप से सम्मान करना चाहिए। इमाम अबू हनीफ़ा (रहमतुल्लाहि अलैहि), इमाम शफ़ई (रहॉ), इमाम हम्बल (रहॉ) और ईमाम मालिक (रहॉ), ये सभी हमारे लिए समान रूप से आदर के पात्र हैं। ये सभी महान उलेमा और विद्वान थे और अल्लाह तआला उन्हें उनकी दीनी सेवाओं का महान प्रतिफल प्रदान करे (आमीन) इस बात पर कोई आपत्ति नहीं कि अगर कोई व्यक्ति इन इमामों में से किसी एक की विचारधारा से सहमत हो। किन्तु जब पूछा जाए कि तुम कौन हो? तो जवाब केवल ‘‘मैं मुसलमान हूँ’’ ही होना चाहिए।
      कुछ लोग फ़िरकषें (समुदायों) के तर्क में हुजूर (सल्ल.) की एक हदीस पेश करते हैं जो सुनन अबू दाऊद में (हदीस नॉ 4879) बयान की गई है जिसमें आप (सल्लॉ) का यह कथन बताया गया है कि ‘‘मेरी उम्मत 73 फ़िरकषें में बंट जाएगी।’’
      इस हदीस से स्पष्ट होता है कि रसूल अल्लाह (सल्लॉ) ने मुसलमानों में 73 फ़िरकष्े बनने की भाविष्यवाणी फ़रमाई थी। लेकिन आप (सल्लॉ) ने यह कदापि नहीं फ़रमाया कि मुसलमानों को फ़िरकषें में बंट जाने में संलग्न हो जाना चाहिए। पवित्र क़ुरआन हमें यह आदेश देता है कि हम फ़िरकषें में विभाजित न हों। वे लोग जो पवित्र क़ुरआन और सच्ची हदीसों की शिक्षा में विश्वास रखते हों और फ़िरकष्े और गुट न बनाएं वही सीधे रास्ते पर हैं।
      तिर्मिज़ी शरीफ़ की 171वीं हदीस के अनुसार हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि ‘‘मेरी उम्मत 73 फ़िरकषें में बंट जाएगी, और वे सब जहन्नम की आग में जलेंगे, सिवाए एक फिरके के…।’’
      सहाबा किराम (रज़ि.) ने इस पर रसूल अल्लाह (सल्लॉ) से प्रश्न किया कि वह कौन सा समूह होगा (जो जन्नत में जाएगा) तो आप (सल्लॉ) ने जवाब दिय ‘‘केवल वह जो मेरे और मेरे सहाबा का अनुकरण करेगा।’’
      पवित्र क़ुरआन की अनेक आयतों में अल्लाह और अल्लाह के रसूल के आज्ञा पालन का आदेश दिया गया है। अतः एक सच्चे मुसलमान को पवित्र क़ुरआन और हदीस शरीफ़ का ही अनुकरण करना चाहिए। वह किसी भी आलिम (धार्मिक विद्वान) के दृष्टिकोण से सहमत भी हो सकता है जब कि उसका दृष्टिकोण पवित्र क़ुरआन और हदीस शरीफ़ के अनुसार हो। यदि उस आलिम के विचार पवित्र क़ुरआन और हदीस के विपरीत हों तो उनका कोई अर्थ और महत्व नहीं, चाहे उन विचारों का प्रस्तुतकर्ता कितना ही बड़ा विद्वान क्यों न हो।
      यदि तमाम मुसलमान पवित्र क़ुरआन का अध्ययन पूरी तरह समझकर ही कर लें और मुस्तनद (प्रामाणिक) हदीसों का अनुकरण करें तो अल्लाह ने चाहा तो सभी परस्पर विरोधाभास समाप्त हो जाएंगे और एक बार फिर मुस्लिम समाज एक संयुक्त संगठित उम्मत बन जाएगा।

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    51. सभी धर्म मनुष्यों को सच्चाई की शिक्षा देते हैं तो फिर इस्लाम ही का अनुकरण क्यों किया जाए?प्रश्नः सभी धर्म अपने अनुयायियों को अच्छे कामों की शिक्षा देते हैं तो फिर किसी व्यक्ति को इस्लाम का ही अनुकरण क्यों करना चाहिए? क्या वह किसी अन्य धर्म का अनुकरण नहीं कर सकता?
      उत्तरः
      इस्लाम और अन्य धर्मों में विशेष अंतर
      यह ठीक है कि सभी धर्म मानवता को सच्चाई और सद्कर्म की शिक्षा देते हें और बुराई से रोकते हैं किन्तु इस्लाम इससे भी आगे तक जाता है। यह नेकी और सत्य की प्राप्ति और व्यक्तिगत एवं सामुहिक जीवन से बुराईयों को दूर करने की दिशा में वास्तविक मार्गदर्शक भी है। इस्लाम न केवल मानव प्रकृति को महत्व देता है वरन् मानव जगत की पेचीदगियों की ओर भी सजग रहता है। इस्लाम एक ऐसा निर्देश है जो अल्लाह तआला की ओर से आया है, यही कारण है कि इस्लाम को ‘‘दीन-ए-फ़ितरत’’ अर्थात ‘प्राकृतिक धर्म’ भी कहा जाता है।
      उदाहरण
      इस्लाम केवल चोरी-चकारी, डाकाज़नी को रोकने का ही आदेश नहीं देता बल्कि इसे समूल समाप्त करने के व्यावहारिक तरीके भी स्पष्ट करता है।
      (क) इस्लाम चोरी, डाका इत्यादि अपराध समाप्त करने के व्यावहारिक तरीके सपष्ट करता है
      सभी प्रमुख धर्मों में चोरी चकारी और लूट आदि को बुरा बताया जाता है। इस्लाम भी यही शिक्षा देता है तो फिर अन्य धर्मों और इस्लाम की शिक्षा में क्या अंतर हुआ? अंतर इस तथ्य में निहित है कि इस्लाम चोरी, डाके आदि अपराधों की केवल निन्दा करने पर ही सीमित नहीं है, वह एक ऐसा मार्ग भी प्रशस्त करता है जिस पर चलकर ऐसा समाज विकसित किया जाए, जिस में लोग ऐसे अपराध करें ही नहीं।
      (ख) इस्लाम में ज़कात का प्रावधान है
      इस्लाम ने ज़कात देने की एक विस्तृत व्यवस्था स्थापित की है। इस्लामी कानून के अनुसार प्रत्येक वह व्यक्ति जिसके पास बचत की मालियत (निसाब) अर्थात् 85 ग्राम सोना अथवा इतने मूल्य की सम्पत्ति के बराबर अथवा अधिक हो, वह साहिब-ए-निसाब है, उसे प्रतिवर्ष अपनी बचत का ढाई प्रतिशत भाग ग़रीबों को देना चाहिए। यदि संसार का प्रत्येक सम्पन्न व्यक्ति ईमानदारी से ज़कात अदा करने लगे तो संसार से दरिद्रता समाप्त हो जाएगी और कोई भी मनुष्य भूखा नहीं मरेगा।
      (ग) चोर, डकैत को हाथ काटने की सज़ा
      इस्लाम का स्पष्ट कानून है कि यदि किसी पर चोरी या डाके का अपराध सिद्ध हो तो उसके हाथ काट दिया जाएंगे। पवित्र क़ुरआन में आदेश हैः
      ‘‘और चारे, चाहे स्त्री हो अथवा पुरुष, दोनों के हाथ काट दो, यह उनकी कमाई का बदला है, और अल्लाह की तरफ़ से शिक्षाप्रद सज़ा, अल्लाह की क़ुदरत सब पर विजयी है और वह ज्ञानवान एवं दृष्टा है।’’ (पवित्र क़ुरआन , सूरह अल-मायदा, आयत 38)
      ग़ैर मुस्लिम कहते हैं ‘‘इक्कीसवीं शताब्दी में हाथ काटने का दण्ड? इस्लाम तो निर्दयता और क्रूरता का धर्म है।

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    52. (घ) परिणाम तभी मिलते हैं जब इस्लामी शरीअत लागू की जाए
      अमरीका को विश्व का सबसे उन्नत देश कहा जाता है, दुर्भाग्य से यही देश है जहाँ चोरी और डकैती जैसे अपराधों का अनुपात विश्व में सबसे अधिक है। अब ज़रा थोड़ी देर को मान लें कि अमरीका में इस्लामी शरीअत कानून लागू हो जाता है अर्थात प्रत्येक धनाढ्य व्यक्ति जो साहिब-ए-निसाब हो पाबन्दी से अपने धन की ज़कात अदा करे (चाँद के वर्ष के हिसाब से) और चोरी-डकैती का अपराध सिद्ध हो जाने के पश्चात अपराधी के हाथ काट दिये जाएं, ऐसी अवस्था में क्या अमरीका में
      अपराधों की दर बढ़ेगी या उसमें कमी आएगी या कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा? स्वाभाविक सी बात है कि अपराध दर में कमी आएगी। यह भी होगा कि ऐसे कड़े कानून के होने से वे लोग भी अपराध करने से डरेंगे जो अपराधी प्रवृति के हों।
      मैं यह सवीकार करता हूँ कि आज विश्व में चोरी-डकैती की घटनाएं इतनी अधिक होती हैं कि यदि तमाम चारों के हाथ काट दिये जाएं तो ऐसे लाखों लोग होंगे जिनके हाथ कटेंगे। परन्तु ध्यान देने योग्य यह तथ्य है कि जिस समय आप यह कानून लागू करेंगे, उसके साथ ही चोरी और डकैटी की दर में कमी आ जाएगी। ऐसे अपराध करने वाला यह कृत्य करने से पहले कई बार सोचेगा क्योंकि उसे अपने हाथ गँवा देने का भय भी होगा। केवल सज़ा की कल्पना मात्र से चोर डाकू हतोत्साहित होंगे और बहुत कम अपराधी अपराध का साहस जुटा पाएंगे। अतः केवल कुछ लोगों के हाथ काटे जाने से लाखों करोड़ो लोग चोरी-डकैती से भयमुक्त होकर शांति का जीवन जी सकेंगे। इस प्रकार सिद्ध हुआ कि इस्लामी शरीअत व्यावहारिक है और उससे सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
      उदाहरण
      इस्लाम में महिलाओं का अपमान और बलात्कार हराम है। इस्लाम में स्त्रियों के लिये हिजाब (पर्दे) का आदेश है और व्यभिचार (अवैध शारीरिक सम्बन्ध) का अपराध सिद्ध हो जाने पर व्याभिचारी के लिए मृत्युदण्ड का प्रावधान है
      (क) इस्लाम में महिलाओं के साथ ज़ोर ज़बरदस्ती और बलात्कार को रोकने का व्यावहारिक तरीकष स्पष्ट किया गया है
      सभी प्रमुख धर्मों में स्त्री के साथ बलात्कार और ज़ोर-ज़बरदस्ती को अत्यंत घिनौना अपराध माना गया है। इस्लाम में भी ऐसा ही है। तो फिर इस्लाम और अन्य धर्मों की शिक्षा में क्या अंतर है?
      यह अंतर इस यर्थाथ में निहित है कि इस्लाम केवल नारी के सम्मान की प्ररेणा भर को पर्याप्त नहीं समझता, इस्लाम ज़ोर ज़बरदस्ती और बलात्कार को अत्यंत घृणित अपराध कष्रार देकर ही संतुष्ट नहीं हो जाता बल्कि वह इसके साथ ही प्रत्यक्ष मार्गदर्शन भी उपलब्ध कराता है कि समाज से इन अपराधों को कैसे मिटाया जाए।
      (ख) पुरुषों के लिए हिजाब
      इस्लाम में हिजाब की व्यवस्था है। पवित्र क़ुरआन में पहले पुरुषों के लिए हिजाब की चर्चा की गई है उसके बाद स्त्रियों के हिजाब पर बात की गई है। पुरुषों के लिए हिजाब का निम्नलिखित आयत में आदेश दिया गया हैः
      ‘‘हे नबी! (सल्लॉ) मोमिन पुरुषों से कहो कि अपनी नज़रें बचाकर रखें और अपनी शर्मगाहों (गुप्तांगों) की हिफ़ाज़त करें। यह उनके लिए पाकीज़ा तरीकष है। जो कुछ वे करते हैं अल्लाह उस से बाख़बर रहता है। (पवित्र क़ुरआन , 24ः30)
      जिस क्षण किसी पुरुष की दृष्टि (नामहरम) स्त्री पर पड़े और कोई विकार या बुरा विचार मन में उत्पन्न हो तो उसे तुरन्त नज़र नीची कर लेनी चाहिए।

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    53. (ग) स्त्रियों के लिए हिजाब
      स्त्रियों के लिए हिजाब की चर्चा निम्नलिखित आयत में की गई है।
      ‘‘हे नबी! (सल्लॉ) मोमिन औरतों से कह दो कि अपनी नज़रें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करें, अपना बनाव सिंघार न दिखाएं, केवल उसके जो ज़ाहिर हो जाए और अपने सीनों पर अपनी ओढ़नियों का आँचल डाले रहें।’’ (पवित्र क़ुरआन , 24ः31)
      स्त्रियों के लिए हिजाब की व्याख्या यह है कि उनका शरीर पूरी तरह ढका होना चाहिए। केवल चेहरा और कलाईयों तक। हाथ वह भाग हैं जो ज़ाहिर किए जा सकते हैं फिर भी यदि कोई महिला उन्हें भी छिपाना चाहे तो वह शरीर के इन भागों को भी छिपा सकती है परन्त कुछ उलेमा-ए-दीन का आग्रह है कि चेहरा भी ढका होना चाहिए।
      (घ) छेड़छाड़ से सुरक्षा, हिजाब
      अल्लाह तआला ने हिजाब का आदेश क्यों दिया है? इसका उत्तर पवित्र क़ुरआन ने सूरह अहज़ाब की इस आयत में उपलब्ध कराया हैः
      ‘‘हे नबी! (सल्लॉ) अपनी पत्नियों और पुत्रियों और ईमान वालों की स्त्रियों से कह दो कि अपने ऊपर अपनी चादरों के पल्लू लटका लिया करें। यह उचित तरीकष है ताकि वह पहचान ली जाएं और सताई न जाएं। अल्लाह क्षमा करने वाला और दयावान है।’’ (पवित्र क़ुरआन , सूरह अहज़ाब, आयत 59)
      पवित्र क़ुरआन कहता है कि स्त्रियों को हिजाब करना इसलिए ज़रूरी है ताकि वे सम्मानपूर्वक पहचानी जा सकें और यह कि हिजाब उन्हें छेड़-छाड़ से भी बचाता है।
      (ङ) जुड़वाँ बहनों का उदाहरण
      जैसा कि हम पीछे भी बयान कर चुके हैं, मान लीजिए कि दो जुड़वाँ बहनें हैं जो समान रूप से सुन्दर भी हैं। एक दिन वे दोनों एक साथ घर से निकलती हैं। एक बहन ने इस्लामी हिजाब कर रक्खा है अर्थात उसका पूरा शरीर ढंका हुआ है। इसके विपरीत दूसरी बहन ने पश्चिमी ढंग का मिनी स्कर्ट पहना हुआ है अर्थात उसके शरीर का पर्याप्त भाग स्पष्ट दिखाई दे रहा है। गली के नुक्कड़ पर एक लफ़ंगा बैठा है जो इस प्रतीक्षा में है कि कोई लड़की वहाँ से गुज़रे अैर वह उसके साथ छेड़छाड़ और शरारत करे। सवाल यह है कि जब वे दोनों बहनें वहाँ पहुचेगी तो वह लफ़ंगा किसको पहले छेड़ेगा। इस्लामी हिजाब वाली को अथवा मिनी स्कर्ट वाली को? इस प्रकार के परिधान जो शरीर को छिपाने की अपेक्षा अधिक प्रकट करें एक प्रकार से छेड़-छाड़ का निमंत्रण देते हैं। पवित्र क़ुरआन ने बिल्कुल सही फ़रमाया है कि हिजाब स्त्री को छेड़-छाड़ से बचाता है।

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    54. (च) ज़ानी (कुकर्मी) के लिए मृत्युदण्ड
      यदि किसी (विवाहित) व्यक्ति के विरुद्ध ज़िना (अवैध शारीरिक सम्बन्ध) का अपराध सिद्ध हो जाए तो इस्लामी शरीअत के अनुसार उसके लिए मृत्युदण्ड है, आज के युग में इतनी कठोर सज़ा देने पर शायद ग़ैर मुस्लिम बुरी तरह भयभीत हो जाएं। बहुत से लोग इस्लाम पर निर्दयता और क्रूरता का आरोप लगाते हैं। मैंने सैंकड़ो ग़ैर मुस्लिम पुरुषों से एक साधारण सा प्रश्न किया। मैंने पूछा कि ख़ुदा न करे, कोई आपकी पत्नी या माँ, बहन के साथ बलात्कार करे और आप को उस अपराधी को सज़ा देने के लिए जज नियुक्त किया जाए और अपराधी आपके सामने लाया जाए तो आप उसे क्या सज़ा देंगे? उन सभी ने इस प्रश्न के उत्तर में कहा कि ‘‘हम उसे मौत की सज़ा देंगे।’’ कुछ लोग तो इससे आगे बढ़कर बोले, ‘‘हम उसको इतनी यातनाएं देंगे कि वह मर जाए।’’
      इसका मतलब यह हुआ कि यदि कोई आपकी माँ, बहन या पत्नि के साथ बलात्कार का अपराधी हो तो आप उस कुकर्मी को मार डालना चाहते हैं। परन्तु यदि किसी दूसरे की पत्नी, माँ, बहन की इज़्ज़त लूटी गई तो मौत की सज़ा क्रूर और अमानवीय हो गई। यह दोहरा मानदण्ड क्यों है?
      (छ) अमरीका में बलात्कार की दर सब देशों से अधिक है
      अब मैं एक बार फिर विश्व के सबसे अधिक आधुनिक देश अमरीका का उदाहरण देना चाहूँगा। एफ़.बी.आई की रिपोर्ट के अनुसार 1995 के दौरान अमरीका में 10,255 (एक लाख दो सौ पचपन) बलात्कार के मामले दर्ज हुए। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बलात्कार की समस्त घटनाओं में से केवल 16 प्रतिशत की ही रिपोर्ट्स दर्ज कराई गईं। अतः 1995 में अमरीका में बलात्कार की घटनाओं की सही संख्या जानने के लिए दर्ज मामलों की संख्या को 6.25 से गुणा करना होगा। इस प्रकार पता चलता है कि बलात्कार की वास्तविक संख्या 640,968 (छः लाख, चालीस हज़ार, नौ सौ अड़सठ) है।
      एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया कि अमरीका में प्रतिदिन बलात्कार की 1900 घटनाएं होती हैं। अमरीकी प्रतिरक्षा विभाग के एक उप संस्थान ‘‘नैशनल क्राइ्रम एण्ड कस्टमाईज़ेशन सर्वे, ब्यूरो आफ़ जस्टिस’’ द्वारा जारी किए गए आँकड़ों के अनुसार केवल 1996 के दौरान अमरीका में दर्ज किये गए बलात्कार के मामलों की तादाद तीन लाख, सात हज़ार थी जबकि यह संख्या वास्तविक घटनाओं की केवल 31 प्रतिशत थी। अर्थात सही संख्या जानने के लिए हमें इस तादाद को 3226 से गुणा करना होगा। गुणान फल से पता चलता है कि 1996 में अमरीका में बलात्कारों की वास्तविक संख्या 990,332 (नौ लाख, नब्बे हज़ार, तीन सौ बत्तीस) थी। अर्थात् उस वर्ष अमरीका में प्रतिदिन 2713 बलात्कार की वारदातें हुईं अर्थात् प्रति 32 सेकेण्ड एक बलात्कार की घटना घटी। कदाचित् अमरीका के बलात्कारी काफ़ी साहसी हो गए हैं। एफ.बी.आई की 1990 वाली रिपोर्ट में तो ये भी बताया गया था कि केवल 10 प्रतिशत बलात्कारी ही गिरफ़्तार हुए। यानी वास्तविक वारदातों के केवल 16 प्रतिशत अपराधी ही कानून के शिकंजे में फंसे। जिनमें से 50 प्रतिशत को मुकदमा चलाए बिना ही छोड़ दिया गया। इसका मतलब यह हुआ कि केवल 8 प्रतिशत बलात्कारियों पर मुकष्दमे चले। दूसरे शब्दों में यही बात इस प्रकार भी कह सकते हैं कि यदि अमरीका में कोई व्यक्ति 125 बार बलात्कार का अपराध करे तो संभावना यही है कि उसे केवल एक बार ही उसको सज़ा मिल पाएगी। बहुत-से अपराधी इसे एक अच्छा ‘‘जुआ’’ समझते हैं।
      यही रिपोर्ट बताती है कि मुक़दमे का सामना करने वालों में 50 प्रतिशत अपराधियों को एक वर्ष से कम कारावास की सज़ा सुनाई गई। यद्यपि अमरीकी कानून में बलात्कार के अपराध में 7 वर्ष सश्रम कारावास का प्रावधान है। यह देखा गया है कि अमरीकी जज साहबान पहली बार बलात्कार के आरोप में गिरफ़्तार लोगों के प्रति सहानुभूति की भावना रखते हैं। अतः उन्हें कम सज़ा सुनाते हैं। ज़रा सोचिए! एक अपराधी 125 बार बलात्कार का अपराध करता है और पकड़ा भी जाता है तब भी उसे 50 प्रतिशत संतोष होता है कि उसे एक वर्ष से कम की सज़ा मिलेगी।

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    55. (ज) इस्लामी शरीअत कानून लागू कर दिया जाए तो परिणाम प्राप्त
      होते हैं
      अब मान लीजिए कि अमरीका में इस्लामी शरीअत कानून लागू कर दिया जाता है। जब भी कोई पुरुष किसी नामहरम महिला पर निगाह डालता है और उसके मन में कोई बुरा विचार उत्पन्न होता है तो वह तुरन्त अपनी नज़र नीची कर लेता है। प्रत्ेयक स्त्री इस्लामी कानून के अनुसार हिजाब करती है अर्थात अपना सारा शरीर ढाँपकर रखती है। इसके बाद यदि कोई बलात्कार का अपराध करता है तो उसे मृत्यु दण्ड दिया जाए।
      प्रश्न यह है कि यह कानून अमरीका में लागू हो जाने पर बलात्कार की घटनाओं में वृद्धि होगी अथवा कमी आएगी या स्थिति जस की तस रहेगी?
      स्वाभाविक रूप से इस प्रश्न का उत्तर होगा कि इस प्रकार का कानून लागू होने से बलात्कार घटेंगे। इस प्रकार इस्लामी शरीअत के लागू होने पर तुरन्त परिणाम प्राप्त होंगे।
      मानव समाज की समस्त समस्याओं का व्यावहारिक समाधान इस्लाम में मौजूद है
      जीवन बिताने का श्रेष्ठ उपाय यही है कि इस्लामी शिक्षा का अनुपालन किया जाए क्योंकि इस्लाम केवल ईश्वरीय उपदेशों का संग्रह मात्र नहीं है वरन् यह मानव समाज की समस्त समस्याओं का सकारात्मक समाधान प्रस्तुत करता है। इस्लाम व्यक्तिगत तथा सामूहिक दोनों स्तरों पर सकारात्मक ओर व्यावहारिक मार्गदर्शन करता है। इस्लाम विश्व की श्रेष्ठतम जीवन पद्धति है क्योंकि यह एक स्वाभाविक विश्वधर्म है जो किसी विशेष जाति, रंग अथवा क्षेत्र के लोगों तक सीमित नहीं है।

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    56. इस्लाम की शिक्षा और मुसलमानों के वास्तविक आचरण में अत्यधिक अंतर है
      प्रश्नः यदि इस्लाम विश्व का श्रेष्ठ धर्म है तो फिर क्या कारण है कि बहुत से मुसलमान बेईमान और विश्वासघाती होते हैं। धोखेबाज़ी, घूसख़ोरी और नशीले पदार्थों के व्यापार जैसे घृणित कामों में लिप्त होते हैं।
      उत्तरः
      संचार माध्यमों ने इस्लाम का चेहरा बिगाड़ दिया है
      (क) निसन्देह, इस्लाम ही श्रेष्ठतम धर्म है किन्तु विश्व संचार माध्यम ;डमकपंद्ध पश्चिम के हाथ में है जो इस्लाम से भयभीत है। यह मीडिया ही है जो इस्लाम के विरुद्ध दुराग्रह पूर्ण प्रचार-प्रसार में व्यस्त रहता है। यह संचार माध्यम इस्लाम के विषय में ग़लत जानकारी फैलाते हैं। ग़लत ढंग से इस्लाम का संदर्भ देते हैं। अथवा इस्लामी दृष्टिकोण को उसके वास्तविक अर्थ से अलग करके प्रस्तुत करते हैं।
      (ख) जहाँ कहीं कोई बम विस्फोट होता है और जिन लोगों को सर्वप्रथम आरोपित किया जाता है वे मुसलमान ही होते हैं। यही बात अख़बारी सुर्ख़ियों में आ जाती है परन्तु यदि बाद में उस घटना का अपराधी कोई ग़ैर मुस्लिम सिद्ध हो जाए तो उस बात को महत्वहीन ख़बर मानकर टाल दिया जाता है।
      (ग) यदि कोई 50 वर्षीय मुसलमान पुरुष एक 15 वर्षीय युवती से उसकी सहमति से विवाह कर ले तो यह ख़बर अख़बार के पहले पृष्ठ का समाचार बन जाती है। परन्तु यदि कोई 50 वर्षिय ग़ैर मुस्लिम पुरुष छः वर्षीया बालिका से बलत्कार करता पकड़ा जाए तो उस ख़बर को अख़बार के अन्दरूनी पेजों में संक्षिप्त ख़बरों में डाल दिया जाता है। अमरीका में प्रतिदिन बलात्कार की लगभग 2,713 घटनाएं होेती हैं परन्तु यह बातें ख़बरों में इसलिए नहीं आतीं कि यह सब अमरीकी समाज का सामान्य चलन ही बन चुका है।
      प्रत्येक समाज में काली भेड़ें होती हैं
      मैं कुछ ऐसे मुसलमानों से परिचित हूँ जो बेईमान हैं, धोखेबाज़ हैं, भरोसे के योग्य नहीं हैं। परन्तु मीडिया इस प्रकार मुस्लिम समाज का चित्रण करता है जैसे केवल मुसलमान ही बुराईयों में लिप्त हैं। काली भेड़ें अर्थात् कुकर्मी प्रत्येक समाज में होते हैं। मैं ऐसे लोगों को भी जानता हूँ जो स्वयं को मुसलमान कहते हैं और खुलेआम अथवा छिपकर शराब भी पी लेते हैं।
      कुल मिलाकर मुसलमान श्रेष्ठतम हैं मुस्लिम समाज में इन काली भेड़ों के बावजूद यदि मुसलमानों का कुल मिलाकर आकलन किया जाए तो वह विश्व का सबसे अच्छा समाज सिद्ध होंगे। जैसे मुसलमान ही विश्व की सबसे बड़ी जमाअत है जो शराब से परहेज़ करते हैं। इसी प्रकार मुसलमान ही हैं जो विश्व में सर्वाधिक दान देते हैं। विश्व का कोई समाज ऐसा नहीं जो मानवीय आदर्शों (सहिष्णुता, सदाचार और नैतिकता) के संदर्भ में मुस्लिम समाज से बढ़कर कोई उदाहरण प्रस्तुत कर सकें।
      कार का फ़ैसला ड्राईवर से न कीजिए मान लीजिए कि आपने एक नए माॅडल की मर्सडीज़ कार के गुण-दोष जानने के लिए एक ऐसे व्यक्ति को थमा देते हैं जो गाड़ी ड्राइव करना नहीं जानता। ज़ाहिर है कि व्यक्ति या तो गाड़ी चला ही नहीं सकेगा या एक्सीडेंट कर देगा। प्रश्न यह उठता है कि क्या ड्राईवर की अयोग्यता में उस गाड़ी का कोई दोष है? क्या यह ठीक होगा कि ऐसी दुर्घटना की स्थिति में हम उस अनाड़ी ड्राईवर को दोष देने के बजाए यह कहने लगें कि वह गाड़ी ही ठीक नहीं है? अतः किसी कार की अच्छाईयाँ जानने के लिए किसी व्यक्ति को चाहिए कि उसके ड्राईवर को न देखे बल्कि यह जायज़ा ले कि स्वयं उस कार की बनावट और कारकर्दगी इत्यादी कैसी है। जैसे वह कितनी गति से चल सकती है। औसतन कितना ईंधन लेती है। उसमें सुरक्षा के प्रबन्ध कैसे हैं, इत्यादि।

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    57. यदि मैं केवल तर्क के रूप में यह मान भी लूँ कि सारे मुसलमान बुरे हैं तब भी इस्लाम का उसके अनुयायियों के आधार पर फ़ैसला नहीं कर सकते। यदि आप वास्तव में इस्लाम का विश्लेषण करना चाहते हैं और उसके बारे में ईमानदाराना राय बनाना चाहते हैं तो आप इस्लाम के विषय में केवल पवित्र क़ुरआन और प्रामाणिक हदीसों के आधार पर ही कोई राय स्थापित कर सकते हैं।
      इस्लाम का विश्लेषण उसके श्रेष्ठतम पैरोकार अर्थात हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के द्वारा कीजिए
      यदि आप पूर्ण रूप से जानना चाहते हैं कि कोई कार कितनी अच्छी है तो उसका सही तरीकष यह होगा कि वह कार किसी कुशल ड्राईवर के हवाले करें। इसी प्रकार इस्लाम के श्रेष्ठतम पैरोकार और इस्लाम की अच्छाईयों को जाँचने का सबसे अच्छी कसौटी केवल एक ही हस्ती है जो अल्लाह के आख़िरी पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अतिरिक्त कोई और नहीं है। मुसलमानों के अतिरिक्त ऐसे ईमानदार और निष्पक्ष इतिहासकार भी हैं जिन्होंने हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को श्रेष्ठतम महापुरुष स्वीकार किया है। ‘‘इतिहास के 100 महापुरुष’’ नामक पुस्तक के लेखक माईकल हार्ट ने अपनी पुस्तक में आप (सल्लॉ) को मानव इतिहास की महानतम विभूति मानते हुए पहले नम्बर पर दर्ज किया है। (पुस्तक अंग्रेज़ी वर्णमाला के अनुसार है परन्तु लेखक ने हुजूष्र (सल्लॉ) की महानता दर्शाने के लिए वर्णमाला के क्रम से अलग रखकर सबसे पहले बयान किया है) लेखक ने इस विषय में लिखा है कि ‘‘हज़रत मुहम्मद (सल्लॉ) का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली और महान है कि उनका स्थान शेष सभी विभूतियों से बहुत ऊँचा है इसलिए मैं वर्णमाला के क्रम को नज़रअंदाज़ करके उनकी चर्चा पहले कर रहा हूँ।’’
      इसी प्रकार अनेक ग़ैर मुस्लिम इतिहासकारों ने हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की प्रशंसा की है इन में थामस कारलायल और लामर्टिन इत्यादि के नाम शामिल हैं।

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    58. प्रश्नः मुसलमान ग़ैर मुस्लिमों का अपमान करते हुए उन्हें ‘‘काफ़िर’’ क्यों कहते हैं?उत्तरः शब्द ‘‘काफ़िर’’ वास्तव में अरबी शब्द ‘‘कुफ्ऱ’’ से बना है। इसका अर्थ है ‘‘छिपाना, नकारना या रद्द करना’’। इस्लामी शब्दावली में ‘‘काफ़िर’’ से आश्य ऐसे व्यक्ति से है जो इस्लाम की सत्यता को छिपाए (अर्थात लोगों को न बताए) या फिर इस्लाम की सच्चाई से इंकार करे। ऐसा कोई व्यक्ति जो इस्लाम को नकारता हो उसे उर्दू में ग़ैर मुस्लिम और अंग्रेज़ी में Non-Muslim कहते हैं।
      यदि कोई ग़ैर-मुस्लिम स्वयं को ग़ैर मुस्लिम या काफ़िर कहलाना पसन्द नहीं करता जो वास्तव में एक ही बात है तो उसके अपमान के आभास का कारण इस्लाम के विषय में ग़लतफ़हमी या अज्ञानता है। उसे इस्लामी शब्दावली को समझने के लिए सही साधनों तक पहुँचना चाहिए। उसके पश्चात न केवल अपमान का आभास समाप्त हो जाएगा बल्कि वह इस्लाम के दृष्टिकोण को भी सही तौर पर समझ जाएगा।

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    59. Allah ne daat aise diye ki jiv aur wanspati dono ko khaya ja sake but what about penish?
      Use pe kya vichar h.
      By the way tumhe kaise pata ki allah k hi vichar h ye sab??
      Tumhe kaise pata kuran me likhi bate satay h?
      Kuran me likhi bato ko varify krne k liye allah to kabhi dharti pe aua ni.
      Aur tum log kuch v likh k uske naam pe Dharm ki rotiya sek rhe ho.
      Sharm ni ati kuch v ullul jullul likhte jate ho.

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  37. भारतीय संविधान और कानूनों की रोशनी में 'हिंदू' शब्द के आशय और परिभाषा के बारे में केंद्र सरकार सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी उपलब्ध नहीं करा सकी है।

    मध्य प्रदेश के नीमच के रहने वाले सोशल वर्कर चंद्रशेखर गौर ने बताया कि उन्होंने आरटीआई के तहत अर्जी दायर कर पूछा था कि भारतीय संविधान और कानूनों के अनुसार 'हिंदू' शब्द का मतलब और परिभाषा क्या है।

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  38. Very nice post by mr.ajit pratap Singh

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  40. इस्लाम को आंतकवादी बोलते हो। जापान मे तो अमेरिका ने परमाणु बम गिराया लाखो बेगुनाह मारे गये तो क्या अमेरिका आंतकवादी नही है। प्रथम विश्व युध्द मे करोडो लोग मारे गये इनको मारने मे भी कोई मुस्लिम नही था। तो क्या अब भी मुस्लिम आंतकवादी है। दूसरे विश्व युध्द मे भी लाखो करोडो निर्दोषो की जान गयी इनको मारने मे भी कोई मुस्लिम नही था। तो क्या मुस्लिम अब भी आंतकवादी हुए अगर नही तो फिर तुम इस्लाम को आंतकवादी बोलते कैसे हो। बेशक इस्लाम शान्ति का मज़हब है।और हाॅ कुछ हदीस ज़ईफ होती है।ज़ईफ हदीस उनको कहते है जो ईसाइ और यहूदियो ने गढी है। जैसे मुहम्मद साहब ने 9 साल की लडकी से निकाह किया ये ज़ईफ हदीस है। आयशा की उम्र 19 साल थी। ये उलमाओ ने साबित कर दिया है। क्योकि आयशा की बडी बहन आसमा आयशा से 10 साल बडी थी और आसमा का इंतकाल 100 वर्ष की आयु मे 73 हिज़री को हुआ। 100 मे से 73 घटाओ तो 27 साल हुए।आसमा से आयशा 10 साल छोटी थी तो 27-10=17 साल की हुई आयशा और आप सल्ललाहु अलैही वसल्लम ने आयशा से 2 हिज़री को निकाह किया।अब 17+2=19 साल हुए। इस तरह शादी के वक्त आयशा की उम्र 19 आप सल्ललाहु अलैही वसल्लम की 40 साल थी इन हिन्दुओ का इतिहास द्रोपती ने 5 पांडवो से शादी की क्या ये गलत नही है हम मुसलमान तो 11 औरते से शादी कर सकते है ऐसी औरते जो विधवा हो बेसहारा हो। लेकिन क्या द्रोपती सेक्स की भूखी थी। और शिव की पत्नी पार्वती ने एक लडके को जन्म दिया शिव की गैरमूजदगी मे। पार्वती ने फिर किसकी साथ सेक्स किया ।इसलिए शिव ने उस लडके की गर्दन काट दी क्या भगवान हत्या करता है ।श्री कृष्ण गोपियो नहाते हुए क्यो देखता था और उनके कपडे चुराता था जबकि कृष्ण तो भगवान था क्या भगवान ऐसा गंदा काम कर सकता है । महाभारत मे लिखा है कृष्ण की 16108 बीविया थी तो फिर हम मुस्लिमो एक से अधिक शादी करने पर बुरा कहा जाता । महाभारत युध्द मे जब अर्जुन हथियार डाल देता तो क्यो कृष्ण ये कहते है ऐ अर्जुन क्या तुम नपुंसक हो गये हो लडो अगर तुम लडते लडते मरे तो स्वर्ग को जाओगे और अगर जीत गये तो दुनिया का सुख मिलेगा। तो फिर हम मुस्लिमो को क्यो बुरा कहा जाता है हम जिहाद बुराई के खिलाफ लडते है अत्यचारियो और आक्रमणकारियो के विरूध वो अलग बात है कुछ मुस्लिम जिहाद के नाम पर बेगुनाहो को मारते है और जो ऐसा करते है वे मुस्लिम नही हैक्योकी आल्लाह पाक कुरान मे कहते है एक बेगुनाह का कत्ल सारी इंसानयत का कत्ल है। और सीता की बात करू तो राम तो भगवान थे क्या उनमे इतनी भी शक्ति नही कि वे सीता के अपहरण को रोक सके जब राम भगवान थे तो रावण की नाभि मे अमृत है ये उनको पहले से ही क्यो नही पता था रावण के भाई ने बताया तब पता चला। क्या तुम्हारे भगवान राम को कुछ पता ही नही कैसा भगवान है ये।और सीता को घर से बाहर निकाल दिया गया था तो लव कुश कहा से आये किससे सेक्स किया सीता ने बताओ।और इन्द्र देवता ने साधु का वेश धारण कर अपनी पुत्रवधु का बलात्कार किया फिर भी आप देवता क्यो मानते हो। खुजराहो के मन्दिर मे सेक्सी मानव मूर्तिया है क्या मन्दिर मे सेक्स की शिक्षा दी जाती है मन्दिरो मे नाच गाना डीजे आम है क्या ईश्वर की इबादत की जगह गाने हराम नही है ।राम ने हिरण का शिकार क्यो किया बहुत से हिन्दु कहते है हिरण मे राक्षस था तो क्या आपके राम भगवान मे हिरण और राक्षस को अलग करने की क्षमता नही थी ये कैसा भगवान है।हमे कहते हो जीव हत्या पाप है मै भी मानता हू कुत्ते के बेवजह मारना पाप है ।कीडी मकोडो को मारना पाप है पक्षियो को मारना पाप है। लेकिन ऐसे जानवर जिनका कुरान मे खाना का जिक्र है खा सकते है क्योकि मुर्गे कटडे बकरे नही खाऐगे तो इनकी जनसख्या इतनी हो जायेगी बाढ आ जायेगी इन जानवरो की। सारा जंगल का चारा ये खा जाया करेगे फिर इन्सान के लिए क्या बचेगा। हर घर मे कटडे बकरे होगे। बताओ अगर हर घर मे भैंसे मुर्गे होगे तो दुनिया कैसे चल पाऐगी। आए दिन सिर्फ हिन्दुस्तान मे लाखो मुर्गे और हजारो कटडे काटे जाते है । 70% लोग मांस खाकर पेट भरते है । सब को शाकाहारी भोजन दिया जाये तो महॅगाई कितनी हो जाएगी। समुद्री तट पर 90% लोग मछली खाकर पेट भरते है। समझ मे आया कुछ शाकाहारी भोजन खाने वालो मांस को गलत कहने वाले हिन्दुओ अक्ल का इस्तमाल करो

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  41. हिन्दु धर्म मे शिव भगवान ही नसेडी है तो उसके कावडिया भी नसेडी। जितने त्योहार है हिन्दुओ के सब बकवास।होली को लेलो मानते है भाईचारे का त्योहार होली पर शराब पिलाकर एक दुसरे से दुश्मनी निकाली जाती है।होली से अगले दिन अखबार कम से कम 100 लोगो के मरने की पुष्टि करता है ।अब दीपावली को देखलो कितना प्रदुषण बुड्डे बीमार बुजुर्गो की मोत होती है। पटाखो के प्रदुषण से नयी नयी बीमारिया ऊतपन होती है। गणेशचतुर्थी के दिन पलास्टर ऑफ पेरिस नामक जहरीले मिट्टी से बनी करोडो मूर्तिया गंगा नदियो मे बह दी जाती है। पानी दूषित हो जाता है साथ ही साथ करोडो मछलिया मरती है तब कहा चली जाती है इनकी अक्ल जीव हत्या तो पाप हैहम मुस्लिमो को बोलते है चचेरी मुमेरी फुफेरी मुसेरी बहन से शादी कर लेते हो। इन चूतियाओ से पूछो बहन की परिभाषा क्या होती है मै बताता हू साइंस के अनुसार एक योनि से निकले इन्सान ही भाई बहन हो सकते है और कोई नही। तुम भाई बहन के चक्कर मे रह जाओ इसलिए हिन्दु लडको की शादिया भी नही होती अक्सर । हमारे बनत नाम के गाव मे 300 जाट के लडके रण्डवे है शादी नही होती फिर उनका सेक्स का मन करता है वे फिर लडकियो महिलाओ की साथ बलात्कार करते है ये है हिन्दु धर्म । और सबूत हिन्दुस्तान मे अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा रेप होते है । किसी मुस्लिम मुल्क का नाम दिखा दो या बता दो बता ही नही सकते। तुम्हारे हिन्दुओ लडकियो को कपडे पहनने की तमीज नही फिटिंग के कपडे छोटे कपडे जीन्स टीशर्ट आदि पहननती है ।भाई बाप के सामने भी शर्म नही आती तुमको ऐसे कपडो मे थू ऐसे कपडो मे को देखकर तो सभी इन्सानो की ऑटोमेटिकली नीयत खराब हो जाती है इसलिए हिन्दु और अंग्रेजी लडकियो की साथ बलात्कार होते हे इसके लिए ये लडकिया खुद जिम्मेदार है।।और हिन्दु लडकियो के हाथ मे सरे आम इंटरनेट वाला मोबाइल उसमे इतनी गंदी चीजे थू ।और लडकियो को पढाते इतने ज्यादा है जो उसकी शादी भी ना हो पढी लिखी को स्वीकार कौन करता है जल्दी से पढने का तो नाम है घरवालो के पैसे बरबाद करती है और लडको की साथ अय्याशी करती है उन बेचारो का टाइम वेस्ट। इन चूतियाओ से पूछो लडकि इतना ज्यादा पढकर क्या करेगी।मर्द उनके जनखे हो जो औरत कमाऐगी मर्द बैठकर खाऐगे।सही कहू तो मर्दो की नौकरिया खराब करती है जहा मर्द 20000 हजार रूपये महीने की माॅग करे वहा लडकिया 2000 मे ही तैय्यार हो जाती है।बहुत हिन्दु गर्व के साथ कहते है कि हमारी गीता मे लिखा है कि ईश्वर कण कण मे विध्मान है ।सब चीजे मे है इसलिए हम पत्थरो को पूजते है और भी बहुत सारी चीजो को पूजते है etc. लेकिन मै कहूगा इनकी ये सोच बिल्कुल गलत है क्योकि अगर कण कण मे भगवान है तो क्या गू गोबर मे भी है आपका भगवान। जबकि भगवान या खुदा तो पाक साफ है तो कण कण मे कहा से विध्मान हुआ भगवान। इसलिए मै आपसे कहना चाहता हू भगवान हर चीज मै नही है बल्कि हर चीज उसकी है और वो एक है इसलिए पूजा पाठ मूर्ति चित्र सब गलत है कुरान अल्लाह की किताब है इसके बताये गये रास्ते पर चलो। सबूत भी है क्योकि कुरान की आयते पढकर हम भूत प्रेत बुरी आत्माओ राक्षसो से छुटकारा पाते है।हमारी मस्जिद मे बहुत हिन्दु आते है ईलाज करवाने के लिए । और मौलवी कुरान की आयते पढकर ही सभी को ठीक करते है । इसलिए कुरान अल्लाह की किताब है । जबकि आप वेदो मंत्रो से दसरो को नुकसान पहुचा सकते है अच्छाई नही कर सकते किसी की और सभी भगत पंडित जादू टोना टोटके के अलावा करते ही क्या है। जबकि कुरान से अच्छाई के अलावा आप किसी के साथ बुरा कर ही नही सकते। इसलिए गैर मुस्लिमो कुरान पर ईमान लाओ।

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  42. आप ने जो लिखा हे ऊसमे जयादा तर गलत लिखा हे रब ओर रब के हबीब के बारे मे गलत आप ने लिखा हे ओर जो रब ओर रब के हबीब के लिए गलत करता हे उस के साथ बहुत बुरा होता हे

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  43. आप ने जो लिखा हे ऊसमे जयादा तर गलत लिखा हे रब ओर रब के हबीब के बारे मे गलत आप ने लिखा हे ओर जो रब ओर रब के हबीब के लिए गलत करता हे उस के साथ बहुत बुरा होता हे

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  44. बाकी जिनदा रेहते हुए माफी मानग लि तोब कर ली तो रबुल आलमीन ओर रबुल आलमीन के हबीब माफ कर दिया तो बहुत अचछा हे अगर माफ नही किया तो बहुत बहुत बुरा हे

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  45. Tu ne jo bhi likha hai wo tum hari dimag ki upaj hai ya kisi na samaj vale ne btaya hai tu jo likh hai us per tuje bhi bharosa nahi hai lekin muje pura pura brosa hai ki mera rab saha hai mera allah ka habib saha hai alah ke habib ne jo bhi btaya hai sab sacha hai allah ka kuran sacha hai tu bata raha hai ki chand ko pujte hai allah ke habib kehte hai ki chan or suraj ko dojak me dal diya jai ga aur dogki chand aur suraj ko dekeh gai or afsos kafir or munafic kare gai musalman nahi pujte chand ko pehle ke waqt me din ka pta lgane ke liye chand ko dhek te aur tu bta raha hai ki chan ko pujte te tum ne gal kha is draha teri dimag se jo bhi bat nikli hai sab galt hai allha wo jise guru nanak baba ne ek rab khaha tha or sai baba ne alaha ko ek rab kha tha isha masiha alehislam ek rab kha ta mustfa allah ke habib ne ek rab kha tha aur tum allah ko kiya bta rahie ho or allah ke rasol ke bare me galt galt bo te ho aur batmigi kate ho or
    Kaaba mein laga HAJR E ASWAD (kaala patthar) ko tum shiv ki muti ka tukda kehte ho ye galt hai Hazrat Jibraail Alayhissalam Ise Jabl e Abu Qubais Se Laaye The . Toofan E Nooh Ke Waqt Allah Ke Huqm Se Ye Pathhar Jabl e Abu Qubais Par Mehfooz Kar Diya Tha.Phir Jab Hazrat Ibrahim Alayhissalam Ne Toofan Khatam Hone Ke Baad Kaa’aba Sharif Dobara Banana Shuru Farmaya Or Deeware Unchi Ho Gayi Tou Aapne Apne Bete Hazarat Ismail alyhissalam. Se Faramaya – Ek Pathhar Laao Taaki Tawaaf Shuru Karne Ka Ek Nishaan Bana Diya Jaaye .Usi Waqt Hazrat Jibaarail Alayhissalam Ne Ye Mubarak Pathhar Laakar Aapki Khidmat Me Paish Kiya . Aapne Use Deewar Me Feet Kar Diya .Ye Wo HAJR E ASWAD Hai Jo Tarah-Tarah Ke Halaaton Ka Saamna Karte HUve Aaj Bhi Apni Jagah Par Qaayam Hai .
    Elan e Nubuvat Se Pehle Ek Baar Kaa’ba Sharif Ki Taamir Ho Rahi Thi .
    Makkah Ke Bade Bade Kabile Wale IsKi Taa’amir Me Shamil The. Deewar Unchi Ho Gayi Tou HAJR E ASWAD Feet Karne Ka Number Aaya. Har Kabile Ka Sardar Yahi Chahta Tha Ke Ye Ejaj Hame Mile . Baat Badh Gayi, Jung Ki Noubat Aa Gayi . Kaafi Behas Ke Baad Yeh Tay Paaya KI Kal subah Sabse Pehle Jo Haram Sharif Me Aayega Wohi HAJR E ASWAD Deewar Me Lagayega. Allah ki marzi se Sabse Pehle Aamina Ke Laal Hazrat Muhammad Mustafa Sallalaho Ta’ala Alayhi Wasallam Haram Sharif Me subah sabse pehle Pahunche. Aapne yaha hikmat se kaam lete hue Sab Ko Jama Farmaya . HAJR E ASWAD Ko Ek Chadar Me Rakhwa Kar Farmaya – Sabhi Kabile Ke Saradar ek-ek kona pakad le aur isko Upar Uthaye .Chunanhe Jab Pathhar Upar Pahuncha Tou Aapne Chadar Me se Isko Uthakar apne mubarak haatho ise Deewar Me Laga Diya .
    Hazarat Abdullah Bin Umar (radiallahu anhu) Farmate hai – Allah Ke Rasool (sallalahu alyhiwasallam) Ne faramaya – HAJR E ASWAD Or
    Makaam e Ibaahim Yeh Dono Pathhar Jannat Ke Yakoor (keemti Pathhar) Hai. Allah Ne Agar Inka Noor Bujhaya Na Hota Tou Poorab Pashchim Sab Jagmaga Uth te .
    Taarikh Se Ye BHi Pata Chalata Hai Ki Hazrat Ibrahim Alaihissalam Ne HAJR E ASWAD Deewar Me Lagaya Tou Aas Paas Ka Elaaka Noor Se Jagamaga Utha.Jaha Tak Uski Roshni Pahunchi , Allah Ne Us Elaake Ko
    Haram (Masjide haram) Qarar De diya .
    HAJR E ASWAD ki Khasiyat Ye Hai Ke Aag Paani Ka Is Par Koi Asar Nahi
    Hota . Ye Paani Me Doobta Nahi Balki Lakadi Ki Tarah Tairta Rehta
    Hai .
    Ye Bada Mubarak Pathhar Hai Ise Chuoomna Sunnat Hai .Hajj Or
    Umra Ke Douramn Mouka Mil Jaaye Tou Ise Choomne Ki Koshish
    Jarur Karni Chahiye. lekin Aurat tab hi jaaye jab bheed na ho, jab bheed ho to door se hi ishare se bosa de le. Hazarat Umar radiallahu anhu Jab Ise Bousa Dete Tou Farmate – HAJR E ASWAD ! Tu Ek
    Pathhar Hai . Koi Nafa Nuksaan Pahunchane Ki Salahiyat Nahi Rakhta . Main Tujhe Isliye Bousa De Raha HU Kyunke Maine Apne Pyaare NAbi Ko Bousa Dete HUve Dekha.
    Time ke saath-saath yeh patthar toot kar kuch tukdo mein bat gaya hai, lekin isko wapas diwar par chipka diya gaya hai. Iski safety ke liye chaandi ka cover chaday gaya hai. Iske saamne khade hokar Allah se jo jaiz dua mangoge, Allah zaroor puri karega. InshaAllah

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  47. Mera malik Allah be intiha MOHhabt Allah Ke Habbib se ye hai kaba ke hagre aswad ke bare me is hi trha or jo tum hare dimag ki upaj hai wo bhi galt hai tum or tum ne jo web side bnai hai ose band kar do isse tumko koi fayda nahi hoga blki tum bahut bade nuksan me ro ye sare bure kam bad kar do nahi band karte to bahut bade nuksan par ho बाकी जिनदा रेहते हुए माफी मानग लि तोब कर ली तो रबुल आलमीन ओर रबुल आलमीन के हबीब माफ कर दिया तो बहुत अचछा हे अगर माफ नही किया तो बहुत बहुत बुरा हे mafi magte raho or kisi ilam vale ke pas gao vo tume shi sasta btade

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  50. Sabhi dharamo mai sabhi khush hai.ab page ki socho insaniyat sthapit Kaise sthapit hogi.

    Sabhi Hindu. muslim. Isayi.


    Insaniyat se bada dharam konsa hai.

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  51. जै हिन्द जै हिन्दू

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  52. hindu agar tomko kuran aur islam dhrm ke bare me likhna nhi aata to tag mat adao kro himmat hai to samne kho muslmano ke jo kuch khna ho to fir ham yume jbab de

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  54. भैया जी आपलोग जो सोचें जो समझे ये आपलोगों की सोच है। इस्लाम हमेशा से है और हमेशा रहेगा । रही बात मानने या ना मानने की इससे हमें कुछ लेना देना नही ये आपकी मर्जी इस्लाम के बारे में आप के दिल में जो गलत फहमी है।उसे सही करले और इस्लाम की अच्छी तरीके से स्टडी करले ताकि बाद में ये ना हो के आप ये न कहें कि किसी ने हमे बताया नही अधुरा शिझा लेने से कोई इंसान बड़ा नही बन जाता है।जो अधूरा है उसे किसी चीज़ का ज्ञान नही होता है। हमारे ज़बान में एक कहावत है।
    हग का तीन पात ये वही कहावत है

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  55. Koi bhi dhrm mahan ya bura hota hai, bure hote hai insan. Insan apne fayde ke liye dhrm ko grnthon ko kuran ko tod marod kar pesh karte hai aur uska reference dekar dange fasad karte hai, ye baat saty hai ki islam duniya ka sabse aggressive dharm hai par fir bhi uske 80% manane wale log shanti pasand karte hai.

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  56. Me bhi soch raha hu ek kitab likh kar naya majahab shuru karu
    Aur likhu ki wo ek hai par kam akal hai

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  57. महान लेखक से मेरा एक ही आग्रह है आप बहुत ज्ञानी है बहुत ज्ञान आप ने जमा कर के दिया क्या आप कुरआन जो कि अरबी मे है उसका अर्थ हिन्दी मे बता सकते है।

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  58. Bhai Abhi apki jankari adhuri h.kyunki ISLAM ko jannewala ISLAM m ghuskar for uski bapsi bhi.agar ISLAM jhuta or asatya dharm hota to ask puri duniya m n felta. Jabki ISLAM sabse baad ka dharm h aisa apne bataya h.aaj ISLAM Santana dharm se kahi aage nikal chuka h.jbki sanatan kewal bharat tak simit reh gaya. Sachai hamesha badti h.insha Allah 2070 tak ISLAM duniya ka sabse bada dharm hoga. Jaisa ki survey bata rahe h

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  59. Bhai Abhi apki jankari adhuri h.kyunki ISLAM ko jannewala ISLAM m ghuskar for uski bapsi bhi.agar ISLAM jhuta or asatya dharm hota to ask puri duniya m n felta. Jabki ISLAM sabse baad ka dharm h aisa apne bataya h.aaj ISLAM Santana dharm se kahi aage nikal chuka h.jbki sanatan kewal bharat tak simit reh gaya. Sachai hamesha badti h.insha Allah 2070 tak ISLAM duniya ka sabse bada dharm hoga. Jaisa ki survey bata rahe h

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    1. Are bhai tujhe islaam ka itihaas pataa hai.. logo ko maarkar daraakar atankvaad failaakar kattar aad failaana jabardasti dharm parivartan marwana yahi itihaas hai islam ka. Aaj islaam ki koi respect nhi.

      Delete
  60. लेखक महोदय का उद्देश्य अपने धर्म को श्रेष्ठतम सिद्ध करने का है, बेशक आप अपने धर्म को श्रेष्ट्र बताइये, साबित करिये , किन्तु दूसरे धर्म बुरा कहने का हक़ किसने दे दिया आपको?

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    1. भाई श्रेष्ठ मानव धर्म है , लेकिन ये किन विचारों से इसको समाज मे सुचारू रूप से लाया जा सकता है । ये अपने संस्कारों से ही प्राप्त होती है । बात जब संस्कार पर आती है तो अपने परिवार पर आती है । अब तथ्य ये आता है कि परिवार की उत्पत्ति किस उदेश्य के लिये किया गया ।
      यही बात धर्म पर भी लागू है ,
      अब प्रश्न अगर इस्लाम शांति का संदेश देता है तो फिर इसके मानने वालों के द्वारा उत्पन्न हालात द्वारा जब इस पर ऊंगली उठती है तो ये उग्र क्यों होता है ।
      धन्यवाद

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  61. इस्लाम में दुसरे मज़हब को बुरा या गलत कहना मना है, हम लोग राम को भी कातिल नहीं बोलते, जब कि उन्होंने अनेकों निर्दोषों का क़त्ल किया, एक शूद्र को मात्र इसलिए कत्ल कर दिए कि वह शूद्र होकर उपासना करने के जुर्रत कर दिया था, और आप कितनी आसानी पैगम्बर को लुटेरा शब्द से सम्बोधित कर देते हैं और शर्म भी नहीं आती,

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    1. कब फैज़ान किस बेगुनाह की हत्या की राम जी ने

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  62. Hindu koi dharm nhi hai ved se is dharm ka nam sanatan hai agar ap ne shi dharm ki apni pustak padhi hogi to kahi bhi hindu word ap ko nhi mila hoga or shi se अगर आपने वेद पढा होगा तो उसमे पाइएगा उस परमातमा का कोइ चित्र नही है ना ही मुर्ती है यही कारण है की स्वामि दयान्ननद सरसवती ने वैदिक समाज बनाया और वेद पढने को कहा और इस समाज यानी आर्य समाज मे मुर्ति को गलत करार दिया गया है और इसलाम का पहला कलमा ही सिद्ध करता है की इस्लाम क्या है ला इ ला ह इल्लललाहो जिसका माने है नही है सिवाए एक परमातमा के।।।।।।

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  63. एक भीड़ उसको खोजने
    में लगी है।
    जिसके बारे में बात तो सभी
    करते हैं।
    पर " पता" कोई नही बताता।
    कोई उसे भगवान
    तो कोई उसे खुदाए कहता है।

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  64. एक आम पर भ्रमित जन धारणा है कि इस्लाम धर्म की उत्पत्ति केवल डेढ़ सदी पूर्व अरब के नगर मक्का में ईशदूत हजरत मुहम्मद (स. अ. व.) के द्वारा हुई तथा ईशदूत हज़रत मुहम्मद (स. अ. व.) को ही इस्लाम धर्म के जनक के रूप में जाना जाता है। पर सच्चाई इस के बिलकुल विपरीत है

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  65. BAHUT HIN ACCHI JANKARI HAI BHAIJI
    BAHUT MEHNAT LAGA HOGA JANKARI EKTAHA KARNE MEN
    I LIKED

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  66. कोई भी धर्म धरती पर ऐसा नही जिस पर कालिख नही। अभिमान ठीक नही। दम्भ ठीक नही। किसी धर्म के अनुयायियों के आचरण से धर्म की अच्छाइयों और खराबियों का पता चलता है। विनम्रता इतनी हो कि हम अपने धर्म की कमियों को स्वीकार करे और दूसरे धर्म पर आरोप न लगाये। तर्क के द्वारा ही आस्था को विकसित करे।सभी धर्मो का मानवीय और नैतिक स्वरूप ही विश्व धर्म हो सकता है। सभी धर्मो में कपोलकल्पित और मिथक तथ्य भरे पड़े है उसको जबरदस्ती विज्ञान से न जोड़े। याद रखे इस संसार को विज्ञान ने जोड़ कर रखा है, धर्मो ने नही। समय परिवर्तनशील है इसलिए विचार और क्रिया में आधुनिकता को स्थान दे। आज की हर समस्या का इलाज किताबे नही हो सकती और न ही हजारो साल पुरानी कोई कथा। सबके सुख की कामना ही विश्व शान्ति का स्थाई आधार है।

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  67. सिंधु नदी के पार रहने वाले सभी हिन्दू माने गए है। सनातन धर्म से ही सभी धर्मो की उत्पत्ति हुई है। " इश्" नामक उपनिषद के सिद्धांतो को अपनाएं के बाद jesus इसा बने। और कृष्ण के सिद्धांतो को अपनाएं के बाद Christ. Hindu koi dharm nhi balki ek bhogolik abhivyakti hai. Hindu musalmaan to britishers ke aane ke baad se shuru hua.. sindhu ke paar rahne wale sabhi hindu maane Gye hai..... Hindu muslim sikh boudhdh jain parsi sabhi hindu hai.

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  68. Bhai logo prakriti ke bare m socho hindoo ho to pakhand Kam karo tatha Muslim ho to bachhe Kam paid karo Kyu ki yadi environment balance gadvada gaya to sabki dharm karam niyam kanoon ki aisi ki taisi ho jaygi or sabhi apna apna bhutta sekne ki sochenge isliy environment ke support m socho solution Kam kese ho tatha aadmi tatha jaivmandal bacha rah samjhe Bhai logo


    In the end. ...


    Meri aapse yahi gujaris h aap or hamko ushi dharm ko support Karna h jisme save environment ke bare m rasta diya ho



    Thanks to all earth nivashi. or ha aliens se saabdhan rahna Kyu ki


    Uper uper Bali shakti par viavas karne balo ek din uper bale aliens tumhari sari oopari nikal de.



    Shasiriya Kal
    Salambalikum miya
    Hari on
    Oh lord


    And again in the end kisi ko bura lage to mujhe comment m batana sathio👈🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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    1. Bro.. Who is the best human in the world check fast page pe mil jaye ga........😍😍😍😍
      I proud.I am muslim😍😍😍😍😍

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  69. बहुत खूब लिखा है आप ने. बहुत ही अधिक रिसर्च करके लिखा है.
    धन्यवाद.

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  70. बेबकूफ आधी अधूरी जानकारी के किसी भी धर्म के बारे में कुछ भी कहना ठीक नहीं होता है (कौवे के कोसने से ढोर नहीं मरते)

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  71. Bewaquaf;
    Koi baat pura gyan le kar tab hi bola karo.
    Gadha.

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    1. 😀😁😄🤣 इतना आलिम हो तो क्यों‌ दुसरों को गाली दें रहे हो ?!??!!?!!🤔

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  72. Aap wahi kaam kar rahe jo Apne Apne Article me likhi hai ki... Musalman Hamari Mahabharat ko etc.. Galt sabit Krte h .. Improve your self baad me Gyan batna

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  73. muslim kisi bhi dherm ya sahitya ka upman nhi kertey he ...arab me Abraham k waqt atyadhik murti poojek they but sabhi murti poojek hindu nhi ho saktey wo aleg hi ek kom thi jo murtio ko pooja kerti thi wo hinduo k kisi bhi devi ya devta yani shiv ya durga kisi ki bhi pooja nhi kertey they but ye islam ki taqat hi he ki 1440 salo me muslim kitne he ye khoobsurti he islam ki kuki wo sirf 1440 sal pehley hi reorganised kia tha mohammad saheb ne...baki tumhari jankari 90% kalpmik hi he , bare bare kindoms upne sikkey chalatey the , scrip likhwaya kertey the ye sab proof tha ki kabhi koi strong kindom fla jageh tha , rahi bat mahabharat n ramayan ki to intna fir kahunga ki muslimo ko koi metleb hi nhi he ki ye sab jhoota karar deker hindo ki bhawnao ko thhess pahuchay , aap yakin kerey muslim aisa kertey bhi nhi he kuki kisi dherm ki insult jo karega yedi muslim he to bahut hi tuchcha hoga waise hoga nhi ,ya fir likha hua he too to fake ID ho sakti he . jis tereh kaba cosmos me famous he waise hi ayodhya ki bhi hona chahiye tha lekin aap bura na maniye Hwensang ya Fiyaan jaise videsio ne bhi ya aur aur kisi ne bhi kabhi bhi kahin bhi itihaas me ayodhya k hinduo ka kaba hone ka koi perman nhi milta ye kahin likha hua he to plz mujhey jarur bataye me bhi padhhna chahunga.. ek bat aur hindu dherm ki koi bat tumhe pta na ho to mujhse poochh lena Ajitji.

    a lot of thanks for telling this

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  74. हिंदु क्या‌ है दोस्तों जाति या धर्म ?!!?अगर देश का नाम नेपाल है तो वहां के रहनेवालों लोगों को नेपाली कहते हैं किसी धर्म को नहीं , वैसे हि पाकिस्तान=पाकिस्तानी , भूटान =भूटानी । तो हमारा देश को हिंदुस्तान कहा जाता तो यहां कि लोगों हिंदु कहा जाता है ये कोई धर्म नहीं है ।जो देव देवी , भगवान मानते हैं उसे सनातन धर्म अनुसरण कारी कहा जाता , हिंदु नहीं , कोई ग़लत जानकारी मत देना ।धन्यवाद।

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  75. Ap jahase Bhi ho apne dil jitleya

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  76. Aap ka gyan Pura nhi hai, simit hai. krupya Pura gyan prapt kijiye,meri aap se koi dushmani nhi hai,take this message positively and just try to gain more 'complete' knowledge.

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  77. Tum log quraan or hadees nahi padi h kyo ki aap log pade h to batao aasman jameen chand tare suraj jo khuch duniya me h wo or jo aakhirat yani marne ke baad duniya h wo kodne banai batao tum ko kisne banaya agar bata diye to fir aage baat karennge

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  78. Also Read गायों को हिंदू धर्म (सनातन धर्म) में पवित्र पशु क्यों माना जाता है? here https://hi.letsdiskuss.com/why-cows-considered-sacred-animals-in-hinduism-sanatan-dharma

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  79. Kalpanik baikha mat Koro , Jo khud banake pojte hai wow hame mat bole ,tomhara Grant Mai bhi ek hi sristy korta ko manne ko jisko koibastab akho se dekhai n de wo , ekkham braham devity naste nehna naste kinchan,
    Jo bastab chize ko poste hai wow ondoker Mai jayega ye Saab bhi likha hai,Kalki obter wow bhi nobi mohamad hai Maa ka nam sumati maine Shanti,Amena ka nam Maine Shanti =Sumati=Amena,Pitri ka Nam bisnowas mane Sristy kortar das, Abdullah ka bhi ek hi Arth hai Date bhi milta hai janma ka ,uska bhi sFed gura tha sathi ka bhi milta hai ,shambola chahar mane shantiporna Stan Jo Makkah nogori ko bolta hai,sab ko nobi ka dikhaya huya raste pe chalna hoga nehi to ondaker pee hoho hum sirf bolenge baki tomhara marji

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